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खरगोन हिंसा: अपने ही घर में कैद हुए लोग, इलाको में पसरा सन्नाटा

Nilmani Pal
16 April 2022 2:17 AM GMT
खरगोन हिंसा: अपने ही घर में कैद हुए लोग, इलाको में पसरा सन्नाटा
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मध्य प्रदेश के खरगोन में हिंसा के बाद आज कर्फ्यू का छठा दिन है. पूरे देश में आज खरगोन की चर्चा इसलिए हो रही है क्योंकि यहां रामनवमी के दिन भीषण हिंसा हुई थी.लेकिन इससे पहले तक दंगे कभी खरगोन शहर की पहचान नहीं रहे हैं. खरगोन ने खुशहाली की एक दास्तान लिखी है. खरगोन के उसी खुशहाल चेहरे को टटोलती ये रिपोर्ट देखिए:

10 अप्रैल के बाद मध्य प्रदेश के खरगोन शहर का नजारा अलग ही दिखाई दे रहा है. अपने ही घर में लोग कैद हो गए हैं. चप्पा-चप्पा सन्नाटे के साए में डूबा हुआ दिखाई देता है. जिस तरफ नजर उठाओ, हिंसा और दहशत की गवाही देती तबाही पसरी नजर आती है. पांच दिन पहले एमपी के शहर खरगोन की ये तस्वीर तो बिल्कुल नहीं थी. खरगोन नर्मदा नदी के किनारे बसा और देवी अहिल्या की नगरी कहा जाने वाला शहर है. नर्मदा नदी करीब 50 किमी तक खऱगोन जिले को छूते हुए बहती है.

मध्य प्रदेश के दक्षिण पश्चिम बॉर्डर पर है खरगोन. खरगोन मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 318 किमी दूर है. जबकि एमपी के इंदौर से खरगोन की दूरी 150 किमी दूर है. खरगोन को कपास का कटोरा भी कहा जाता है क्योंकि वहां कपास का बंपर उत्पादन होता है. ये ही खरगोन लाल मिर्च की पैदावार के लिए मशहूर है लेकिन 10 अप्रैल को हुई वारदात ने सामाजिक तानेबाने में कड़वाहट घोलने का काम किया है.

रामनवमी का दिन था. शाम को 7 बजे का वक्त हो रहा था. कोई मंदिर जाने की तैयारी में था तो कोई जुलूस निकालने की. लेकिन जैसे ही खऱगोन के तालाब चौक से रामनवमी का जुलूस निकलना शुरू हुआ. पहले पथराव हुआ और फिर हिंसा भड़क उठी.

उपद्रव की शुरुआत कैसे हुई

हिंसा की शुरुआत जरूर खरगोन के तालाब चौक से हुई थी. लेकिन जंगल में फैली आग की तरह अलग-अलग मोहल्लों और कॉलोनियों तक फैलती चली गई. एबीपी न्यूज संवाददाता ब्रजेश राजपूत खरगोन में ग्राउंड जीरो पर मौजूद हैं और देश को खऱगोन हिंसा का पूरा सच दिखा रहे हैं.

दंगा कैसे एक हंसते खेलते परिवार पर आफत बनकर बरसता है, उसकी मिसाल आपके सामने है. कुछ बच्चे तो ऐसे हैं,जिन्हें पिछले पांच दिन यानी 10 अप्रैल की शाम से अपनी मां का इंतजार है. हिंसा की शाम से लक्ष्मी का कोई पता नहीं चल रहा है.

बच्चों को अपनी मां का इंतजार

लक्ष्मी के जेठ पवन कुमार का कहना है, 'सब लोग ढूंढकर परेशान हैं, कोई सुराग नहीं मिल रहा है.' जबकि लक्ष्मी के बेटे अभिजीत का कहना है, 'वहां आग लगा रहे थे, पथराव हो रहा था तो हम भागकर आ गए. फोन लेकर मम्मी गई थी. फोन स्विच ऑफ है, मुझे लगता है मम्मी हमारे पास ही होंगी.' लक्ष्मी की बेटी अदिति ने कहा, 'मां ने बोला तुम बुआ के घर चली जाओ, मैं भइया को लेकर आती हूं उसके बाद से वो आई ही नहीं.' इन बच्चों के पिता पत्नी की तलाश में हर उस दरवाजे तक जा रहे हैं जहां लक्ष्मी के मिलने की उम्मीद है लेकिन गुजरता हुआ हर घंटा हर दिन भारी साबित हो रहा है.

लक्ष्मी का लापता होना डराता है क्योंकि खरगोन के अलग- अलग मोहल्ले में रामनवमी की उस शाम को हिंसा का नंगा नाच हो रहा था. सबसे ज्यादा हिंसा खरगोन के संजय नगर में हुई है. जहां दंगाइयों ने ना सिर्फ घर में घुसकर लूटपाट की बल्कि आग के हवाले भी कर दिया.

खरगोन की गलियों में नजर घुमाएं तो घरों के अंदर सामान जले हुए हैं, रसोई का पूरा सामान जलकर राख हो गया है. जिस घर पर पीछे की तरफ से पेट्रोल बम फेंके गए, वहां आग लग गई. कमरे में चारों तरफ बर्बादी है. आलमारी, खिड़की, शिवलिंग, टंकी, बर्तन सब जले हुए हैं.

किसी का घर जल गया है तो किसी की कमाई के जरिए में ही आग लगा दी गई. ये ऑटो खरगोन के संजय नगर में रहने वाले अमित की रोजी रोटी का जरिया था.लेकिन दंगाइयों ने घर छोड़ा और ना ही ऑटो. अमित और उनकी मां दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं.

खरगोन के संजयनगर की बस्ती है. दंगे की आगजनी और विध्वंस के निशान हर 2-3 घर में दिख रहे हैं.कई घरों में लूट की, ऑटो जला हुआ है. रोजगार तबाह हो गए हैं. ऑटो चालक अमित भंडोले ने कहा, '2018 में मैंने ये ऑटो लिया था अभी तो किस्त भी पूरी नहीं हुई. मेरा रोजगार इससे ही था. मेरा पूरा घर चलता था. रविवार को 7-8 बजे की घटना है राम नवमी का जुलूस निकलने वाला था. कुछ लोग आए पत्थरबाजी की और घर को आग के हवाले कर दिया, बम फेंके, ऑटो को जला दिया, घर में रखा सामान भी जल गया.'

क्या कोई भी अमित और उसके परिवार की पीड़ा का अंदाजा लगा सकता है. आप कोशिश जरूर कर सकते हैं लेकिन अंदाजा नहीं लगा पाएंगे. कैसा लगता होगा कि जब आंखों के सामने गृहस्थी आग के हवाले हो गई हो. जिस ऑटो से घर चलता था वो तबाह हो गया हो.

लोगों में दहशत इतनी ज्यादा है कि वो अपने घर बेचकर खरगोन से दूर चले जाना चाहते हैं और अब खरगोन प्रशासन के सामने चुनौती है जनता में इस बात का विश्वास जगाने की कि वो सुरक्षित हैं और प्रशासन उनके साथ है.

लेकिन प्रशासन की बातों पर भरोसा करना इतना आसान नहीं है. घरों के अंदर अगर कुछ बचा है तो सिर्फ जला हुआ सामान. घरों में रहने वालों को समझ ही नहीं आ रहा है कि आखिर जिंदगी को पटरी पर लाने के लिए नए सिरे से शुरुआत आखिर कहां से करें.

खरगोन में लोग सुरक्षित महसूस कर सकें उसी कड़ी में इस तरह से घटना के बाद हर रात गश्त दी जा रही है. पुलिसवालों का घुड़सवार दल लोगों से घर में रहने की अपील कर रहा है. शहर में शांति बनाए रखने के लिए हर तरह की सावधानी बरती जा रही है.

रात में चप्पे चप्पे पर गश्त दी जा रही है और दिन का उजाला होने के बाद भी कर्फ्यू का पहरा है. सुबह 10 से 12 बजे तक कर्फ्यू में ढील दी जा रही है ताकि लोग रोजमर्रा की जरूरत का सामान खरीदने बाहर निकल सकें. लोगों को इस बात का भरोसा दिलाया जा रहा है कि प्रशासन सख्त और सक्रिय दोनों है और दोषियों को छोड़ा नहीं जाएगा. इसके लिए मध्य प्रदेश सरकार ने आरोपियों के घर पर बुल्डोजर चलवा दिए थे हालांकि नाम अतिक्रमण का दिया गया था.

10 अप्रैल की उस शाम के बाद तस्वीर कुछ ऐसी है कि खऱगोन के मोहल्लों का नाम बदल जाता है लेकिन खौफ और दहशत की दास्तान नहीं बदलती और ना ही बदलती है हिंसा की तस्वीर.

आइए आपको भटवाड़ी मोहल्ले का हाल बताते हैं. पांच दिन पहले यहां सब कुशल मंगल था. लेकिन 10 अप्रैल के दंगों के बाद इस मोहल्ले की गलियों में सिर्फ खौफ का सन्नाटा नहीं है बल्कि जहन में डर इस कदर हावी है कि लोग अपने घरों को बेचकर यहां से चले जाना चाहते हैं.

ऐसा नहीं है कि सिर्फ एक समुदाय विशेष ने दूसरे समुदाय को निशाना बनाया है. भूलिएगा मत दंगाइयों का कोई धर्म नहीं होता. दंगाई तो सोच होती है और इसलिए खरगोन में भी दंगों का शिकार दोनों पक्ष हुए हैं. दंगाइयों के हमले का शिकार हुए लोगों में मेहरू बी मौजूद हैं, जिनके चेहरे पर तलवार से हमला किया गया है. खरगोन के जिस जिला अस्पताल में मेहरू बी इलाज करवा रही हैं उसी अस्पताल में पत्थरबाजी का शिकार हुए सुरेंद्र भी भर्ती हैं. दंगों का शिकार हुए दो चेहरे आपके सामने हैं. दोनों अलग-अलग धर्म के हैं. दंगों को अंजाम देने वाले लोग और उस सोच का समर्थन करने वाली भीड़ इस बात का जवाब दे कि उन्होंने किसका नुकसान किया है?


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