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बहुचर्चित नन रेप केस: पूर्व बिशप फ्रेंको मुलक्कल 'बरी', कोर्ट की ये टिप्पणी आपको जरूर पढ़नी चाहिए

jantaserishta.com
16 Jan 2022 4:38 AM GMT
बहुचर्चित नन रेप केस: पूर्व बिशप फ्रेंको मुलक्कल बरी, कोर्ट की ये टिप्पणी आपको जरूर पढ़नी चाहिए
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तिरुअनंतपुरम: केरल के चर्चित नन रेप केस में कोर्ट ने बिशप फ्रैंको मुलक्कल को बरी कर दिया. इसे लेकर लोग अलग अलग राय पेश कर रहे हैं. बिशप को 2018 में नन से रेप के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. कोर्ट के फैसले के बाद बिशप मुलक्कल ने कोर्ट से बाहर ही आते हुए कहा कि मैं राहत महसूस कर रहा हूं, Praise the lord. वहीं, नन को सही मानने वालों ने इसे अन्यायपूर्ण और अस्वीकार्य बताया है.

कोर्ट के मुताबिक, पीड़िता बिशप को पिता के समान मानती थी और उसे उम्मीद नहीं थी कि वह उसका यौन शोषण करेगा. इसके अलावा कोर्ट ने कई उदाहरण दिए, जहां पीड़ित के बयान को फेस वैल्यू के तौर पर नहीं लिया जा सकता.
कोर्ट ने कहा, बचाव पक्ष ने तर्क दिया था कि नन के तौर पर उसे बिशप के साथ यात्रा करने के लिए मजबूर किया गया. ऐसे में ये बात साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत नहीं है कि दोनों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध नहीं थे. इतना ही नहीं कोर्ट ने कहा, गौर करने वाली बात ये है कि नन और बिशप के साथ मौजूद गवाहों में से एक ने कहा कि नन ने बिशप के आसपस बिल्कुल सामान्य व्यवहार किया.
इतना ही नहीं कोर्ट ने अपने आदेश में कहा, ''पीड़ित पवित्र कार्यक्रम के बाद अपने बहन के घर रुक सकती थी. लेकिन उसने इसके बजाय आरोपी के साथ कॉन्वेंट में वापस जाने का फैसला किया. वह भी उससे पिछली रात रेप होने के बाद. पीड़िता के मुताबिक, हर बार रेप के बाद पवित्रता की शपथ ने उसे परेशान किया था. हर रेप के बाद उसने रहम की गुहार लगाई. इन परिस्थितियों में, ये यात्राएं और आरोपी के साथ घनिष्ठ संपर्क निश्चित रूप से पूरे मामले को कमजोर करता है"
अभियोजन पक्ष की ओर से आरोपी बिशप के बुरे चरित्र का जिक्र किया गया. हालांकि, अदालत ने कहा कि आरोपी का खराब चरित्र मामले से संबंधित नहीं है. इसके अलावा, अभियोजन द्वारा बिशप के पद संभालने के बाद 18 ननों द्वारा समूह छोड़ने के संबंध में दिए गए तर्क की भी जांच हुई.
कोर्ट के मुताबिक, इस बात का कोई सबूत नहीं है कि नन बिशप की वजह से ग्रुप छोड़कर गई थीं. एक टेलीविजन इंटरव्यू ने भी एक तर्क के निष्कर्ष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई कि आरोपी नन से छेड़छाड़ करने के इरादे से कई बार कॉन्वेंट में रहा. हालांकि, ये साबित नहीं हो सका, क्योंकि गवाह सिस्टर अनुपमा ने कहा कि बिशप का कॉन्वेंट में रहना असामान्य नहीं कहा जा सकता है.
कोर्ट ने कई मालमों का हवाला देते हुए कहा, कई मामलों में यह देखा है कि क्या मामला दर्ज करने में देरी और एफआईआर दर्ज करने में देरी को संतोषजनक ढंग से समझाया जा सकता है? हालांकि, अभियोजन पक्ष भी इसे समझने में विफल रहा. वहीं, सुप्रीम कोर्ट के वकील कलीस्वरम राज ने कहा, लीगल सेंस के मुताबिक, फैसला अच्छी तरह से दिया गया था.
कोर्ट ने अपने आदेश के आखिरी में इस का जिक्र किया है कि बिशप फ्रैंको मुलक्कल को बरी क्यों किया गया? अदालत ने कहा, पीड़िता की ओर मामले को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया गया. इसके अलावा उसने तथ्यों को छिपाने की भी कोशिश की.
कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया है कि पीड़िता अन्य लोगों के प्रभाव में थी. इन लोगों के निजी स्वार्थ इस मामले से जुड़े थे. कोर्ट के मुताबिक, पीड़िता और उसके सहयोगी ननों के बीच लड़ाई, प्रतिद्वंद्विता और सत्ता पाने की इच्छा दिखाई देती है. इतना ही नहीं कोर्ट ने पाया कि अगर चर्च द्वारा उनकी मांगों को स्वीकार कर लिया जाता तो यह मामला सुलझ जाता. कोर्ट ने अपने फैसले में बिशप को बरी कर दिया. इसके बाद कोर्ट ने कहा कि जब सत्य को असत्य से अलग करना संभव नहीं है, तो सबूतों को खत्म करना ही विकल्प होता है.
रिटायर जज बी कमाल पाशा के मुताबिक, यह फैसला अस्वीकार्य है. उन्होंने कहा कि अदालत ने नन पर विश्वास करने के बजाय उन पर विश्वास न करने के सभी कारणों पर गौर किया. कमाल पाशा ने कहा, आरोपी को अपने आप को बरी साबित करने का अधिकार होता है. हालांकि, इनकी जांच करनी होती है. बिशप के पास संस्था का पूरा अधिकार है. इस मामले के देर से दर्ज होने की भी पर्याप्त वजह हैं.
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