भारत

काज़ी नज़रुल इस्लाम: लेखनी में था भक्ति, बांग्लादेश बना तो मिला राष्ट्रकवि का दर्जा

Nilmani Pal
29 Aug 2024 6:19 AM GMT
काज़ी नज़रुल इस्लाम: लेखनी में था भक्ति, बांग्लादेश बना तो मिला राष्ट्रकवि का दर्जा
x
दिल्ली Delhiभक्ति, प्रेम और विद्रोह.. भले ही ये तीनों शब्द अलग-अलग हैं, लेकिन जब इनकी बात आती है तो सबसे पहले अगर किसी का जिक्र होता है तो वह हैं काज़ी नज़रुल इस्लाम। प्रसिद्ध बांग्ला कवि, संगीत सम्राट, संगीतज्ञ और दार्शनिक काज़ी नज़रुल इस्लाम की लेखनी ऐसी थी कि उनकी स्याही से भक्ति, प्रेम और विद्रोह तीनों ही धाराओं का संगम निकलता था। Kazi Nazrul Islam

नज़रुल को बांग्ला साहित्य के सबसे महान कवियों में से एक माना जाता है। नजरुल ने कविता, संगीत, संदेश, उपन्यास, कहानियों को लिखा। जिसमें समानता, न्याय, साम्राज्यवाद-विरोधी, मानवता, उत्पीड़न के खिलाफ विद्रोह और धार्मिक भक्ति का समागम था। यही नहीं, उन्होंने भगवान कृष्ण पर कई रचनाएं लिखीं। काज़ी नज़रुल इस्लाम द्वारा भगवान कृष्ण पर लिखी रचना, ‘अगर तुम राधा होते श्याम, मेरी तरह बस आठों पहर तुम, रटते श्याम का नाम’, उनके प्रेम से जुड़ाव को भी दर्शाती हैं।काज़ी नज़रुल इस्लाम भारत की पहली ऐसी हस्ती थे, जिन्हें किसी देश ने अपने देश ले जाने की इच्छा जताई थी। ये देश था बांग्लादेश। बांग्लादेश के एक साल बनने के बाद यानी 1972 में तत्‍कालीन प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान भारत आए थे। इस दौरान उन्‍होंने काजी नज़रुल इस्लाम को बांग्लादेश ले जाने की इच्‍छा जताई और भारत ने बांग्‍लादेश के आग्रह को स्वीकार कर लिया।

तब कहा गया कि बांग्‍लादेश, नज़रुल इस्‍लाम का जन्‍मदिन मनाने के बाद उन्‍हें वापस कोलकाता भेजेगा और उनका अगला जन्‍मदिन भारत में मनाया जाएगा। लेकिन, उनका अगला जन्मदिन भारत में नहीं मना वो कभी नहीं लौटे।24 मई 1899 को पश्चिम बंगाल के बर्धमान में एक मुस्लिम परिवार में जन्में काज़ी नज़रुल इस्लाम को बचपन से ही कविता, नाटक और साहित्य से जुड़ाव रहा। उनकी शिक्षा का आगाज तो मजहबी पर तौर पर हुआ। लेकिन, वे कभी मजहबी की जंजीरों में जकड़े नहीं रहे। नजरुल ने लगभग 3,000 गानों की रचना की और अधिकतर गानों को आवाज भी दी। जिन्हें 'नजरुल संगीत' या "नजरुल गीति" नाम से भी जाना जाता है।

बताया जाता है कि नज़रुल मस्जिद में प्रबंधक (मुअज्जिम) के तौर पर काम करते थे। मगर उन्‍होंने बांग्ला और संस्कृत की शिक्षा ली और वह संस्कृत में पुराण भी पढ़ा करते थे। उन्होंने ‘शकुनी का वध’, ‘युधिष्ठिर का गीत’, ‘दाता कर्ण’ जैसे नाटकों को भी लिखा। काजी नज़रुल इस्लाम ने लेखनी के अलावा सेना में भी सेवाएं दी। 1917 में वह सेना में शामिल हुए, लेकिन 1920 में 49वीं बंगाल रेजिमेंट को भंग कर दिया गया। इसके बाद उन्होंने ब्रिटिश भारतीय सेना छोड़ दी और वह कलकत्ता में बस गए। उन्होंने अपना पहला उपन्यास बंधन-हरा ('बंधन से मुक्ति') 1920 में प्रकाशित किया। नज़रुल इस्लाम को उस समय पहचान मिली, जब उन्होंने 1922 में 'बिद्रोही' में को लिखा। 'बिद्रोही' के लिए उनकी जमकर प्रशंसा की गई। नज़रुल इस्लाम सिर्फ इस्लामी भक्ति गीतों तक ही सीमित नहीं थे। उन्होंने हिंदू भक्ति गीत भी लिखे। इसमें आगमनी, भजन, श्यामा संगीत और कीर्तन शामिल है। नज़रुल इस्लाम ने 500 से अधिक हिंदू भक्ति गीत लिखे। हालांकि, मुस्लिमों का एक वर्ग ने श्यामा संगीत लिखने के लिए उनकी आलोचना की और उन्हें काफिर तक करार दे दिया गया। काजी नज़रुल इस्लाम ने 29 अगस्त 1976 को दुनिया को अलविदा कह दिया।

Next Story