सेना को कोसने वाले “अर्बन- नक्सली” कन्हैया का कांग्रेस में बढ़ता कद
आर.के. सिन्हा
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी का कहना कि कांग्रेस अपनी विचारधारा “अर्बन- नक्सलियों” को गिरवी रख रही है सही दिख रही है I जे.एन.यू. के पूर्व अध्यक्ष “भारत तेरे टुकड़े होंगे” गैंग के नायक कन्हैया कुमार को कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कांग्रेस कार्य समिति में जगह देकर स्पष्ट कर दिया कि उन्हें उन तत्वों से कोई कतई परहेज नहीं हैं, जो भारतीय सेना पर कश्मीर में रेप के झूठे और बेबुनियाद आरोप लगाते रहे हैं। बेशक, देश की आम राष्ट्र भक्त जनता तो कन्हैया कुमार को कभी माफ नहीं करेगी, क्योंकि उसने सेना पर मिथ्या आरोप लगाए। कन्हैया कुमार ने पिछला लोकसभा चुनाव भी अपने गृह जनपद बेगूसराय से लड़ा था और वे वहां से बुरी तरह से हारे थे। वे तब भाकपा की टिकट पर उम्मीदवार थे। उनके लिए टुकड़े-टुकड़े गैंग के सैकड़ों गैंग सदस्यों ने बेगूसराय में डेरा डाला हुआ था। ये सब सोशल मीडिया पर इस तरह का माहौल बना रहे थे कि मानो भारतीय सेना को बलात्कारी कहने वाला कन्हैया कुमार भाजपा के गिरिराज सिंह को हरा ही देगा। गिरिराज सिंह को बाहरी उम्मीदवार बताना इनका बड़ा मुद्दा था I बात सही भी थी I गिरिराज जी गंगा के दक्षिणी कछार के प्रसिद्ध गाँव बड़हिया के निवासी हैं और बेगूसराय गंगा के उत्तरी छोर पर है I
हालाँकि, कन्हैया कुमार को कांग्रेस कार्य समिति में जगह मिलना अप्रत्याशित है। यह कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी और शक्तिशाली समिति है या यूँ कहे कि हुआ करती थी । कांग्रेस के अपने संविधान और नियम हैं, इसे लागू करने का अंतिम निर्णय कांग्रेस कार्य समिति ही करती है। कहने वाले तो यह भी कहते हैं कि इसके पास इतनी शक्तियां होती है कि वो पार्टी अध्यक्ष की नियुक्ति भी कर सकती है और पद से चलता भी कर सकती है। कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव होने के बाद नई कांग्रेस कार्य समिति बनती है। यहाँ यह याद दिलाना जरुरी हो जाता है कि लखनऊ कांग्रेस बैठक के बाद जब कांग्रेस अध्यक्ष नेहरु की तानाशाही से रुष्ट कार्य समिति के वरिष्ठ सदस्यों देशरत्न डॉ. राजेंद्र प्रसाद, बल्लभ भाई पटेल, आचार्य कृपलानी, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस आदि ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया था तो पार्टी में कोहराम मच गया था और स्वयं गाँधी जी को हस्तक्षेप करना पड़ा था I
बहरहाल, भाजपा और भाजपा के सभी नेताओं पर जहर उगलने वाले कन्हैया कुमार अपनी कटु वाणी के लिए जाने जाते हैं। अब तो वे कांग्रेस कार्य समिति में हैं। तो क्या माना जाये कि कन्हैया कुमार की भारत की सेना को लेकर की गई टिप्पणियों पर कांग्रेस उनके साथ खड़ी है? उसने न जाने कितनी बार कहा कि भारतीय सेना कश्मीर में घृणित कर्म करती रही है । भारतीय सेना पर कश्मीर में रेप जैसा जघन्य आरोप लगाने वाले और टुकड़े-टुकड़े गैंग के समर्थन में कन्हैया कुमार के आरोप को देखने के लिए आप यू ट्यूब का सहारा भी ले सकते हैं। उससे पूछा जाना चाहिए कि वह किस आधार पर सरहदों की निगाहबानी करने वाली भारतीय सेना पर आरोप लगाता रहा है? उसके पास अपने आरोपों को साबित करने के किस तरह के पुख्ता प्रमाण हैं? भारतीय सेना पर मिथ्या आरोप लगाने वाले कन्हैया ने सेना पर आरोप तो लगा दिए, पर उसे तब सेना का अदम्य साहस दिखाई नहीं दिया, जब सेना जान पर खेलकर संकट के वक्त जनता को बचाती है। कन्हैया कुमार जब जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष थे, उस दौरान वहां पर उन्हीं के नेतृत्व में संसद हमले के गुनाहगार अफजल का जन्मदिन मनाया जा रहा था। क्या यह बिना उनकी सहमति के संभव था I
कन्हैया कुमार बहुत ही चतुर खिलाड़ी है। घोर महत्वकांक्षी भी है I कांग्रेस में शामिल होते ही उन्होंने 1984 में श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में भड़के दिल-दहलाने वाले सिख विरोधी दंगों और हजारों सिखों के बर्बरतापूर्ण नरसंहार के लिए कांग्रेस को क्लीन चिट दे दी थी। कन्हैया कुमार कहते हैं कि 1984 के दंगे भीड़ के उन्माद के कारण ही भड़के। इस तरह से उन्होंने कांग्रेस को प्रमाणपत्र दे दिया कि कांग्रेस की 1984 के दंगों में कोई भूमिका ही नहीं थी। क्या वे तब दिल्ली में थे? उस समय उनकी कितनी उम्र थी? 1984 के दंगों के कारणों पर मानवाधिकार संगठन पीयूडीआर ने एक शोध रिपोर्ट प्रकाशित की थी। उसने दावा किया था कि सिखों का कत्लेआम कांग्रेस के नेताओं की शह पर ही हुआ। कांग्रेस के पूर्व सांसद सज्जन कुमार 1984 के दंगों को भड़काने के आरोप साबित होने के कारण ही उम्र कैद की सजा झेल रहे हैं? जगदीश टाइटलर अलग कोर्ट की पेशियां देते फिर रहे हैं I बड़ा प्रश्न यह है कि क्या इन छुटभैये नेताओं ने बिना राजीव और सोनिया के शह पर यह नरसंहार किया I
दिल्ली ने 1947 के बाद 1984 में भयानक दंगे देखे थे। देश के बंटवारे के बाद 1947 में भी दिल्ली के बहुत से इलाकों में दंगे हुए थे। हालांकि तब तक दिल्ली एक छोटा सा शहर थी। उस दंगे को रूकवाने के लिए महात्मा गांधी खुद दंगा ग्रस्त इलाकों में जाने लगे थे। ताकि दिल्ली में दंगे रूक जाएं इसलिए गांधी जी ने 13 जनवरी से 18 जनवरी तक उपवास रखा। वे तब 78 साल के हो चुके थे। उनके उपवास का असर यह हुआ कि दंगाई शांत हो गए। दिल्ली फिर से अपनी रफ्तार से चलने लगी।
एक तरफ तो यह महात्मा गाँधी की संवेदना थी I दूसरी ओर तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गाँधी की प्रतिक्रिया थी कि “जब कोई बड़ा बरगद का वृक्ष जमीन पर गिरता है तो धरती तो थोड़ी बहुत हिलती ही है I” यानि तीन हजार सिक्खों का कत्लेआम इनके लिये “थोड़ा बहुत” था I
जब इंदिरा गांधी की उनके निजी अंगरक्षक सुरक्षा कर्मियों द्वारा हत्या की गई थी तो दिल्ली में दंगे भड़क उठे या भड़काये गये, तब कांग्रेस के लफंगों ने दिल्ली में हजारों निर्दोष सिखों को मौत के घाट उतारा था। देखा जाए तो उसे सांप्रयादिक दंगा कहना भूल होगा। पर तब उन दंगाइयों को कदम-कदम पर अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर, कुलदीप नैयर, लेफ्टिनेंट जनरल अरोड़ा, लेखक महीप सिंह समेत सैकड़ों छात्रों, राजनीतिक तथा मानवाधिकार कार्यकर्ताओं वगैरह से टक्कर लेनी पड़ी थी। फिर भी वह दंगा नहीं बर्बरतापूर्ण “नरसंहार” था I
अटल बिहारी वाजपेयी का उस दिन देश ने इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजधानी में भड़के सिख विरोधी दंगों के समय एक अलग ही रूप देखा था। वे तब दिल्ली प्रेस क्लब के लगभग सामने स्थित 6 रायसीना रोड के बंगले में रहते थे। राजधानी जल रही थी। यहां पर मौत का नंगा नाच खेला जा रहा था, मानवता मर रही थी।अटल बिहारी वाजपेयी ने 1 नवंबर,1984 को सुबह दसेक बजे अपने बंगले के गेट से बाहर का भयावह मंजर देखा। उनके घर के सामने स्थित टैक्सी स्टैंड पर काम करने वाले सिख ड्राइवरों पर हल्ला बोलने के लिए गुंडे-मवालियों की भीड़ एकत्र थी। वे तुरंत बंगले से अकेले ही निकलकर नंगे पांव टैक्सी स्टैंड पर पहुंच गए। उनके वहां पर पहुंचते ही हत्याएं करने के इरादे से आई भीड़ तितर-बितर होने लगी। भीड़ ने अटल जी को तुरंत पहचान लिया। उन्होंने भीड़ को कसकर खरी-खरी सुनाई। मजाल थी कि उनके सामने कोई आँखें ऊपर कर देख भी लेता। अटल जी अगर चंदेक पल विलंब से आते तो दंगाइयों का सारा काम खत्म हो चुका होता। ड्राइवरों और टैक्सियों को जला दिया गया होता। अटल जी के साथ दिल्ली भाजपा के कई नेता जैसे मदन लाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा वगैरह अपने साथियों के साथ दंगे रूकवा रहे थे। अब कन्हैया कुमार कांग्रेस को 1984 के दंगों के लिए दूध का धूला साबित करने में लगे हैं। उस समय उनके दूध के दांत टूटे थे या नहीं, यह तो वही बता सकते हैं I
बहरहाल, अब वे कांग्रेस की कार्य समिति में शामिल कर लिए गए हैं। कांग्रेस कार्यसमिति के शत-प्रतिशत सदस्य सोनिया, राहुल, प्रियंका के हैं I बेचारे, खड्गे तो इस मामले में बेचारे ही हैं I अब देश कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और आलकमान के दूसरे नेताओं से जानना चाहता है कि वे बतायें कि भारतीय सेना पर की गई टिप्पणी पर उनका और उनकी पार्टी का क्या कहना है ?
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)