भारत
यूनेस्को के विश्व विरासत में शामिल हुआ काकतीय रुद्रेश्वर मंदिर, PM मोदी ने ट्वीट कर सभी देशवासियों को दी बधाई
Deepa Sahu
25 July 2021 2:18 PM GMT
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को तेलंगाना में काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किए.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को तेलंगाना में काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किए जाने पर देश को बधाई दी. एक ट्वीट में, प्रधान मंत्री ने लिखा, "सभी को बधाई, विशेष रूप से तेलंगाना के लोगों को. प्रतिष्ठित रामप्पा मंदिर महान काकतीय वंश के उत्कृष्ट शिल्प कौशल को प्रदर्शित करता है. मैं आप सभी से इस राजसी मंदिर परिसर में जाने और इसकी भव्यता का हाथ अनुभव करने का आग्रह करूंगा."
दरअसल आज यानी 25 जुलाई को तेलंगाना में काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल के रूप में अंकित किया गया है. यूनेस्को ने इस बारे में जानकारी देते हुए एक ट्वीट के माध्यम से कहा, " तेलंगाना के काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को विश्व विरासत स्थल के रूप में शामिल किया गया है."
Excellent! Congratulations to everyone, especially the people of Telangana. The iconic Ramappa Temple showcases outstanding craftsmanship of great Kakatiya dynasty. I would urge you all to visit this majestic Temple complex & get a first-hand experience of its grandness: PM Modi pic.twitter.com/OTQQkyGue9
— ANI (@ANI) July 25, 2021
तेलंगाना के मंत्री के टी रामाराव ने भी खुशी जाहिर की
वहीं इस खबर को सुनने के बाद तेलंगाना के मंत्री के टी रामाराव ने भी खुशी जाहिर करते हुए ट्वीट कर कहा, "यह खुशखबरी साझा करते हुए खुशी हो रही है कि तेलंगाना में 800 वर्षीय काकतीय रुद्रेश्वर रामप्पा मंदिर को यूनेस्को की विश्व विरासत स्थल के रूप में अंकित किया गया है. मेरी उन सबको बधाई जो इस प्रयास में शामिल थे.
केटी रामा राव ने ट्वीट कर कहा ये तेलंगाना से यह पहला विश्व धरोहर स्थल है अगला उद्देश्य हमारी राजधानी हैदराबाद के लिए विश्व विरासत शहर का दर्जा प्राप्त करना है. मालूम हो कि तेलंगाना के वारंगल में स्थित यह शिव मंदिर इकलौता ऐसा मंदिर है, जिसका नाम इसके शिल्पकार रामप्पा के नाम पर रखा गया. इतिहास के अनुसार काकतीय वंश के राजा ने इस मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में करवाया था.
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