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25 जून 1975: इंदिरा गांधी ने आज ही के दिन देश में लगाया था आपातकाल, पढ़े कैसे लगाई इमरजेंसी?

jantaserishta.com
25 Jun 2021 3:33 AM GMT
25 जून 1975: इंदिरा गांधी ने आज ही के दिन देश में लगाया था आपातकाल, पढ़े कैसे लगाई इमरजेंसी?
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46 साल पहले इंदिरा गांधी ने आज ही के दिन देश में आपातकाल लगाया था. 25 जून 1975 को आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार खत्म कर दिए गए थे. अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया था. प्रेस सेंसरशिप, नसबंदी, दिल्ली के सौंदर्यीकरण के नाम पर जबरन झुग्गियों को उजाड़ा जाना और कई ऐसे फैसले रहे, जिसकी वजह से भारत के आपातकाल को देश का सबसे काला दिन कहा जाता है.

इंदिरा गांधी के आपातकाल के दौरान जुल्म और ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले नेताओं से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक को जेल में डाल दिया गया था. जेलों में जगह नहीं बची थी, लेकिन आपातकाल के विरोध में आवाज बुलंद करने वालों के हौसले बचे हुए थे और उन्होंने इस काम को बखूबी किया है. इसी का नतीजा था कि 21 महीने के बाद 21 मार्च 1977 को देश से आपातकाल हटा लिया गया. देश की जनता ने कुछ ही महीनों के बाद वोट देने की अपनी ताकत से इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया.
इंदिरा गांधी के तानाशाही रवैए के खिलाफ आवाज उठाने वालों में जयप्रकाश नारायण प्रमुख नेता बनकर उभरे थे. इसके अलावा राज नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस, चौधरी चरण सिंह, मोरारजी देसाई, नानाजी देशमुख, वीएम तारकुंडे, एच डी देवेगौड़ा, अरुण जेटली, राम विलास पासवान, डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, शरद यादव, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे नेताओं को इंदिरा गांधी ने जेल में डलवा दिया था. हालांकि, बाद में इन्हीं नेताओं ने कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंका, लेकिन आज आपातकाल के ये नायक कहां हैं?
जय प्रकाश नायारण: इंदिरा गांधी के खिलाफ मुखर आवाज उठाने वालों में प्रमुख रूप से जय प्रकाश नारायण का नाम आता है. आपातकाल के खिलाफ पूरे आंदोलन का मुख्य चेहरा रहे, इसीलिए इन्हें जेपी आंदोलन के जनक के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि 1948 में उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया और बाद में गांधीवादी दल के साथ मिलकर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना की. 1974 से लेकर 25 जून 1975 तक देश में किसान और छात्रों का आंदोलन को एक नया मुकाम दिया.
जेपी की राजनीतिक कुशलता थी कि उन्होंने समाजवादी और दक्षिणपंथी नेताओं को एकजुट कर इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन चलाया. 1975 में इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा के साथ जय प्रकाश नारायण को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया. 1977 में जेपी के प्रयासों से सभी एकजुट होकर जनता पार्टी बनाई. जेपी इंदिरा गांधी को चुनाव में हरा दिया. हालांकि, जयप्रकाश नारायण का 8 अक्टूबर 1979 को हृदय की बीमारी और मधुमेह के चलते निधन हो गया.
राजनारायण: इंदिरा गांधी के खिलाफ सीधे तौर मोर्चा लेने वाले नेताओं में राजनारायण प्रमुख थे. 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी के खिलाफ रायबरेली से संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से राजनारायण चुनाव लड़े थे. इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण ने कोर्ट में याचिका लगाई कि उन्होंने गलत तरीके से चुनाव जीत हासिल की है. कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए जून 1975 को इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त कर दिया गया, जिसके आक्रोशित होकर ही इंदिरा गांधी ने आपातकाल लगा दिया.
आपातकाल लगने के कुछ ही घंटों के अंदर सबसे पहले राजनारायण को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. 21 महीने तक राजनारायण जेल में रहे. आपातकाल के बाद 1977 में जब चुनाव हुई तो रायबरेली से इंदिरा गांधी के खिलाफ राजनारायण एक बार फिर मैदान में उतरे और जबरदस्त जीत हासिल कर जनता पार्टी सरकार में मंत्री बने.
इलियास आजमी कहते हैं कि जनता पार्टी की टूट की वजह भी राजनारायण बने. चौधरी चरण सिंह के साथ उन्होंने मिलकर मुरारजी देसाई को सत्ता से बेदखल किया. जनता पार्टी के राज में चौधरी चरण सिंह को राम कहते थे और खुद को हनुमान बताते थे. हालांकि, उन्होंने समाजवादी राजनीत को नहीं छोड़ा और 31 दिसंबर 1986 को उनका निधन हो गया.
अटल बिहारी वाजपेयी: आपातकाल लगने के साथ ही जिन नेताओं की गिरफ्तार हुई उनमें अटल बिहारी वाजपेयी भी प्रमुख रूप से थे. अटल बिहार वाजपेयी 18 महीने जेल में कैद रहे. वाजपेयी जेल में रहकर आपातकाल के विरोध में कविताएं लिखकर इंदिरा गांधी की कड़ी आलोचना की थी. 1977 में आपातकाल के हटने बाद चुनाव हुआ तो मुरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी और अटल बिहारी वाजपेयी ने विदेश मंत्री की अहम जिम्मेदारी निभाई. हालांकि, जनता पार्टी के टूटने के बाद वाजपेयी ने बीजेपी का गठन किया और 1996 में पहली बार देश के प्रधानमंत्री बने. इसके बाद 1998 और फिर 1999 से 2004 तक पीएम रहे. 16 अगस्त 2018 को लंबी बीमारी के बाद वाजपेयी का निधन हो गया, लेकिन उन्होंने अपनी विचाराधारा से कभी समझौता नहीं किया.
जॉर्ज फर्नांडिस: समाजवादी नेता जार्ज फर्नांडिस आपातकाल की सूचना मिलने के बाद अपने पत्नी और बच्चों से अलग होकर इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन का हिस्सा बने. फर्नांडिस कभी मछुआरा बनकर तो कभी साधु का रूप धारण कर देश में अलग-अलग हिस्सों में घूमते रहे. इतना ही नहीं उन्होंने अपने बाल और दाढ़ी इतने बढ़ा लिए और सिख बनकर आपातकाल के खिलाफ आंदोलन को धार देने लगे.
आपातकाल की घोषणा के बाद से ही जॉर्ज फर्नांडिस पर आरोप लगा था कि देश के अलग-अलग हिस्से में डायनामाइट लगाकर विस्फोट और विध्वंस करना चाहते थे. हालांकि, फर्नांडिस को जून 1976 में गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. फर्नांडिस 1977 का लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए ही बिहार की मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से लड़े और रिकॉर्ड मतों से जीतकर संसद पहुंचे और जनता पार्टी सरकार में मंत्री बने. उन्होंने समता पार्टी का गठन किया, जिसका बाद में जेडीयू में विलय कर दिया गया. वो राजनीतिक जीवन में 9 बार सांसद चुने गए और 29 जनवरी 2019 को लंबी बिमारी के बाद निधन हो गया.
लालकृष्ण आडवाणी: भाजपा के वरिष्ठ नेता और संस्थापक सदस्य रहे लालकृष्ण आडवाणी आपातकाल के दौरान 19 महीने तक जेल में रहे. एनडीए सरकार में वो डिप्टी प्राइम मिनिस्टर रहे लालकृष्ण आडवाणी आपातकाल के दौरान जेपी आंदोलन से जुड़े और गुजरात में काम किया. गुजरात जून 1975 में बड़े बदलाव का गवाह बना. खुद इंदिरा गांधी और कांग्रेस पार्टी को झटकों की शुरुआत 11 जून से हुई. उस दिन गुजरात विधानसभा के चुनावों के परिणाम आए थे. तब कांग्रेस का अभेद्य दुर्ग गुजरात ढह में चुका था.
गुजरात के सियासी फलक पर एक नई इबारत लिखी जा चुकी थी. मोरारजी देसाई के मार्गदर्शन में संयुक्त विपक्ष को चमत्कारिक सफलता मिली और कांग्रेस को अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा. उसी माहौल में गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद 15, 16 और 17 जून को जनसंघ (अब भारतीय जनता पार्टी) की कार्यकारिणी की बैठक माउंट आबू में हुई. देश की सत्ता में अहम रोल रखने वाले आडवाणी और अटल ही जोड़ी पूरे देश में प्रसिद्ध रही. आडवाणी मौजूदा समय में बीजेपी के सलाहकार मंडल की भूमिक में है.
रामकृष्ण हेगड़े: आपातकाल के खिलाफ दक्षिण भारत सबसे मुखर आवाज रामकृष्ण हेगड़े की थी, जिन्हें मिस्टर क्लीन भी कहे जाते थे. आपातकाल के खिलाफ जेल जाने वाले नेताओं में शामिल थे. कर्नाटक के तीन बार मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े भारतीय राजनीति में अहम चेहरा रहे. हेगड़े राज्य के पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे. 80 के दशक के आखिर में जब कांग्रेस केंद्र की सत्ता से बाहर थी और वीपी सिंह विपक्ष की राजनीति की धुरी बने प्रधानमंत्री पद के मजबूत दावेदारों में से एक रहे. रामकृष्ण हेगड़े का लंबी बीमारी के बाद 12 जनवरी 2004 को निधन हो गया. उनकी कार्यक्षमता की हर कोई उनका मुरीद था, लेकिन टेलीफोन टेप कांड से विवाद में भी आए थे.
सुब्रमण्यम स्वामी: आपातकाल के दौरान ही बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी बड़े हीरो बनकर उभरे थे, वैसे तो उन्होंने इमरजेंसी से पहले ही इंदिरा गांधी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. स्वामी की ओर से रखे गए उदारवादी आर्थिक नीतियों की इंदिरा बहुत बड़ी विरोधी थीं. इंदिरा की नाराजगी के चलते स्वामी को दिसंबर 1972 में आईआईटी दिल्ली की नौकरी गंवानी पड़ी. आपातकाल के खिलाफ स्वामी को गिरफ्तारी करने के लिए पुलिस पूरा प्लान बना चुकी थी, उनकी नौकरशाहों के बीच में अच्छी पकड़ होने की वजह से वह बच गए.
आपातकाल के दौरान ही वह 25 जून 1975 को जयप्रकाश नारायण एक साथ रत्रिभोजन कर रहे थे, इस दौरान स्वामी ने जेपी से कहा कि कुछ बड़ा होने वाला है तो जेपी ने उनकी बात पर विश्वास नहीं किया. इसके बाद जेपी गिरफ्तार हो गए लेकिन स्वामी बच गए. वह 6 महीनों के लिए भूमिगत हो गए. इसी दौरान जेपी ने स्वामी से कहा कि आप अमेरिका चले जाइए और वहां आपातकाल के बारे में लोगों को जागरूक करो. डॉ स्वामी अमेरिका में जाकर हॉर्वर्ड में प्रोफेसर बन गए और हॉर्वर्ड के मंच का उपयोग करके आपातकाल को लेकर अमेरिका के 23 राज्यों में भारतीयों को जागरूक करना शुरू कर दिया. इस तरह से स्वामी ने आपातकाल के खिलाफ आवाज बुलंद की.
मुलायम सिंह यादव: समाजवादी आंदोलन से निकले मुलायम सिंह यादव भी आपातकाल के खिलाफ जेल जाने वाले नेताओं में शामिल थे.15 साल की उम्र में ही राजनीतिक अखाड़े में कदम रखने वाले मुलायम सिंह यादव 1954 से आंदोलन में भाग लेने लगे. 1954 में उन्होंने समाजवादी नेता डॉ. राम मनोहर लोहिया के नहर रेट आंदोलन में भाग लिया और जेल गए. मुलायम सिंह यादव ने राजनीति के शुरुआती दिनों में मजदूर, किसान, पिछड़ों, छात्र व अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए जमकर आवाज उठाई. इसके बाद औपचारिक तौर पर मुलायम सिंह यादव 1960 में राजनीति का हिस्सा बने. पहली बार वह 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर विधायक बने. इसी दौरान आपातकाल के दौरान मुलायम सिंह यादव की जिंदगी में अहम मोड़ आया और वो जेल गए. 1977 में आपातकाल के बाद पहली बार यूपी सरकार में मंत्री बने और बाद में सूबे के चार बार मंत्री बने और केंद्र में रक्षा मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाली. मौजूदा समय में सपा के संरक्षक है.
लालू प्रसाद यादव: यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान ही लालू प्रसाद यादव राजनीतिक सफर किया था. नौकरी छोड़कर जेपी आंदोलन में शामिल हो गए. 22 साल की उम्र में लालू यादव पहली बार राजनीति में आए और पटना यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स यूनियन के महासचिव बनाए गए. 1975 में लालू प्रसाद यादव को गिरफ्तार किया गया और 1977 तक वे जेल में बंद रहे. लालू यादव की बेटी का नाम मीसा भारती इसलिए पड़ा क्योंकि आपातकाल के दौरान लालू यादव को मीसा कानून के तहत जेल में डाला गया था.1977 में 29 साल की उम्र में लालू यादव सांसद बने और सबसे कम उम्र के नेता का रिकॉर्ड अपने नाम दर्ज कराया. 1990 से 1997 तक बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके लालू प्रसाद यादव चारा घोटाला मामले में जेल में बंद थे. फिलहाल वह जमानत पर जेल से बाहर हैं.
चंद्रशेखर: कांग्रेस में बागी तेवर अपनाने के कारण चंद्रशेखर 1975 में इमरजेंसी के दौरान उन कांग्रेसी नेताओं में से एक थे, जिन्हें विपक्षी दल के नेताओं के साथ जेल में ठूंस दिया गया था. इमरजेंसी के बाद वे वापस आए और विपक्षी दलों की बनाई गई जनता पार्टी के अध्यक्ष बने. जब जनता दल की सरकारी बनी तो उन्होंने मंत्री बनने से इनकार कर दिया था. सत्ता के संघर्ष में कभी इस तो कभी उस प्रत्याशी का समर्थन करते रहे, लेकिन साल 1990 में उन्हें प्रधानमंत्री बनने का मौका मिला. जब वीपी सिंह सरकार बीजेपी के सपोर्ट वापस लेने के चलते अल्पमत में आ गई. राजीव गांधी ने उन्हें समर्थन दिया और चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बनने में कामयाब रहे.
चौधरी चरण सिंह: देश के पांचवें प्रधानमंत्री रहे किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह आपातकाल के दौरान तिहाड़ जेल में बंद रहे थे. आपातकाल के दौरान 25 जून 1975 से मार्च 1976 तक बंद रहे. इसके बाद वो जेल से रिहा होने पर आपातकाल की भर्त्सना करते हुए उन्होंने इंदिरा गांधी के विरोध में 23 मार्च 1976 को यूपी की विधानसभा में चार घंटे तक ऐतिहासिक भाषण दिया. विपक्षी की एकता कायम करने के प्रयास उन्होंने जनता पार्टी गठन किया, लेकिन जनता पार्टी सरकार को तोड़ने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका उनकी रही.दो वर्ष से कम समय में ही केंद्र में गैर कांग्रेस सरकार का प्रयोग असफल हो गया और मोरारजी देसाई को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा.
मोराजी देसाई की सरकार गिर गई और सब नेता जनता पार्टी छोड़ने लगे. इसके बाद ही चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस का समर्थन लेकर सरकार बना ली. चौधरी चरण सिंह जुलाई 1979 में प्रधानमंत्री बन गए। हालांकि, कुछ दिन बाद ही इंदिरा गांधी ने समर्थन वापस ले लिया और चरण सिंह की सरकार भी गिर गई. ये भी एक इतिहास है कि चरण सिंह एकमात्र ऐसे प्रधानमंत्री रहे जिन्होंने कभी संसद का सामना नहीं किया.
नीतीश कुमार:बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इमरजेंसी के दौरान 9/10 जून, 1976 की रात में गिरफ्तार हुए थे. वह भोजपुर जिले के संदेश थाना के दुबौली गांव से गिरफ्तार किये गये थे. नीतीश कुमार की गिरफ्तारी पर 15 पुलिस पदाधिकारियों तथा सिपाहियों को 2750 रुपये का इनाम मिला था. उन्हें गिरफ्तार करने वाले इसमें 20 सिपाही सादे लिबास में थे. अधिकारियों को सूचना मिली थी कि पटना और भोजपुर के कुछ आंदोलनकारी दुबौली गांव में एक बैठक करने जा रहे हैं. यही नहीं पटना की बैठक नीतीश कुमार ने बुलाई थी. नीतीश कुमार के साथ गिरफ्तार किए जाने वाले भोजपुर जिले के चर्चित और पीरो के गांधी कहे जाने वाले नेता रामएकवाल वरसी भी थे. इस मामले में नीतीश कुमार सहित छह शीर्ष नेताओं को मीसा के तहत नजरबंद कर दिया गया था. नीतीश कुमार फिलहाल बिहार के मुख्यमंत्री हैं और जेडीयू की कमान संभाल रहे हैं.
शरद यादव: देश की समाजवादी राजनीति के बड़े स्तम्भ माने जाने वाले शरद यादव राजनीतिक रूप से करवट बदलते रहे हैं. 45 सालों से वो समाजवादी राजनीति की हर करवट के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष गवाह रहे हैं. कांग्रेस की संस्कृति और नीतियों के विरोध हमेशा ही आवाज बुलंद करने वाले शरद यादव बिहार की राजनीति के साथ ही साथ देश की राजनीतिक के भी बहुत बड़ा योगदान रखते हैं. आपातकाल के दौरान 25 जून 1975 को वह भी जेल में डाल दिए गए थे. पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा गांधी ने इस दौरान आंदोलन के जनक जयप्रकाश नारायण समेत देश के सभी दिग्गज नेताओं को जेल में डाल दिया था. इन नेताओं में युवा शरद यादव भी शामिल थे जिनकी उम्र उस वक़्त केवल 28 साल थी और वो उनकी सियासी ज़िन्दगी के बिल्कुल शुरुआती साल थे. इस दौरान उनके पैरों में चोट भी लगी जिसका असर आजतक उनके पैरों में है. हालांकि, शरद यादव मौजूदा राजनीति में कांग्रेस के सहयोगी के तौर पर हैं.
वीएम तारकुंडे: आपातकाल के सच्चे नायकों में से एक मुंबई हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश वीएम तारकुंडे थे. 1974 में इंदिरा गांधी की तानाशाही प्रवृत्तियां दिखने लगी थीं, तब तारकुंडे और जयप्रकाश नारायण ने 'सिटिजंस फॉर डेमोक्रेसी' की स्थापना की थी. जयप्रकाश नारायण को जून 1975 में विपक्षी नेताओं और छात्र कार्यकर्ताओं के साथ उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया था.
सीवी सुब्बाराव: आपातकाल के खिलाफ अग्रणी कार्यकर्ताओं में से एक अर्थशास्त्री सीवी सुब्बाराव थे. सुब्बाराव आंध्र विश्वविद्यालय के प्रतिभाशली छात्र थे, जिन्हें इमरजेंसी में गिरफ्तार कर लिया गया था. सन 1976 में वह एमए फाइनल की परीक्षा में जेल से ही शामिल हुए. मौखिक परीक्षा देना अनिवार्य था, इसलिए सुब्बाराव को जंजीरों में जकड़कर विश्वविद्यालय में लाया गया. इसके बावजूद उन्होंने विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान हासिल किया. 1977 में आपातकाल के खत्म होने के बाद सुब्बाराव दिल्ली के एक कॉलेज में अर्थशास्त्र पढ़ाने लगे. उन्होंने अपने आपको मानवाधिकार आंदोलन में झोंक दिया. वह देश के दूरदराज कोनों में जाकर सांप्रदायिक हिंसा, कैदियों के साथ दुव्र्यवहार, उद्योगों और खदान मालिकों द्वारा गांव की जमीन के अतिक्रमण जैसे मुद्दों पर रिपोर्ट करते रहे.
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