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गुमनाम जिंदगी जी रही सेक्स वर्करों के बच्चों को स्वर देता 'जुगनू'

jantaserishta.com
11 Dec 2022 7:51 AM GMT
गुमनाम जिंदगी जी रही सेक्स वर्करों के बच्चों को स्वर देता जुगनू
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सेक्स वर्करों का मानना है कि आज यहां के बच्चे कड़ी मेहनत कर ऊपर उठने की कोशिश कर रहे हैं।
मुजफ्फरपुर (आईएएनएस)| आम तौर पर बदनाम गलियों की गुमनाम जिंदगी गुजार रही सेक्स वर्करों के बच्चों की स्वीकार्यता और सम्मान नहीं मिल पाता, लेकिन इन्हीं गुमनाम गलियों के बच्चो के लिए आज जुगनू आवाज बन गया है। दरअसल, जुगनू एक त्रैमासिक हस्तलिखित पत्रिका है, जिसके लेखक ऐसे ही बच्चे हैं।
सेक्स वर्करों का मानना है कि आज यहां के बच्चे कड़ी मेहनत कर ऊपर उठने की कोशिश कर रहे हैं। मुजफ्फरपुर के चतुर्भुज स्थान में पली बढ़ी और सामाजिक सरोकार के कार्यों को लेकर पहचानी जाने वाली नसीमा खातून की पहल से इस पत्रिका की शुरूआत 1994 में की गई थी।
वे कहती हैं कि जुगनू के जन्म के पीछे वंचित समाज की बेटियों के उस भय की कसक थी जो उन्हें अपनी किसी भी समस्या के समाधान के लिए मुख्यधारा के समाज या मीडिया वालों से मिलने से रोकती थी। डर समाज के उन सभी लोगों से भी था जिन्होनें इस बदनाम गली की बेटियों के हुनर व इल्म को हमेशा से ताक पर रखा।
उन्होंने कहा कि तब सवाल था कि ये बेटियां समाज में अपना हुनर व इल्म साबित करना चाहती थीं लेकिन ये समाज के सामने खुलकर आया जाय तो किसके भरोसे?
उन्होंने कहा कि इस डर को धक्का देकर आगे बढ़ने और समाज के सामने खुल कर, अपने तरीके से और अपनी ही जुबान में अपने हौसले, हुनर और सपनों को पेश करने की जद्दोजहद से 2004 में जुगनू का जन्म हुआ और अब निरंतर आगे बढ़ रहा।
शुरूआती दौर में 'जुगनू' नाम का एक त्रैमासिक केवल छह पृष्ठों का था, लेकिन कालांतर में लोगों की पसंद बनता चला गया और यह आज 36 पृष्ठों तक पहुंच गया। इस हस्तलिखित पत्रिका का नसीमा संपादन करती है और सेक्स वर्कर्स के बच्चों द्वारा लेख प्रकाशित किया जाता है।
पहले हस्तलिखित पत्रिका जुगनू का प्रकाशन बिहार से होता था लेकिन आज भारत के चार राज्यों राजस्थान, भोपाल, बिहार, महाराष्ट्र से हो रहा है।
नाम नही प्रकाशित करने की शर्त पर चतुर्भुज स्थान की एक सेक्स वर्कर बताती है कि वंचित समुदाय के बच्चों द्वारा लिखित इस पत्रिका में हमारी पहचान, 'बेटियों की चिठ्ठियां', 'हमारी पहल', 'कानून', 'अनुभव', 'सपने' आदि कॉलम हैं और इन्हीं हिस्सों में उनके लेख प्रकाशित होते हैं।
नसीमा सेक्स वर्कर्स के अन्य बच्चों की मदद से यह अभियान चलाती हैं, जो मुफ्त में काम करते हैं। लड़के और लड़कियां समाचार एकत्र करने के लिए साइकिल और अन्य साधनों से बाहर निकलती हैं और फिर हस्तलिखित कहानियां पत्रिका को देती हैं।
एक सेक्स वर्कर बताती हैं पहले ये बच्चे किसी भी कार्यालय में जाने से झिझकते थे लेकिन आज ये बिना किसी झिझक के अधिकारियों, लोगों से मिलते हैं और जानकारियां प्राप्त करते हैं। इनमे कई लड़कियां हैं।
हाल ही में जुगनू पत्रिका के दो पत्रकार मुजफ्फरपुर जिलाधिकारी प्रणव कुमार से मिले थे। इस पहल और पत्रिका की जिलाधिकारी ने भी तारीफ की थी।
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