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झारखंड गवर्नर की 'अति सक्रियता' पर झामुमो की चढ़ी त्योरियां, खुले टकराव के मोर्चे
jantaserishta.com
2 July 2023 5:42 AM GMT
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रांची (आईएएनएस)। झारखंड में सत्तारूढ़ पार्टी और राजभवन के बीच तनाव-टकराव एक बार फिर सतह पर आता दिख रहा है। राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन राज्य के कोने-कोने का दौरा कर रहे हैं। वह ग्रामीणों और विभिन्न समुदायों के लोगों से लगातार सीधा संवाद कर रहे हैं। उनकी यह “अति सक्रियता” राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन, खास तौर पर इस गठबंधन की अगुवाई कर रहे झारखंड मुक्ति मोर्चा को नागवार गुजर रही है।
पार्टी ने उनपर सीधे-सीधे भाजपा के इशारे और उसके एजेंडे पर काम करने का आरोप मढ़ दिया है। राज्यपाल ने भले इस आरोप पर खुद अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन उनकी तरफ से भाजपा की प्रदेश इकाई ने म्यान से अपनी तलवार निकाल ली है। सीपी राधाकृष्णन झारखंड के 11वें राज्यपाल हैं। बीते 18 फरवरी को शपथ ग्रहण के साथ शुरू हुए उनके कार्यकाल के अभी बमुश्किल साढ़े चार महीने पूरे होने को हैं, लेकिन राजभवन और सरकार के बीच टकराव का सिलसिला कमोबेश पिछले डेढ़ साल से जारी है।
राधाकृष्णन के पहले रमेश बैस का झारखंड के राज्यपाल के तौर पर 19 महीने का कार्यकाल रहा। सीएम हेमंत सोरेन के नाम पर खनन लीज अलॉट किए जाने के मसले पर राजभवन और राज्य सरकार के बीच तलवारें इस कदर खिंची थीं कि चुनाव आयोग से लेकर अदालत तक में बहस और सुनवाइयों के कई चैप्टर लिखे गए। इस बीच धरना-प्रदर्शन, मोर्चाबंदी, डिनर डिप्लोमेसी, रिजॉर्ट पॉलिटिक्स और विधानसभा के विशेष सत्र की कई कड़ियां जुड़ीं। इस तनातनी में सीएम के इस्तीफे से लेकर सरकार की बर्खास्तगी और सड़कों पर आंदोलन तक के संगीन हालात पैदा होते रहे।
फिर एक रोज राज्यपाल रमेश बैस का तबादला महाराष्ट्र हो गया। वह बीते फरवरी का महीना था। उनकी जगह सीपी राधाकृष्णन ने ली। इसके साथ ही लगा कि राजभवन और राज्य सरकार- दोनों संवैधानिक प्रतिष्ठानों के बीच ‘युद्धविराम’ की स्थिति बहाल हो गई है। लेकिन, पिछले एक हफ्ते में जो हालात पैदा हुए हैं उसमें टकराव के मोर्चे फिर खुलते दिख रहे हैं। सीपी राधाकृष्णन को उनके गृह राज्य में सक्रिय राजनीतिक कार्यकाल के दौरान मीडिया में अक्सर ‘तमिलनाडु का मोदी’ बताया जाता था। किसी राजनेता को राज्यपाल बनाए जाने को प्रायः सक्रिय राजनीति से उसके रिटायरमेंट के रूप में देखा जाता है, लेकिन सीपी राधाकृष्णन से झारखंड की सत्ताधारी पार्टी जेएमएम की नाराजगी की वजह उनकी “सक्रियता” ही है।
जैसे किसी चुनावी अभियान के दौरान निकले सक्रिय राजनेता एक दिन में तीन-तीन, चार-चार कार्यक्रम करते हैं, राज्यपाल राधाकृष्णन ने भी मई-जून में झारखंड के विभिन्न जिलों के कई दौरे उसी अंदाज में पूरे किए हैं। मसलन पिछले 18-19 जून को उन्होंने पांच जिलों पूर्वी सिंहभूम, पश्चिम सिंहभूम, सरायकेला-खरसावां, खूंटी और रांची में दस कार्यक्रमों में शिरकत की। इनमें से सात ‘जनसंवाद’ के कार्यक्रम थे, जिसमें उन्होंने स्कूलों के छात्र-छात्राओं, ग्रामीणों, किसानों, महिला स्वयं सहायता समूहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ सीधे-सीधे संवाद किया।
इसी तरह बीते 23 से 25 जून को उन्होंने छह जिलों पाकुड़, साहिबगंज, गोड्डा, देवघर, जामताड़ा और धनबाद में एक के बाद बाद कई कार्यक्रमों में भाग लिया। ज्यादातर कार्यक्रम जनसंवाद के ही थे। जनसंवाद के दौरान वह लोगों की समस्याएं तो सुनते ही हैं, उन्हें केंद्र सरकार की कल्याणकारी एवं विकास योजनाओं के बारे में भी बताते हैं। खास बात यह कि वह अपने प्रायः हर भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हैं और उन्हें आदर्श राजनेता बताते हैं।
सीपी राधाकृष्णन अपने भाषणों में यह बात कई बार कह चुके हैं कि वह राजभवन में आराम करने वाले राज्यपाल नहीं हैं। अब राज्य की जनता को अपनी बातों या समस्याओं को लेकर राजभवन आने की जरूरत नहीं है, बल्कि वह खुद आम लोगों तक जाएंगे। वह ऐसा कर भी रहे हैं। संभवतः वह झारखंड के पहले राज्यपाल हैं, जिन्होंने झारखंड के सभी 24 जिलों का दौरा कर लिया है। ये सभी दौरे उन्होंने सड़क मार्ग से किए हैं। उनके कार्यक्रम सुदूर गांव-देहात, पंचायत भवन, छोटे-बड़े स्कूलों, सामुदायिक भवनों में होते हैं। वह पगडंडियों से गुजरने से लेकर नदी-तालाब तक देख-समझ रहे हैं।
सच यह है कि उन्होंने अब तक के साढ़े चार महीने के कार्यकाल में जितने गांवों का दौरा किया है और जितने सार्वजनिक कार्यक्रम किए हैं, उतना किसी भी सक्रिय राजनीतिक पार्टी के किसी नेता ने नहीं किया है। वह भी तब, जब वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनावों को लेकर सियासी हलचल शुरू हो चुकी है। राज्यपाल की इसी अति सक्रियता पर सत्ताधारी गठबंधन की त्यौरियां चढ़ गई हैं। उनपर सबसे पहले हमला झारखंड विधानसभा के स्पीकर रबींद्रनाथ महतो ने किया। महतो विधानसभा में नाला निर्वाचन क्षेत्र से झामुमो का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने बीते 25 जून को अपने गृह क्षेत्र में झामुमो के कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में मंच से राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन पर जमकर निशाना साधा।
स्पीकर ने कहा कि राजभवन भाजपा के इशारे पर काम कर रहा है। विधानसभा के विशेष सत्रों में पारित प्रस्तावों को लागू करने में राजभवन लगातार अड़चन पैदा कर रहा है। स्पीकर ने कहा कि विधानसभा में विशेष सत्र बुलाकर आदिवासियों की धार्मिक पहचान सुनिश्चित करने के लिए सरना धर्म कोड लागू करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित किया गया, लेकिन राजभवन ने इसे लौटा दिया। झारखंड में स्थानीयता (डोमिसाइल) तय करने के लिए 1932 के जमीन खतियान को आधार बनाने का बिल भी विधानसभा से पारित कर राजभवन को भेजा गया लेकिन वह भी लौटा दिया गया। इससे साफ है कि राजभवन भी भाजपा के एजेंडे पर चल रहा है। स्पीकर ने इसे लेकर ट्वीट भी किया है।
स्पीकर के बयान से सियासी माहौल गरमाया तो भाजपा ने तुरंत जवाबी हमला बोला। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश की अगुवाई में पार्टी का एक शिष्टमंडल 27 जून को राजभवन जा पहुंचा। शिष्टमंडल ने राज्यपाल को एक ज्ञापन सौंपा, जिसमें राजभवन के खिलाफ स्पीकर के बयान को असंवैधानिक, अमर्यादित और अशोभनीय बताते हुए विधि सम्मत कार्रवाई का अनुरोध राज्यपाल से किया किया गया। भाजपा नेताओं ने कहा कि स्पीकर का पद संवैधानिक है, लेकिन वह मर्यादाएं भूलकर पार्टी के प्रवक्ता की तरह बयानबाजी कर रहे हैं। फिर झामुमो ने भी इसका जवाब आक्रामक अंदाज में दिया। 28 जून को जेएमएम ने सीनियर लीडर सुप्रियो भट्टाचार्य ने पार्टी कार्यालय में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में राज्यपाल और भाजपा को एक बता दिया। उन्होंने कहा कि बड़ी अजीब बात है कि राज्यपाल राज्य के तमाम जिलों का दौरा कर मोदी जी और भाजपा का गुणगान कर रहे हैं। राज्यपाल से भाजपा नेताओं की मुलाकात का जिक्र करते हुए कहा कि वे उन्हें राज्यपाल को उनके अगले दौरे और उसके एजेंडे टास्क देने गए थे। ये जिक्र करने गये थे कि अगला दौरा किस प्रमंडल में होगा, उसके मुद्दे क्या रहेंगे?
झामुमो ने प्रेस कांफ्रेंस में राज्यपाल पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि अगर आप ही भाजपा के केंद्रीय मंत्रियों और नेताओं का काम करेंगे तो फिर वे क्या करेंगे? हर सप्ताह भाजपा के केंद्रीय मंत्रियों और केंद्रीय नेताओं का दौरा हो ही रहा है। वे लोग मोदी जी-मोदी जी, 9 साल, 9 साल का गुणगाण कर रहे हैं। यह काम उन्हें ही करने दिया जाए। राज्यपाल का काम राज्य सरकार के निर्णयों और कार्यों में उचित परामर्श देने का होता है न कि केंद्र की योजनाओं का प्रचार-प्रसार का।
पार्टी ने कहा कि राज्यपाल लगातार जिलों का दौरा कर रहे हैं, मगर वे राज्य की कई महत्वपूर्ण योजनाओं पर ध्यान नहीं दे रहे हैं। सर्वजन पेंशन स्कीम, ओल्ड पेंशन स्कीम, सावित्री फूले बाई स्कीम सहित राज्य सरकार की कई महत्वपूर्ण योजनाएं हैं, मगर उसका जिक्र तक नहीं करते। हालांकि सीएम हेमंत सोरेन से पत्रकारों ने जब उनकी पार्टी जेएमएम की ओर से राज्यपाल पर लगाए जा रहे आरोपों के बारे में पूछा तो उन्होंने डिप्लोमैटिक अंदाज में जवाब दिया। सोरेन ने कहा, “ मुझे इस बारे में बहुत जानकारी है। राज्यपाल लगातार राज्य के इलाकों में जा रहे हैं। उनके कहीं आने-जाने पर रोक तो है नहीं। फिलहाल मैं इसपर ज्यादा टिप्पणी नहीं करूंगा।”
बहरहाल इसपर हर किसी की निगाह है कि सियासी बयानबाजी और डिप्लोमैसी के बीच राजभवन और सत्ताधारी पार्टी के बीच का टकराव आगे कौन सी शक्ल अख्तियार करता है।
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