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JDU का आधार कुर्मी तो VIP का निषाद समाज

Nilmani Pal
24 Jan 2022 12:46 PM GMT
JDU का आधार कुर्मी तो VIP का निषाद समाज
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बिहार में सरकार चला रहा एनडीए उत्तर प्रदेश में तीन धड़ों में बंटा हुआ है. जेडीयू और विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) उत्तर प्रदेश में बीजेपी के खिलाफ चुनाव ताल ठोक रही है. वीआईपी ने 30 सीटों पर अपने उम्मीदवार भी घोषित कर दिए हैं जबकि जेडीयू ने भी 26 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. सवाल उठता है कि बिहार के ये दल यूपी में अपना खेल बनाएंगे और फिर बीजेपी का बिगाड़ेंगे?

जेडीयू यूपी चुनाव में पहले बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की तैयारी में थी, लेकिन बीजेपी ने उसे भाव नहीं दिया तो उसने अकेले लड़ने का ऐलान कर दिया है. जेडीयू उत्तर प्रदेश जिन 26 सीटों पर अपने कैंडिडेट उतारने जा रही है, उनमें ज्यादातर पूर्वांचल की हैं और कुर्मी बहुल मानी जाती है. इनमें 22 सीटें ऐसी हैं जहां पर बीजेपी गठबंधन का कब्जा है. जेडीयू ने जिन सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान किया है उनमें से 19 पर 2017 के चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवार जीते थे और 3 पर बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) को मिली थी. इस तरह से 26 में से 22 सीटों पर बीजेपी गठबंधन के विधायक हैं. सिर्फ चार सीटें ऐसी हैं, जहां दूसरी पार्टियों के विधायक हैं. इनमें से 3 समाजवादी पार्टी की तो एक पर कांग्रेस का विधायक है.

वहीं, बिहार में बीजेपी के दूसरी सहयोगी विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) के मुकेश सहनी भी पूरे दमखम के साथ यूपी में चुनावी मैदान में उतरे हैं. मुकेश सहनी अभी तक 30 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार चुके हैं जबकि कुल 165 सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर रखा है. सहनी का फोकस खासकर पूर्वांचल और बुंदेलखंड की उन सीटों पर है, जहां पर निषाद वोटर अहम भूमिका में है.

बीजेपी ने निषाद पार्टी के साथ गठबंधन पर यूपी में निषाद समुदाय के वोटों को साधने का दांव चला है. लेकिन, मुकेश सहनी की नजर भी इसी वोटबैंक पर है. वीआईपी ने अपने आधे से ज्यादा प्रत्याशी सिर्फ निषाद समुदाय के उतारने का प्लान बनाया है. इसके अलावा वे कुर्मी और कुशवाहा प्रत्याशी पर भी दांव लगा रहे हैं. मुकेश सहनी लगातार निषाद आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी को घेर रहे हैं. वीआईपी पार्टी के कैंडिडेट निषाद समुदाय के वोटों को अपने पाले में लाने में कामयाब रहे तो बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी हो सकती है.

जेडीयू ने यूपी में सीटों के नाम तो घोषित कर दिए, लेकिन उम्मीदवारों के नाम का ऐलान नहीं किया. जेडीयू का यूपी में कोई खास संगठन नहीं है, लेकिन नीतीश कुमार का अपने कुर्मी समाज के बीच सियासी आधार जरूर है. सूत्रों का कहना है कि जेडीयू की नजर बीजेपी में टिकट मांगने वाले नेताओं पर है.

बीजेपी अपने कई मौजूदा विधायकों का टिकट काट रही है. ऐसे में जेडीयू बीजेपी के उम्मीदवारों का नाम फाइनल होने का इंतजार करेगी. बीजेपी अपने जिस किसी मजबूत नेता को टिकट से वंचित करेगी, जेडीयू उसे अपना टिकट देकर चुनावी मैदान में उतार सकती है.

जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष लल्लन सिंह कह रहे हैं कि आरसीपी सिंह दो तीन महीने पहले से बीजेपी के साथ गठबंधन के लिए बात कर रहे थे. बीजेपी से सीटों का तालमेल होगा, हम इसी भरोसे रह गए. ऐसा नहीं तो हम यूपी के चुनाव में पूरी तैयारी के साथ उतरते. अभी हम 50-60 सीटों पर चुनाव लड़ने जा रहे हैं, लेकिन पहले पता होता तो 100 सीटों पर चुनाव लड़ते.

दरअसल, यूपी में जेडीयू को अपने राजनीतिक विस्तार की संभावनाएं दिख रही हैं. जातीय समीकरण उसके अनुकूल हैं. बिहार से सटे यूपी के जिलों में कुर्मी समुदाय की बड़ी आबादी है. सूबे में कुर्सी समुदाय की आबादी यादवों के लगभग बराबर है. इसके अलावा अति पिछड़े समुदाय की भी अच्छी तादाद है. जेडीयू का सियासी आधार कुर्मी वोटबैंक पर है, जो यूपी में बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है.

यूपी में करीब तीन दर्जन विधानसभा सीटें और 8 से 10 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जिन पर कुर्मी समुदाय निर्णायक भूमिका निभाते हैं. यूपी में कुर्मी जाति की संत कबीर नगर, मिर्जापुर, सोनभद्र, बरेली, उन्नाव, जालौन, फतेहपुर, प्रतापगढ़, कौशांबी, इलाहाबाद, सीतापुर, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थ नगर, बस्ती और बाराबंकी, कानपुर, अकबरपुर, एटा, बरेली और लखीमपुर जिलों में खासी आबादी है. यहां की विधानसभा सीटों पर कुर्मी समुदाय या जीतने की स्थिति में है या फिर किसी को जिताने की स्थिति में. जेडीयू इन्हीं इलाके की सीटों पर चुनाव लड़ने का दम भर रही है, जो बीजेपी की चिंता बढ़ा सकती है.

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