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संभावा जताई जा रही है कि ड्रोन्स के लिए हो सकता है किसी लंबी दूरी के या फिर लोकल लॉन्चपैड का इस्तेमाल किया गया हो. ड्रोन की लॉन्चिंग के लिए बिल्डिंग टॉप या खुले मैदान की जरूरत होती है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर ब्लास्ट के मामले की NIA और NSG दोनों ही टीमें जांच कर रही हैं. इस मामले में NIA और NSG की टीमों को ब्लास्ट की साइट से किसी भी ड्रोन का कोई मलबा नहीं मिला है. ऐसे में NSG की टीम इस बात की संभावना की तलाश कर रही है कि कहीं ड्रोन्स के लिए लंबी दूरी के लॉन्चिंग पैड का इस्तेमाल तो नहीं किया गया? वहीं आर्मी की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि 27-28 जून की रात को जम्मू में दो ड्रोन देखे गए, जिन पर अलर्ट जवानों ने फायरिंग भी की. द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक आधिकारिक सूत्र बताते हैं कि NSG और NIA की टीमों को एयरफोर्स स्टेशन की ब्लास्ट साइट से ड्रोन का कोई मलबा नहीं मिला है.
टीमें दोनों एंगल से मामले की जांच कर रही है, जिसमें हो सकता है कि किसी लोकल लॉन्च पैड के जरिए ड्रोन का इस्तेमाल किया गया हो, या फिर किसी लंबी दूरी से लॉन्च पैड का इस्तेमाल. हालांकि अभी तक किसी भी संदिग्ध जगह की पहचान एयरफोर्स बेस के पास लॉन्च पैड के रूप में नहीं की गई है. ये बेस अंतरराष्ट्रीय सीमा से महज 16 किमी दूर है.
पेलोड गिराकर भाग निकले ड्रोन?
ऐसा लगता है कि ड्रोन पेलोड को गिराने और मौके से भागने में कामयाब रहे होंगे. ड्रोन्स का उड़ाने के लिए खुले मैदान या फिर बिल्डिंग के टॉप की जरूरत होती है. इनकी फ्रीक्वेंसी कंट्रोल में होती है, जिससे ये ट्रेडीशनल रडार सिस्टम से बच जाते हैं. ये करीब 30 से 40 किमी की दूरी तय कर सकते हैं. पुलिस सूत्र बताते हैं कि बेस पर काम करने वाले कुछ लोगों से मामले में पूछताछ की गई है. अब तक भारत ने जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर ब्लास्ट के लिए किसी भी देश को जिम्मेदार नहीं ठहराया है.
27-28 जून की रात देखे गए ड्रोन
सैन्य प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल आनंद के मुताबिक आर्मी ने जम्मू के कालूचक में एक मिलिट्री एरिया के पास 27-28 जून की रात को दो ड्रोन देखे थे और उन पर फायरिंग भी की. ड्रोन देखे जाने के बाद इलाके में अलर्ट कर दिया गया था. इसी सतर्कता के चलते एक बड़ा हादसा टल गया. सुरक्षाबल हाई अलर्ट पर हैं और तलाशी अभियान चलाया जा रहा है. कश्मीर में अलर्ट है और श्रीनगर और अवंतीपोरा हवाई अड्डों पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है, यहां पहले भी आतंकी हमले हो चुके हैं. हमले में ड्रोन के इस्तेमाल के बढ़ते संदेह ने सुरक्षा एजेंसियों को तनाव में डाल दिया है, क्योंकि यहां फिदायीन हमले आम हैं.
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