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जमीयत उलेमा-ए हिंद की बैठक, जानें हर एक जानकारी

jantaserishta.com
30 May 2022 5:48 AM GMT
जमीयत उलेमा-ए हिंद की बैठक, जानें हर एक जानकारी
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नई दिल्ली: मुस्लिम समाज से जुड़े बड़े संगठन जमीयत उलेमा-ए हिंद ने दो दिन तक मौजूदा हालात पर विमर्श किया. यूपी के देवबंद में चले इस सम्मेलन में संगठन की तरफ से कई तरह के प्रस्ताव लाए गए और भविष्य की रणनीति पर फैसले लिए गए. समान नागरिक संहिता से लेकर ज्ञानवापी मस्जिद विवाद पर क्या रुख अख्तियार करना है, इसे लेकर भी सम्मेलन में जुटे धर्मगुरुओं ने अहम निर्णय लिए.

28 और 29 मई को सहारनपुर के देवबंद में जमीयत की जलिस-ए-मुंतजिमा यानी गवर्निंग बॉडी का सम्मेलन हुआ. इस सम्मेलन की अध्यक्षता जमीयत के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने की. सम्मेलन के पहले दिन मौलाना महमूद मदनी ने सांप्रदायिकता और नफरत का जवाब प्रेम और सद्भाव से देने का आह्वान किया.
उन्होंने यहां तक कह दिया कि अगर किसी को हमारे धर्म का पालन करना पसंद नहीं है और जो पाकिस्तान चले जाने की बात करते हैं वो खुद ही इस महान देश से चले जाएं. महमूद मदनी ने अपने बयानों में बार-बार ये जोर भी दिया कि ये मुल्क हमारा है और इसकी खातिर हम सबकुछ कुर्बान करने को तैयार हैं. एकता और शांति का संदेश देते हुए अधिवेशन में कई अहम फैसले भी लिए गए.
जमीयत के अधिवेशन में क्या-क्या फैसले हुए
-देश के हर नागरिक को अपने धर्म का स्वतंत्र रूप से पालन करने का अधिकार है, लिहाजा मुस्लिम पर्सनल लॉ को खत्म करने का कोई भी प्रयास सफल नहीं होगा. सरकार इसमें दखलअंदाजी कर रही है, इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
-प्राचीन इबादतगाहों पर बार-बार विवाद खड़ा कर देश में अमन को खराब करने की कोशिश की जा रही हैं. वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की ईदगाह मस्जिद और दूसरी अन्य मस्जिदों के खिलाफ इस तरह के अभियान चल रहे हैं और ऐसे लोगों को समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों का रवैया भी सही नहीं है. ऐसे विवादों को राजनीतिक लाभ के लिए उठाया जा रहा है. निचली अदालतों के आदेशों से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली है और पूजा स्थल एक्ट (वर्शिप एक्ट) 1991 का उल्लंघन किया गया है.
-देश के बहुसंख्यक वर्ग के दिमाग में जहर घोलने की कोशिश हो रही है. मुसलमानों, मुस्लिम शासकों और इस्लामी सभ्यता के खिलाफ निराधार प्रचार चल रहा है. इससे भारत की छवि को नुकसान पहुंच रहा है और देश धार्मिक अतिवाद और कट्टरता का प्रतीक बनता जा रहा है, लिहाजा इस तरह की कोशिशों पर केंद्र सरकार ध्यान दे और रोक लगाए.
-अधिवेशन में इस्लाम धर्म और पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ की जाने वाली टिप्पणियों के खिलाफ भी रोष प्रकट किया गया और प्रस्ताव किया गया कि सरकार जल्द से जल्द ऐसा कानून बनाए जिससे इस तरह के शर्मनाक कृत्यों पर रोक लगे और सभी धर्मों के महापुरुषों का सम्मान हो.
-नफरत के बढ़ते हुए दुष्प्रचार को रोकने के उपायों पर भी अधिवेशन में चर्चा की गई.
-मुस्लिम नौजवानों और छात्र संगठनों को गुमराह करने की कोशिशों के खिलाफ चर्चा और ऐसी साजिशों से बचने की अपील की गई.
-ये कहा गया कि मुसलमान अपने रवैये से लोगों के बीच ये संदेश दें कि वो सिर्फ अपने धर्म को ही सर्वोपरि नहीं मानते हैं, बल्कि दूसरे धर्मों का भी सम्मान करते हैं.
-इस्लाम के भाईचारे के संदेश को लोगों तक पहुंचाया जाए और दूसरे धर्मों के बारे में भी चर्चा की जाए.
-ये प्रस्ताव लाया गया कि इस्लाम धर्म के खिलाफ उन्माद फैलाने वाले मेनस्ट्रीम और यूट्यूब चैनलों पर सरकार रोक लगाए.
-धर्म संसद के जरिए फैलाई जा रही नफरत के खिलाफ समाज में सहिष्णुता और सद्भाव बढ़ाने के लिए 1000 सद्भावना मंच स्थापित करने का फैसला लिया गया.
-अधिवेशन में हर साल 15 मार्च को 'विश्व इस्लामोफोबिया दिवस' को मनाने का निर्णय भी लिया गया.
- अधिवेशन में हिंदी भाषा अपनाने पर भी जोर दिया गया. प्रस्ताव में कहा गया कि उर्दू से हमारा सामुदायिक और राष्ट्रीय संबंध है लेकिन इसका ये मतलब नहीं है कि हम बाकी भाषाओं से दूरी बनाएं.
इसके अलावा अधिवेशन में एक घोषणा पत्र भी जारी किया गया और कहा गया कि मुसलमानों को डराने और निराश करने का प्रयास किया जा रहा है. लेकिन इस माहौल से घबराने की जरूरत नहीं है. कुरान, हदीस और पैंगबर की शिक्षाओं के मद्देनजर मुसलमान ऐसा रास्ता चुनें जो शांति और अमन का माध्यम बने. घोषणा पत्र में ये भी कहा गया कि गलती से भी अगर हम भड़क गए या फिर निराशा में डूब गए और धैर्य एवं संयम के मार्ग को त्याग कर कोई गलत प्रतिक्रिया कर बैठे तो समझ लीजिए कि उससे साम्प्रदायिक शक्तियों के उद्देश्य और लक्ष्य पूरे होंगे.
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