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'यह कहना संभव नहीं'...जब देश के मुख्य न्यायाधीश ने कही बड़ी बात

jantaserishta.com
8 March 2024 3:11 AM GMT
यह कहना संभव नहीं...जब देश के मुख्य न्यायाधीश ने कही बड़ी बात
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'यह कहना संभव नहीं'...जब देश के मुख्य न्यायाधीश ने कही बड़ी बात

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीशों को राज्य के उपभोक्ता आयोग के प्रमुख के रूप में नियुक्त करने के लिए परीक्षा से छूट मिलनी चाहिए। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने मामले में टिप्पणी की कि हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश को परीक्षा देने के लिए कहना संभव नहीं है। यह तो सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण का अध्यक्ष बनाने से पहले पर्यावरण पर परीक्षा के लिए कहने जैसा है। इससे पहले 3 फरवरी को सीजेआई ने आयोगों में नियुक्ति प्रक्रिया पर ऐतराज जताया था और केंद्र से जवाब दाखिल करने को कहा था। सुप्रीम कोर्ट ने इस बार आदेश दिया है कि आयोगों के प्रमुख पदों पर परीक्षा में छूट दी जानी चाहिए।
इस मामले में उपभोक्ता आयोगों ने जिला और राज्य उपभोक्ता आयोगों के अध्यक्ष और सदस्यों की चयन प्रक्रिया को निष्पक्ष बनाने के लिए केंद्र से सुझाव मांगे थे क्योंकि उसने कहा था कि लिखित या मौखिक परीक्षा नहीं लेने से अयोग्य लोगों को बैकडोर से एंट्री मिल सकती है। इससे नुकसान यह होगा कि ऐसे व्यक्तियों के पास कमान होगी, जो इस पद के लिए योग्य नहीं हैं।
मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) धनंजय वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने उन अपीलों पर यह आदेश पारित किया, जिस पर सितंबर 2023 में केंद्र ने एक अधिसूचना को जारी की थी कि राज्य और जिला उपभोक्ता मंचों के प्रमुखों और सदस्यों के लिए सामान्य ज्ञान सहित विभिन्न विषयों पर लिखित परीक्षा उत्तीर्ण करना अनिवार्य होगा। केंद्र की इस अधिसूचना के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की गई थी।
हालांकि केंद्र की ओर से जारी अधिसूचना सुप्रीम कोर्ट के 3 मार्च 2023 के उस फैसले के मुताबिक था, जिसमें शीर्ष अदालत ने उपभोक्ता फोरम में चयन प्रक्रिया के लिए परीक्षा को अनिवार्य बताया था। लेकिन फिर, पिछले महीने देश की टॉप अदालत ने केंद्र को सुझाव दिया कि वह इस नियम में संशोधन पर विचार करे क्योंकि परीक्षा को लेकर नियुक्ति में बाधा आ सकती है। इसके बाद केंद्र ने पिछले सप्ताह एक आवेदन दायर कर नियमों में संशोधन करने की इच्छा जताई थी। कहा था कि परीक्षा न तो "व्यवहार्य" है और न ही "वांछनीय"। केंद्र ने सिफारिश की कि राज्य और जिला उपभोक्ता आयोगों के अध्यक्षों को परीक्षा देने से छूट दी जानी चाहिए। मौजूदा नियमों के तहत, उच्च न्यायालय का एक पूर्व जज राज्य उपभोक्ता फोरम का अध्यक्ष बनने का पात्र है।
सीजेआई ने मामले में सुनवाई करते हुए कहा, “उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश को परीक्षा देने के लिए कहना संभव नहीं है। यह सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश को राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त करने से पहले पर्यावरण पर परीक्षा देने के लिए कहने जैसा है। जिला मंच के अध्यक्षों पर पूर्व जिला न्यायाधीश या जिला न्यायाधीश योग्य व्यक्ति हो सकते हैं।"
पीठ में शामिल न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा ने कहा, “चयन परीक्षा न होना किसी के लिए बैक डोर से एंट्री करने जैसा होगा। इसके अलावा, इसे राज्यों पर छोड़ने का भी खतरा है क्योंकि इसमें बेलगाम विवेकाधिकार होंगे।'' पीठ ने कहा, “जहां तक ​​राज्य उपभोक्ता आयोगों के अध्यक्ष की नियुक्ति का सवाल है, हम निर्देश देते हैं कि लिखित परीक्षा और मौखिक परीक्षा आयोजित करने की आवश्यकता को फिलहाल नहीं किया जाएगा।'' अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसी नियुक्तियां संबंधित उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श और सहमति से होंगी।"
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