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शरीर से ज्यादा मन को स्वस्थ बनाना जरूरी

Nilmani Pal
7 Oct 2023 7:15 AM GMT
शरीर से ज्यादा मन को स्वस्थ बनाना जरूरी
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- ललित गर्ग-

प्रतिवर्ष पूरी दुनिया में 10 अक्टूबर को विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लोगों में जागरूकता लाना है और समर्थन जुटाना है। मानव समुदाय को तनावरहित जीवन देकर अच्छा स्वास्थ्य और लंबी आयु प्राप्त करने में मदद करना भी इस दिन का ध्येय है। वैज्ञानिक प्रगति, औद्योगिक क्रांति, बढ़ती हुई आबादी, शहरीकरण, महंगाई, बेरोजगारी एवं आधुनिक जीवन के तनावपूर्ण वातावरण के कारण मानसिक रोगों में भारी वृद्धि हुई है। यह किसी एक राष्ट्र के लिये नहीं, समूचे विश्व के लिये चिन्ता का विषय हैं। आज जीवन का हर क्षेत्र समस्याओं से घिरा है, आपाधापी एवं घटनाबहुल जीवन के कारण तनाव एवं दबाव महसूस किया जा रहा है, चाहे वह काम हो, रिश्ते हों, जीवन से उम्मीदें हों। हर आदमी संदेह, अंतर्द्वन्द्व और मानसिक उथल-पुथल की जिन्दगी जीने को विवश है। इन जटिल से जटिलतर होते हालातों में अच्छे मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखना महत्वपूर्ण हो गया है। इस वर्ष की थीम है ‘मानसिक स्वास्थ्य एक सार्वभौमिक मानव अधिकार है।’ मनोविकार जब किसी शारीरिक व्याधि के रूप में प्रकट होते हैं, तब वे मनोकायिक रोग या ‘सायकोसोमेटिक डिज़्ाीज’ के रूप में पहचाने जाते हैं। आज सर्वत्र अपेक्षा की जा रही है कि स्वस्थ मानसिकता का निर्माण हो। मनुष्य के विचारों और व्यवहारों को बदला जाए।

हर व्यक्ति जितना शारीरिक बीमारियों से पीड़ित है, उससे ज्यादा वह मानसिक बीमारियों एवं विकारों से ग्रस्त है। शास्त्रों में कहा गया है - चिंता, चिता के समान है। प्रतिदिन के तनाव से उपजती और मौत के मुंह में ले जाती गंभीर बीमारियों को देखते हुए यह बात बिल्कुल सही साबित होती है। हर एक मिनट का हिसाब रखती, भागदौड़ भरी वर्तमान जीवनशैली में सबसे बड़ी और लगातार उभरती हुई समस्या है मानसिक तनाव। हर किसी के जीवन में स्थाई रूप से अपने पांव पसार चुका तनाव, व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। निजी जिंदगी से शुरू होने वाला मानसिक तनाव पूरी दुनिया के लिए एक गंभीर समस्या बना है, जो अपने साथ कई तरह की अन्य समस्याओं को जन्म देने में सक्षम है। यही कारण है, कि इसे बचने के लिए और मानसिक शांति प्राप्त करने के लिए योग, ध्यान, अध्यात्म और कई तरह के अलग-अलग तरीकों को लोग अपने जीवन में उतार रहे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक नया विश्लेषण दर्शाता है कि दुनिया भर में क़रीब एक अरब लोग मानसिक विकार के किसी ना किसी रूप से पीड़ित हैं। एक अध्ययन के अनुसार अकेले भारतवर्ष में ही लगभग पांच करोड़ से अधिक लोग मनोरोगी हैं। एक मानसशास्त्रीय रिपोर्ट का निष्कर्ष है-किसी भी जनसंख्या का डेढ़ प्रतिशत जीवन भर मानसिक बीमारी से ग्रस्त रहता है। दस प्रतिशत व्यक्ति अपने जीवन में कभी न कभी इस रोग से प्रभावित होते हैं। मानसविदों की नवीनतम खोजों का सार है, संपूर्ण विश्व में हर दूसरा आदमी मानसिक दृष्टि से बीमार है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का मानना है, जाने-अनजाने प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी मनोरोग से सदा पीड़ित रहता है। चिंता, घबराहट, नींद की कमी, निराशा, चिड़चिड़ापन, नकारात्मक सोच-ये सब मनोरोग के स्थूल लक्षण हैं। यह मानसिक पंगुता की शुरुआत है। इससे मस्तिष्क कुंठित हो जाता है। बौद्धिक स्फुरणा अवरुद्ध हो जाती है। दिमागी मशीनरी के जाम होते ही शरीर-तंत्र भी अस्त-व्यस्त और निष्क्रिय हो जाता है। असंतुलित मन स्वयं रोगी होता है और तन को भी रोगी बना देता है।

सर्वविदित है कि तनाव किसी भी समस्या का हल नहीं होता बल्कि कई अन्य समस्याओं का जन्मदाता होता है। उदाहरण के लिए तनाव इंसान को अत्यधिक सिरदर्द, माइग्रेन, उच्च या निम्न रक्तचाप, हृदय से जुड़ी समस्याओं से ग्रस्त करता है। दुनिया में सबसे अधिक हार्ट अटैक का प्रमुख कारण मानसिक तनाव होता है। यह आपका स्वभाव चिड़चिड़ा कर आपकी खुशी और मुस्कान को भी चुरा लेता है। इससे बचने के लिए तनाव पैदा करने वाले अनावश्यक कारणों को जीवन से दूर करना जरूरी ही नहीं, अनिवार्य हो गया है। जीवन में सुख, शांति और संतुष्टि के लिए मन की स्वस्थता भी उतनी ही जरूरी है, जितनी तन की स्वस्थता। वर्तमान में चिकित्सा विज्ञान की अनेक शाखाएं विकसित हुई हैं, उनमें एक है मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान। इसके द्वारा व्यक्ति को मनोरोगों से बचाने का तथा स्वस्थ मानसिकता के निर्माण का प्रयास किया जाता है। स्वस्थ मन वाला व्यक्ति सदा आत्मतोष, पूर्णता एवं आनंद का अनुभव करता है। इससे व्यक्तित्व का संतुलित विकास होता है। संतुलित व्यक्ति जीवन में आनेवाली बाधाओं/कठिनाइयों में भी समायोजन स्थापित कर सकता है। मानसिक स्वास्थ्य से हमारा तात्पर्य है मन की शांति, चित्त की प्रसन्नता। परिस्थितियों के साथ समायोजन कर चलने वाला व्यक्ति लक्ष्य तक पहुंच जाता है। असमायोजित व्यक्ति पग-पग पर असफल होता है। फिर निराशा, हताशा से आक्रान्त होकर कई प्रकार के मनोरोगों का शिकार हो जाता है।

भारत तीस प्रतिशत युवा जनसंख्या के साथ युवाओं का देश है। किशोरों और वयस्कों के बीच मानसिक परेशानी की रोकथाम और प्रबंधन की शुरूआत जागरूकता बढ़ाकर और मानसिक रोग के प्रारंभिक चेतावनी संकेतों और लक्षणों को समझकर कम उम्र से की जानी चाहिए। इसीलिये 10 अक्टूबर वर्ष 2014 को राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य नीति की घोषणा की गयी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मानसिक बीमारियों की गंभीरता को देखते हुए अनेक बहुआयामी कार्यक्रमों की शुरुआत करने की पहल की हैं। किशोरावस्था और वयस्कता के शुरुआती वर्ष जीवन का वह समय होता है, जब कई बदलाव होते हैं, उदाहरण के लिए स्कूल बदलना, घर छोड़ना तथा कॉलेज, विश्वविद्यालय या नई नौकरी शुरू करना। कई लोगों के लिए ये रोमांचक समय होता हैं तथा कुछ मामलों में यह तनाव, अवसाद, कुंठा और शंका का समय हो सकता है। कई लाभों के साथ ऑनलाइन प्रौद्योगिकियों का बढ़ता उपयोग इस आयु वर्ग के लोगों के लिए अतिरिक्त दबाव भी लाया है, सभी मानसिक रोगों में से आधे चौदह वर्ष की उम्र तक शुरू होते हैं, आत्महत्या पंद्रह से उनतीस वर्षीय लोगों के बीच मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है। किशोरों में अल्कोहल और मादक पदार्थों का हानिकारक उपयोग एक प्रमुख समस्या है तथा यह असुरक्षित यौन संबंध या खतरनाक ड्राइविंग जैसा जोखिमपूर्ण व्यवहार उत्पन्न करता है।

शारीरिक स्वास्थ्य के प्रति सामान्यतः सभी लोग चिंतित रहते हैं पर मन की स्वस्थता की ओर बहुत कम ध्यान दिया जाता है। स्वास्थ्य दवाओं पर नहीं, विचारों पर निर्भर करता है। मस्तिष्क और शरीर का गहरा संबंध है। मस्तिष्क की संरचना बहुत जटिल है, रहस्यमय है। शरीर का संचालन मस्तिष्क द्वारा होता है। विचार शरीर तंत्र को प्रभावित करता है। प्रो. गेट्स लिखते हैं- दूषित भावनाएं रक्त को दूषित करती है। कुविचार मन में आते ही ग्रंथियों के स्राव बदल जाते हैं। उनका निर्माण रूक भी जाता है। कुविचारों का जहरीला प्रभाव रक्त को विषाक्त कर देता है। इससे शरीर रूग्ण होता है। मस्तिष्क की क्षमताएं घटने लगती हैं वह कमजोर हो जाता है। हमेशा गंदे वातावरण में रहने वाला और कुविचारों से घिरा रहने वाला व्यक्ति शारीरिक स्वास्थ्य और व्यक्तित्व के प्रभाव को खो देता है।

सद्विचारों से मानसिक प्रसन्नता का विकास होता है। उत्साह बढ़ता है। इससे न केवल व्यक्ति की चाल-ढाल में अंतर आता है, अपितु उसका व्यवहार भी गरिमामय बनता है। अतः व्यक्तित्व विकास के लिए अपेक्षा है, मानसिक संतुलन और सकारात्मक सोच को निरंतर विकसित किया जाए। सलक्ष्य अभ्यास और प्रयोग के द्वारा इस दिशा में सफलता उपलब्ध हो सकती है। चूंकि पूरा विश्व मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हो रहा है, और तनाव से दूर रहने के लिए प्रयास कर रहा है, तो आप भी यह संकल्प लें, कि किसी भी समस्या में अत्यधिक तनाव नहीं लेंगे। क्योंकि यह कई तरह की शारीरिक समस्याओं को भी जन्म दे सकता है। तनाव समस्याओं को सुलझाने के बजाए और अधिक जटिल बनाता है, इसलिये बेहतर यही है कि उन्हें शांति से समझते हुए हल किया जाए। समस्या में मुस्कुराना क्यों भूला जाए? हंसते रहिए, मुस्कुराते रहिए और चिंता को दूर भगाते रहिए।

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