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राहुल पर फैसला जल्दबाजी तो नहीं?

Nilmani Pal
3 April 2023 5:41 AM GMT
राहुल पर फैसला जल्दबाजी तो नहीं?
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राजनीतिक संवाददाता

पिछले सप्ताह कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को सूरत की एक अदालत ने मानहानि के एक मामले में दोषी मान कर दो साल की सजा सुनाई। इस फैसले पर लोक सभा संसदीय सचिवालय ने चंद घंटे के अंदर ही उनकी लोकसभा की सदस्यता खत्म कर दी और लोकसभा की वेबसाईट से नाम तक हटा दिया। इतनी हड़बड़ी या जल्दबाजी करने की ऐसी क्या मजबूरी आ गई थी। हालांकि अदालत का फैसले को नकार भी नहीं सकते, न्यायपालिका ही सर्वोच्च होता है

परन्तु यह कोई इतना गंभीर मामला नहीं था जिस पर अदालत ने इतना सख्त फैसला दिया। जो आरोप राहुल गांधी पर लगाए गए थे वो यह था कि उन्होंने मोदी सरनेम वालों को एक जैसे होते हैं कहा था यानी मोदी सरनेम वाले सभी चोर होते हैं। उनका इशारा बैंक के हजारों करोड़ लेकर भागे नीरव मोदी और ललित मोदी की ओर था, भाजपाई इसी बात को लेकर पूरे देश में पिछड़ा वर्ग का अपमान बताकर राहुल गाँधी के खिलाफ लड़ रहे हैं दूसरी महत्वपूर्ण बात ये है की दोनों मोदी यानी ललित और नीरव दोनों पिछड़े वर्ग से नहीं आते। कांग्रेस नेता इसी बात को लेकर भी राहुल के समर्थन में आगे आ रहे हैं कि नीरव मोदी जैन समुदाय से आते हैं और ललित मोदी मारवाड़ी समुदाय से आते हैं अब इसमें पिछड़ी जाति का अपमान भला कैसे हुआ? कांग्रेस नेताओ ने यह भी कहा की भाजपाई जबरदस्ती इस मामले को तिल का ताड़ बना रहे हैं। देखा जाये तो यह विशुद्ध रूप से राजनीतिक मामला था। राजनीति में तो नेतागण ऊलजलूल बयान देते रहते हैं यदि इनके बयानों को आधार बनाए जाए तो सारे नेता अयोग्य हो जायेंगे। फैसले के पहले यह भी देखा जाना जरुरी हो गया था की वाकई राहुल गांधी का ध्येय पिछड़े वर्ग को अपमानित करने का था या सिर्फ बैंक लोन लेकर भागे लोगों को अपमानित करना था। राहुल गांधी जनता के चुने हुए प्रतिनिधि हैं। उनकी सदस्यता रद्द करने में जितनी तेजी दिखलाई है इसमें साफ-साफ राजनीति प्रेरित लगती है। मजे की बात ये भी है की जिस अदालत ने राहुल गांधी को सजा सुनाई है वही अदालत उनको तीस दिन का समय अपील के लिए भी दिया है। फिर भी ये समझ नहीं आया की अपील के बाद यदि राहुल गांधी बरी हो जाते हैं तो क्या होगा। संसदीय सचिवालय को अपना फैसला वापस लेना होगा इससे सचिवालय की ही जग हंसाई ही होगी। सदस्य्ता रद्द करने के पहले उनको नोटिस जारी कर उनक पक्ष जान लेना था। इस घटना को समूचा देश-विदेश देख रहा है बल्कि कई देश तो बारीकी से इस पर नजर भी गड़ाए हुए है लेकिन उनको इससे कुछ हासिल नहीं होगा। फैसले को देखते हुए लगता है की इसमें जमकर राजनीति की गई है। दूसरी बात यह भी है की पूरा विपक्ष इस घटना से एक भी हो गया है। विपक्ष को एक होने का मौका मिल गया है। इसके पूर्व लालू यादव सहित बड़े दिग्गज जिसमे कांग्रेस ही नहीं भाजपा के साथ लगभग सभी प्रमुख पार्टयों के नेता थे जिन्हे किसी न किसी कारण से अयोग्य घोषित किया जा चूका है। उनको सदस्यता से अयोग्य घोषित करने के पहले क्या प्रक्रिया अपनाई गई थी। क्या राहुल गांधी को उसी प्रक्रिया के तहत अयोग्य घोषित करना था। इतनी जल्दबाजी में करना में अपने-आप संदेह पैदा करता है।

इस विषय पर कानून के जानकारों का कहना है कि राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता को रद्द करने में, निर्धारित नियमों का भरपूर उल्लंघन किया गया है इस संबंध में कानून विदे ने भी कहा है कि सजा जब सेशन कोर्ट ने स्थगित किया है तो फिर सदस्यता रद्द करने का निर्णय अपरिपक्व और जल्दबाजी भरा है। साथ ही धारा 8(3),जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951,में सदस्यता खत्म करने का प्रावधान है पर उसके अंतर्गत सदस्यता स्वत: खत्म नहीं होता। यानी जैसे ही जज ने दोष साबित होनो फैसले पर हस्ताक्षर किए उसी वक्त सांसद सदस्य अयोग्य घोषित नहीं हो जाता,अयोग्य घोषित होने से पहले राष्ट्रपति के पास सुझाव के लिए केस भेजा जाता है।

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