परीक्षा व्यक्ति के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होती है। परीक्षाएं सिर्फ कक्षाओं तक ही सीमित नहीं रहतीहै। अपितु यह प्रक्रिया जीवन पर्यन्त चलती रहती है। परीक्षा ही एक वह माध्यम होता हैजिसके द्वारा व्यक्ति की मेहनत तथा तैयारियों की जांच परख की जाती है। बिना परीक्षा के आपकी मेहनत व आपकी तैयारियों का कोई औचित्य नहीं रहता है। फिलहाल पूरा भारत कोरोना की दूसरी लहर से लड़ रहा है। इस महामारी के दौरान सभी प्रकार की व्यवस्थाएँ अपने सुचारू रूप में न चलकर किसी अन्य विकल्प के सहारे चल रहे हैं।इनमें से एक महत्वपूर्ण विषय शिक्षा व्यवस्था का भी है।इस महामारी की वजह से शिक्षाव्यवस्था का ढांचा बिल्कुल बदल चुका है।लॉकडाउन के चलते सभी शिक्षा संस्थान बंद हो चूके थे। शिक्षा पूरी तरह से ऑनलाइन क्लास पर निर्भर हो चुकी थी। परीक्षाएं शिक्षा व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण अंग होती है।सालभर ऑनलाइन तथा ऑफलाइन पढ़ाई होने के बादअब परीक्षाओं का समय आ चुका था। परंतु छात्रों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकरकेंद्र सरकार ने सीबीएसई तथा लगभगसभीराज्य सरकारों नेअपने अपने राज्य बोर्डों की 10वीं व 12वीं की परीक्षाएंरद्द करदी।पर सवाल यह उठता है कि क्या परीक्षा रद्द करना ही एकमात्र विकल्प है?
शायद आप सबको यह बताने की आवश्यकता नहीं हैकिकोरोना की दूसरी लहर (यानी 2021) का लॉकडाउन पहली लहर (यानी 2020) के लॉकडाउन से कितना कारगर है?पिछले साल लॉकडाउन से पहले लगभग सभी परीक्षाएं हो चुकी थी। इसलिए लॉकडाउन का परीक्षाओं पर ज्यादा असर देखने को नहीं मिला था। परन्तु इस साललॉकडाउन केकारण लगभग सभी राज्यों की 10वीं ,12वीं की परीक्षाएं रद्द कर उन्हें अगली कक्षा में प्रोन्नत कर दिया गया।तथा स्नातक स्तर में भी कुछकक्षाओं के छात्र प्रोन्नत हुए।
इस बार का लॉकडाउन पिछले लॉकडाउन के मुकाबले काफी राहत भरारहा। इस लॉकडाउन में भीड़ भाड़ वाले बाजारों को छोड़करलगभग सभी व्यवस्थाएँ जैसेपरिवहन व्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था आदि सभी सुचारू रूप से चल रही थी। अगर जमीनी हकीकत की बात की जाए तोबाजार बंद होने के बावजूद भी व्यक्ति किसी भी सामान को आसानी से खरीद सकता था।यह बताने का तात्पर्य है कि यह लॉकडाउन पिछले लॉकडाउन से कितना सुलभ था। परीक्षा रद्द करके छात्रों को प्रोन्नत करना एक तरीके से उनके साथ भेदभाव करना जैसा ही है। परीक्षा के कारण छात्रों में तनाव उत्पन्न होता है, परीक्षा का भय होता हैतथा परीक्षा देने की एक उत्सुकता होती है। परीक्षा दिएबगैर पास होने वाले छात्र इन सब चीजों से वंचित रह जाएंगे।इन छात्रों को आगे चलकर अपनेभविष्य का चुनाव करते समय विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करनापड़सकता है।प्रोन्नत होने के कारण इन छात्रों को समाज मेंतथानौकरी केसाक्षात्कारों मेंहीन भावना का सामना करना पड़ सकता है।
मैं सरकार से पूछना चाहता हूँकि क्या प्रोन्नत हुए छात्रों को मानसिक हिंसा का शिकार नहीं होना पड़ेगा?, क्या समाज में उन्हें वो इज्जत मिल पाएगी जो परीक्षा देने के बाद मिलती थी? क्या छात्रों को 10वीं व 12वीं जैसी महत्वपूर्ण बोर्ड परीक्षाओं का अनुभव मिल पाएगा?क्या छात्रों की तनाव सहने की क्षमता का विकास हो पाएगा?
साथ ही एक सवाल ये भी उठता है किअगरपरीक्षा रद्द करना एकमात्र विकल्प नहीं है तोअगला विकल्प क्या है?अगला विकल्प हमेशा हमारी सोच पर निर्भर करता है। अगर हम समस्यासेभागने की नहीं बल्कि समस्या केसमाधान के विषय में सोचेंगे तो अवश्य ही हमें कोई न कोई विकल्प मिलेगा। परीक्षा रद्द करने के अलावा विकल्प का जिक्र आगेकिया गया है।
छात्रों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकरपरीक्षा रद्द करने का फैसला हो सकता है सही साबित हो जाएपरंतु आप खुद सोचिए क्या छात्रों के भविष्य को ध्यान में रखकरपरीक्षा अच्छा रद्द करने का फैसला सही साबित हो पाएगा? परीक्षा रद्द करने के पक्ष में आपको काफी तर्क मिल जाएंगे जैसे– जान है तो जहान है, अगर जिंदा रहे तो फिर पढ़ लेंगे, पढ़ाई से ज्यादा जीवन महत्वपूर्ण हैइत्यादि।मैं इन सभी तरीकों से इंकार नहीं करताहूँ।परन्तुइस फैसले के पक्ष मेंलोगों तथा सरकार से मेरे कुछ सवाल हैं।मैं उम्मीद करता हूँ कि परीक्षारद्दकरनेकेअलावाविकल्प का जवाब इन्हीं सवालों के जवाब से मिल जाएगा।
इस कोरोना महामारी मेंभी अगर–
1. अगरसरकारी खजाना भरने के लिए सरकारी परिवहन तथा निजी परिवहन को चलने दिया जाता हैतो,
2. अगरअर्थव्यवस्था को संभालने के लिए उद्योग धंधे चल सकते हैंतो,
3. अगरराज्यों में सत्ता पाने के लिए लोगों की भारी भीड़ जमा करके राजनैतिक रैलियां हो सकती हैतो,
4. अगरअर्थव्यवस्था मजबूती के नाम पर शराब की दुकानें पूरे दिन खुल सकती है। यहाँ तक कि शराब की होम डिलेवरीभी हो सकती हैतो,
5. अगरघर बसाने की जल्दी मेंतथा वंश बढ़ाने के जल्दी मेंशादी समारोहों होसकते हैंतो,
6. अगरक्रिकेट व्यवसायियों को घाटा न हो इसके लिए बीसीसीआई आईपीएल को विदेश में करा सकता हैतो,
7. अगरयूपी में पंचायत चुनाव मेंशिक्षकों की जान की परवाह न करते हुए चुनाव संपन्न कराने को महत्व दिया जा सकता हैतो,
8. अगरपक्ष विपक्षअपनी अपनी सत्ता की होड़ मेंपांच राज्यों के चुनावों में अपनी पूरी ताकत झोंक सकते हैं। जहाँ उन्हें कोरोना का बिल्कुल भी भय नहीं होतातो,
9. अगरइस माहौल में भी राजनेता अपने निजी स्वार्थ को महत्व देते हुए अपनी राजनैतिक पार्टियों का दलबदल कर सकते हैंतो,
तो फिर छात्रों की परीक्षाएं क्यों नहीं हो सकती?
उपरोक्त दिए गए कार्य जिंदगी से ज्यादा आवश्यक न होने के बावजूद भी सम्पन्न कराये गये। तो फिर छात्रों की परीक्षाएं यानी भारत के भविष्य के साथ इतना बड़ा भेदभाव कैसे किया जा सकता है? शराब की बिक्री का ऑनलाइन विकल्प निकाला गया, परिवहन व्यवस्था में 50% सवारी का विकल्प निकाला गया, बाजारों को चालू रखने के लिए सोशल डिस्टेंससिंग का विकल्प निकाला गया।तो फिर छात्रों की परीक्षाएं रद्द करने के अलावा कोई अन्य विकल्प क्यों नहीं निकाला गया? परीक्षा रद्द करने के अलावा अन्य विकल्प निकाले जा सकते थे जैसे – परीक्षाओं को आगे बढ़ा देना, परीक्षाएं ऑनलाइन करना, बेहतर सुविधाओं के साथ छात्रों की परीक्षाएं विद्यालय संस्थान में कराना इत्यादि विकल्प निकाले जा सकते थे।
लेकिन सरकार ने परीक्षाओं को रद्द करने के अलावा किसी अन्य विकल्प पर विचार नहीं किया।इससे साफ ज़ाहिर होता है कि या तो सरकार निजी स्वार्थ को ज्यादा महत्व देती हैया फिर सरकार सबसे महत्वपूर्ण विषयभारत के भविष्य को लेकर प्रबंधन करने में असफल साबित रही।