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जैसा नाम वैसा काम, खेती में प्रकाश फैला रहे इंद्रप्रकाश

jantaserishta.com
11 April 2023 6:07 AM GMT
जैसा नाम वैसा काम, खेती में प्रकाश फैला रहे इंद्रप्रकाश
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गोरखपुर (आईएएनएस)| दूसरे क्षेत्रों की तरह खेती-बाड़ी में इनोवेशन करने वालों की कमी नहीं हैं। कृषि क्षेत्र में प्रयोग करने वाला एक ऐसा ही नाम है इंद्रप्रकाश, जो मुख्यमंत्री योगी के शहर गोरखपुर के एक छोटे से कस्बे जानीपुर के रहने वाले हैं। उन्होंने साल 1988 में वाराणसी के यूपी कॉलेज से एमएससी (हॉर्टिकल्चर) की और 2008 से खेती कर रहे हैं। इंद्रप्रकाश अपने नाम के अनुरूप विभिन्न प्रयोगों से कृषि क्षेत्र को प्रकाशमान कर रहे हैं। आज इनका नाम प्रदेश के प्रगतिशील किसानों में शामिल है। इनके प्रयोगों के लिए इन्हें देश और प्रदेश के स्तर पर कई पुरस्कार भी मिल चुके हैं।
इंद्रप्रकाश लगभग 12 बीघे खेत में लता वर्ग जैसे खरबूज, तरबूज, खीरा, कद्दू और टमाटर जैसी विभिन्न फसलों की खेती करते हैं। इनके खेत में लगी हर एक फसल की अपनी खासीयत है। मसलन खुशी प्रजाति का खीरा अगेती और बेहतर उपज के लिए जाना जाता है। वहीं, कुछ पीले एवं नारंगी रंग का येलो स्क्वैश (कद्दू की एक प्रजाति) खेत में अलग से दिखाई देती है। इसमें प्रचुर मात्रा में वीटा कैरोटीन मिलता है।
येलो स्वैश की महानगरों में कीमत लगभग 300 रुपये प्रति किलोग्राम के आसपास होती है, लेकिन इंद्रप्रकाश के खेतों पर यह मात्र 50 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से बिकता है। वहीं, पीले रंग का खूबसूरत तरबूज मीठा होने के साथ बीजरहित होता है। भूषण नाम की लौकी का उपज में किसी से कोई मुकाबला ही नहीं है।
इंद्र प्रकाश गोभी की नर्सरी लगा चुके हैं। इसके पहले आलू की फसल ले चुके हैं। चाहे कुफरी नीलकंठ हो या आलू की दूसरी कोई नयी प्रजाति, इनका खेत सबके लिए एक प्रयोगशाला जैसा है।
इंद्रप्रकाश का भरसक प्रयास रहता है कि कीटों एवं रोगों का नियंत्रण जैविक तरीके से हो, ताकि इनके रोकथाम में जहरीले रसायनों का प्रयोग न्यूनतम हो और उत्पादों स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त बने रहें। इसके लिए पूरे खेत में इन्होंने जगह-जगह पर बांस की फट्टियों पर पीले एवं हरे रंग की कीटों को चिपकने वाले ट्रैप लगाएं हैं।
इसी तरह नर कीटो को आकर्षित करने के लिए मादा की गंध वाले ट्रैप भी लगाए गए हैं। मादा की गफलत में आने वाला नर इसमें फंसकर मर जाता है। नर के न रहने पर स्वाभाविक तरीके से प्रजनन चक्र रुकने से इन पर जैविक नियंत्रण हो जाता है। इसी तरह खेत में जगह-जगह गेंदे के फूल लगे हैं। बकौल इंद्रप्रकाश इससे टमाटर में लगने वाले निमिटोड नामक कीट का नियंत्रण हो जाता है।
इंद्रप्रकाश सब्जियों की प्रगतिशील खेती में सहयोग के लिए प्रदेश की आदित्यनाथ सरकार की सराहना करते हैं। उनका कहना है कि बिना योगी सरकार के सहयोग के उनके लिए इस गर्मी में सब्जी की खेती असंभव थी। सरकारी योजना का लाभ लेकर उन्होंने न्यूनतम लागत में सिंचाई के लिए ड्रिप एवं स्प्रिंकलर लगाए हैं। इससे सिंचाई का खर्च और इस पर आने वाले लागत बहुत कम हो गई है।
अब उन्हें पूरे खेत की सिंचाई में मात्र 6 घंटे लगते हैं, जबकि पारंपरिक तरीके से एक दिन में मात्र दो बीघे की ही सिंचाई हो पाती थी, जिसमें दो मजदूर भी लगते थे। इंद्रप्रकाश के मुताबिक, सिंचाई के उन्नत साधनों से पानी की 60-90 फीसदी बचत होती है जो कि बोनस है। पूरे खेत की पॉलीथिन से मल्चिंग मेड पर बोआई और जरूरत के अनुसार ड्रिप से सिर्फ पौधों को पानी मिलने के नाते खर पतवारों का भी जैविक तरीके से नियंत्रण हो जाता है।
वे कहते हैं कि इन सबसे मेरा ढेर सारा श्रम बच जाता है, लागत कम होने से लाभ बढ़ जाता है। उनके अनुसार किसान किसी भी स्थिति में कुछ भी पैदा कर सकता है। बस उसे बाजार में अपनी उपज का वाजिब दाम मिलना चाहिए। योगी सरकार इसके लिए हर संभव प्रयास भी कर रही हैं।
सरकार के वादे के अनुरूप यदि प्रोसेसिंग इकाइयां लग जाएं तो खेतीबाड़ी का कायाकल्प हो जाएगा। वे सलाह देते हैं कि किसानों को परंपरागत खेती की जगह पर बाजार की जरूरत देख कर खेती करनी होगी, अपने उत्पादों को जैविक बनाना होगा। कोरोना के बाद लोगों में स्वास्थ्य के प्रति बढ़ी जागरूकता किसानों के लिए एक तरह का अवसर है।
इंद्र प्रकाश अपनी प्रगतिशील और सफल खेती से न केवल खुद कमाई कर रहे हैं, बल्कि साल के आठ महीने के दौरान 12 से 15 लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। इनके यहां रोजगार पाने वालों में 80 फीसद महिलाएं होती हैं, क्योंकि वे नर्सरी लगाने, उनको सुरक्षित खेत तक पहुंचाने, नाजुक पौधों की रोपाई, निराई-गुड़ाई, तुड़ाई और सुरक्षित पैकिंग जैसे सभी मुख्य कामों को पुरुषों की तुलना में बेहतर तरीके से कर लेती हैं।
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