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नई दिल्ली: चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव की काट के लिए भारत ने भी बड़ी तैयारी कर ली है। विदेश मंत्रालय ने ट्राइलेटरल डिवेलपमेंट कॉरपोरेशन (टीडीसी) फंड लॉन्च किया है। इसके जरिए हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निवेश करने की तैयारी है। खास बात यह है कि इस प्रोजेक्ट में सरकार निजी सेक्टर की कंपनियों को भी शामिल करने वाली है। इन कंपनियों के साथ मिलकर सरकार भी बड़ा निवेश करेगी। इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी इस फंड के जरिए निवेश किया जाएगा। बता दें कि चीन ने बीआरआई प्रोजेक्ट के जरिए पाकिस्तान, अफगानिस्तान के रास्ते यूरोप तक जाने का प्लान बनाया है। इसी के तहत वह चीन पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर को तैयार कर रहा है, जिस पर भारत ने ऐतराज जताया था।
यह कॉरिडोर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से गुजरता है, जिसे भारत अपना हिस्सा मानता है। इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक यूके के साथ मिलकर शुक्रवार को भारत ने इंडिया ग्लोबल इनोवेशन पार्टनरशिप लॉन्च किया है। यह भी सरकार के टीडीसी फंड का ही हिस्सा माना जा रहा है।। पीएम नरेंद्र मोदी और बोरिस जॉनसन की मौजूदगी में इस प्रोजेक्ट को लॉन्च किया गया है। कहा जा रहा है कि टीडीसी फंड के जरिए भारत की ओर से जापान, जर्मनी, फ्रांस और यूरोपियन यूनियन के साथ मिलकर काम किया जाएगा। भारत की ओर से ग्लोबल इनोवेशन पार्टनरशिप में जो निवेश किया जाएगा, वह टीडीसी फंड के जरिए होगा।
यही नहीं जीआईपी के जरिए अफ्रीका, एशिया और इंडो-पैसेफिक में निवेश किया जाएगा। खासतौर पर उन स्थानों पर निवेश को बढ़ाया जाएगा, जहां भारतीय कंपनियों पहले से निवेश करती रही हैं। गौरतलब है कि पीएम नरेंद्र मोदी अकसर यह बात दोहराते रहे हैं कि भारतीय स्टार्टअप्स को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर निवेश करना चाहिए। माना जा रहा है कि जीआईपी के जरिए इस लक्ष्य को आसानी से हासिल किया जा सकेगा। विदेश मंत्रालय लंबे समय से ऐसे प्रोजेक्ट पर विचार कर रहा था, जिसके तहत भारतीय कंपनियों को विदेशों में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। ग्लोबल इनोवेशन पार्टनरशिप के जरिए भारत के 60 स्थानों पर निवेश को मदद मिलेगी, जो तीसरी दुनिया के देशों में किए गए हैं।
गौरतलब है कि चीन के बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव में शामिल होने को लेकर अब कई देशों में हिचक देखी जा रही है। पाकिस्तान और श्रीलंका जैसे देशों के चीन के कर्ज तले दबने की वजह से अन्य देश ड्रैगन के निवेश से बच रहे हैं। इसके अलावा आर्थिक गतिविधियों के जरिए चीन के साम्राज्यवादी विस्तार को लेकर भी तमाम देश चिंतित हैं।
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