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भारत में हर साल 1000 लाख टन गेहूं-चावल का उत्पादन

Nilmani Pal
15 April 2022 1:12 AM GMT
भारत में हर साल 1000 लाख टन गेहूं-चावल का उत्पादन
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'भारत में आज भी 10 लाख से ज्यादा बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. करीब 19 करोड़ लोग ऐसे हैं जो हर रात भूखे पेट ही सो जाते हैं. 6 से 23 महीने के करीब 90 फीसदी बच्चों को पर्याप्त डाइट नहीं मिल पाती.' ये कुछ आंकड़े हैं जो भारत में भूख और खाने की कमी के हालात बयां करते हैं. ये सब आंकड़े उस भारत के ही हैं जो दुनिया में सबसे ज्यादा अनाज पैदा करने में दूसरे नंबर पर है.

इन सब बातों का जिक्र इसलिए क्योंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कहना है कि अगर विश्व व्यापार संगठन (WTO) अनुमति दे, तो भारत दुनिया को अनाज की आपूर्ति करने के लिए तैयार है. पीएम मोदी ने ये बातें अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से कही थीं, जिसके बारे में उन्होंने बताया. पीएम मोदी ने कहा, मां अन्नपूर्णा के आशीर्वाद से हमारे यहां अनाज के भंडार भरे हुए हैं. अगर WTO हमें अनुमति दे तो हम उससे पूरी दुनिया का पेट भर सकते हैं. हमें परमिशन मिले तो हम अपने अनाज को पूरी दुनिया में भेज सकते हैं.

एक रिपोर्ट के मुताबिक, अनाज के भंडारण में भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश है. अमेरिका की फॉरेन एग्रीकल्चर सर्विस (FAS) के मुताबिक, दुनिया में सबसे ज्यादा चावल और गेहूं का उत्पादन चीन के बाद भारत में होता है. लेकिन इस बात को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 116 देशों की लिस्ट में 101वें नंबर पर है कृषि मंत्रालय के मुताबिक, 2019-20 में भारत में 1076 लाख टन गेहूं का उत्पादन हुआ था. वहीं, 2020-21 में 1023 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ था. एक अनुमान के मुताबिक, दुनियाभर में हर साल 4902 लाख टन चावल और 6020 लाख टन गेहूं की खपत होती है. यानी, भारत में हर साल गेहूं और चावल की जितनी पैदावार होती है, उससे दुनिया की 15 से 20 फीसदी जरूरत पूरी हो सकती है.

हर साल ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रैंकिंग जारी होती है. 2021 में भारत इस रैंकिंग में 116 देशों की लिस्ट में 101वें नंबर पर रहा था. इस रैंकिंग में भारत अपने पड़ोसी देश म्यांमार (71), पाकिस्तान (92), बांग्लादेश (76) और नेपाल (76) से भी नीचे था. 2020 में भारत 117 देशों में 94वें नंबर पर था. यानी एक साल में ही भारत की रैंकिंग 7 पायदान गिर गई.

ग्लोबल हंगर इंडेक्स की रिपोर्ट इसलिए अहम है क्योंकि ये दुनियाभर में भूख के खिलाफ चल रहे अभियानों की उपलब्धियों और नाकामियों को बताती है. इससे पता चलता है कि किसी देश में भूख की समस्या कितनी ज्यादा है. हालांकि, सरकार इस इंडेक्स को नहीं मानती है. सरकार का कहना है कि ये रिपोर्ट सही आधार पर तैयार नहीं की जाती.

भले ही सरकार इस रिपोर्ट को नहीं मानती लेकिन सरकार की एक रिपोर्ट खुद इस को मानती है कि भारत में आज भी लाखों बच्चों को सही पोषण नहीं मिल रहा है. इसी साल फरवरी में लोकसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी ने बताया था कि देश में 7.7% बच्चे ऐसे हैं जो गंभीर रूप से कुपोषित हैं. सरकार के ही एक आंकड़े ये भी बताते हैं कि देश में करीब 10 लाख बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं.

पिछले साल नवंबर में नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (NFHS-5) की रिपोर्ट आई थी. इस सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में अभी भी 5 साल से कम उम्र के 20% बच्चे ऐसे हैं, जिनका वजन उनकी ऊंचाई के हिसाब से कम है. 5 साल से कम उम्र के 32% से ज्यादा बच्चे ऐसे हैं जिनका वजन उनकी उम्र के हिसाब से कम है. इस सर्वे में ये भी सामने आया था कि 6 से 23 महीने के महज 11.3% बच्चे ही ऐसे हैं, जिन्हें पर्याप्त डाइट मिलती है. यानी, ऐसे करीब 90% बच्चों को पर्याप्त डाइट भी नहीं मिल पाती. इतना ही नहीं, इससे पहले 2017 में आए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे में सामने आया था कि भारत में 19 करोड़ से ज्यादा लोग ऐसे हैं जिन्हें सही तरीके से पोषण नहीं मिल रहा है या वो भूख से जूझ रहे हैं. यानी, आज भी 19 करोड़ लोग भूखे पेट ही सो जाते हैं.

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