वैश्विक स्तर पर खाद्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी भारत के लिए भी चुनौती साबित हो सकती है। यूक्रेन से खाद्य पदार्थों के होने वाले निर्यात पर रूस की पाबंदी से पिछले दो दिनों में गेहूं की वैश्विक कीमतों में पांच फीसद से अधिक की बढ़ोतरी हो चुकी है। इसका असर भारत में सूरजमुखी के तेल के दाम पर भी पड़ने की आशंका जाहिर की जा रही है। क्योंकि भारत हर महीने 2.5-2.75 लाख टन सूरजमुखी तेल का आयात करता है और इनमें 40 प्रतिशत से अधिक की हिस्सेदारी यूक्रेन की है।
पाम ऑयल व अन्य खाद्य तेल की कीमतें बढ़ सकती है
काला सागर से माल भेजने पर रूस की पाबंदी के बाद अगले महीने से यूक्रेन से आने वाले सूरजमुखी तेल में कमी आएगी और भारत को पाम ऑयल व सोया तेल के आयात को बढ़ाना पड़ सकता है। यूक्रेन से सूरजमुखी तेल के आयात में कमी से पाम ऑयल व अन्य खाद्य तेल की मांग बढ़ने से उनके दाम तेज हो सकते हैं, जिससे खुदरा महंगाई दर प्रभावित हो सकती है।
सरकार ने गैर बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया
यही वजह है कि इन दिनों रोजाना स्तर पर महंगाई की गहन समीक्षा हो रही है। इसका ही नतीजा है कि गैर बासमती चावल के निर्यात पर सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया जबकि निर्यात होने वाली प्रमुख 10 वस्तुओं की सूची में चावल शामिल हो गया था। गेहूं के निर्यात पर पहले से ही प्रतिबंध लगा हुआ है। गत मंगलवार को जी-20 समूह के वित्त मंत्रियों की बैठक में भी रूस के इस कदम की निंदा की गई और इससे खाद्य पदार्थों की कीमतों पर पड़ने वाले असर को लेकर चिंता जाहिर की गई।
ब्याज दर बढ़ा सकता है अमेरिकी फेडरल बैंक
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि महंगाई निश्चित रूप से सबके लिए चिंता विषय है। जानकारों के मुताबिक भारत की मुख्य चिंता यह है कि वैश्विक स्तर पर खाद्य वस्तुओं की कीमतों में तेजी से यूरोप के कई देशों में ब्याज दरों में बढ़ोतरी का सिलसिला जारी रहेगा, जिससे वहां अन्य बिजनेस गतिविधियां धीमी रह सकती है। महंगाई बढ़ने पर अमेरिकी फेडरल बैंक भी ब्याज दर बढ़ा सकता है। ऐसे में इन देशों से निर्यात मांग में और कमी आएगी जिससे पहले से ही गिरावट में चल रहे भारतीय निर्यात में और गिरावट होगी।
भारतीय बाजार से पैसा निकाल सकते हैं विदेशी संस्थागत निवेशक
रोजगारपरक वस्तुओं के निर्यात में लगातार गिरावट होने से उनके मैन्यूफैक्चरिंग में कमी आएगी और रोजगार पर असर पड़ेगा। गत वित्त वर्ष 2022-23 में जीडीपी में निर्यात की हिस्सेदारी 19 प्रतिशत पहुंच गई थी जो इस वित्त वर्ष में कम हो सकती है क्योंकि चालू वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) के हर माह में वस्तुओं के निर्यात में गिरावट चल रही है।
फेडरल बैंक की तरफ से दरों में बढ़ोतरी से विदेशी संस्थागत निवेशक भी भारतीय बाजार से पैसा निकाल सकते हैं और इससे भी भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी।