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फाइल फोटो
नई दिल्ली (आईएएनएस)| भारत लोकतंत्र का जनक है, बुधवार को उपराष्ट्रपति व राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ यह बात कही। उन्होंने अपनी बात पूरी करते हुए कहा कि लोकतंत्र की मूल भावना ही जनमत का आदर और जन कल्याण सुनिश्चित करना है।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि संवाद, विमर्श और बहस ही संसद और विधानमंडलों की कार्यवाही को सार्थक बनाते हैं। इस संदर्भ में उन्होंने कहा कि जनप्रतिनिधियों को हमारी संविधान सभा से प्रेरणा लेनी चाहिए जिसकी लगभग 3 वर्षों की अवधि में 11 सत्रों के दौरान, व्यवधान की एक घटना भी नहीं हुई। उन्होंने एक ऐसी व्यवस्था विकसित करने का आह्वाहन किया जिससे लोकतंत्र के ये मंदिर, मर्यादित और सार्थक संसदीय कार्यपद्धति में, उत्कृष्टता के केंद्र बन कर उभर सकें।
उपराष्ट्रपति तथा राज्य सभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने बुधवार को जयपुर में 83वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन का उद्घाटन किया। यह बातें उन्होंने इसी सम्मेलन के दौरान कहीं।
संसद और विधानमंडलों में व्यवधानों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए धनखड़ ने जनप्रतिनिधियों को आगाह किया कि वे जनता की इच्छाओं और आकांक्षाओं का आदर करें और अपने व्यवहार से अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करें। उन्होंने अपेक्षा की कि यह सम्मेलन इन मुद्दों का अविलंब समाधान निकालने पर विचार विमर्श करेगा।
राज्य के सभी अंगों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंधों की जरूरत पर बल देते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र तभी फलता फूलता है जब विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों परस्पर सहयोग और सामंजस्य के साथ, जन अपेक्षाओं को पूरा करने के लिए काम करते हैं।
उन्होंने कहा कि किसी भी लोकतांत्रिक समाज में, जनमत की प्रधानता ही उसके 'मूल ढांचे' का भी 'मूल आधार' है। इस संदर्भ में उपराष्ट्रपति ने कहा कि संसद और विधानमंडलों की प्रधानता और संप्रभुता आवश्यक शर्त हैं जिस पर समझौता नहीं किया जा सकता। उन्होंने सभी संवैधानिक संस्थाओं से अपनी अपनी मयार्दाओं में रह कर कार्य करने का आग्रह किया।
भारत द्वारा जी 20 का नेतृत्व ग्रहण करने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमने स्थायी विकास और समावेशी समृद्धि के लिए विश्व को नया मंत्र दिया है 'एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य'। एक समृद्ध और सशक्त भारत के निर्माण के लिए उन्होंने सभी से आजादी के अमृतकाल में सकारात्मक योगदान करने का आह्वान किया है।
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