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26/11 के सरगनाओं के खिलाफ भारत लड़ रहा अकेली लड़ाई

Nilmani Pal
26 Nov 2022 7:46 AM GMT
26/11 के सरगनाओं के खिलाफ भारत लड़ रहा अकेली लड़ाई
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अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने मुंबई में 26/11 के आतंकवादी हमले के खत्म होने से पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को फोन किया था। राष्ट्रपति चुने गए बराक ओबामा भी अपडेट के लिए बुश प्रशासन के साथ निकट संपर्क में थे। न्यूयॉर्क के पुलिस अधिकारियों की एक टीम भारत के इतिहास में सबसे भयानक आतंकवादी हमले के समाप्त होने के तीन दिन बाद ही मुंबई में थी। सात साल पहले 2001 में अमेरिका में हुए आतंकवादी हमले की पृष्ठभूमि में वे देखना और अध्ययन करना चाहते थे कि हमला कैसे किया गया था।

दोनों देशों ने राष्ट्रपति ओबामा के पहले राजकीय अतिथि के रूप में नवंबर 2009 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की व्हाइट हाउस यात्रा के दौरान आतंकवाद के खिलाफ संयुक्त पहल करने की अपनी मंशा की घोषणा की।

इस पर एक साल बाद 2010 में हस्ताक्षर किए गए और इस दिशा में कार्य शुरू हुआ। यह संयुक्त काउंटर टेररिज्म वकिर्ंग ग्रुप के अतिरिक्त था। 26/11 के मुंबई आतंकवादी हमले के बाद भारत और संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच पाकिस्तान को ध्यान में रखते हुए आतंकवाद के खिलाफ एक अभूतपूर्व युग की शुरुआत हुई। हालांकि पाकिस्तान ईरान, सीरिया और उत्तर कोरिया के साथ अमेरिका द्वारा आतंकी देश घोषित होने से बच गया।

ऐसा प्रतीत होता है कि वाशिंगटन हाल के वर्षों में कई कारणों से आगे बढ़ गया है। इनमें पाकिस्तान द्वारा वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (एफएटीएफ) द्वारा निर्धारित शर्तों का पालन करने के लिए किया गया प्रयास एक प्रमुख कारण है। उल्लेखनीय है कि एटीएफ मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवाद के वित्तपोषण पर निगरानी के लिए पेरिस स्थित संयुक्त राष्ट्र की निगरानी संस्था है। संयुक्त राज्य अमेरिका 26/11 के हमले के दोषियों को दंडित करने के लिए अब पाकिस्तान पर दबाव नहीं डालता। मुंबई हमले का एक प्रमुख साजिशकर्ता पाकिस्तानी एक अमेरिकी डेविड हेडली था। मुंबई हमलों को अंजाम देने वाले पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद उदार न्याय प्रणाली की वजह से जेल के अंदर-बाहर होता रहा है और उसे पकड़ने के लिए इनाम की घोषणा करने वाले अमेरिका को भी खुली चुनौती देता रहा है।

वास्तव में अमेरिका ने पाकिस्तान को सईद की कॉलेज शिक्षण नौकरी के लिए देय पेंशन जारी करने को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्वीकृति के लिए आवेदन करने और प्राप्त करने की अनुमति दी।मनमोहन सिंह की 2009 की व्हाइट हाउस यात्रा के दौरान भारत और अमेरिका द्वारा जारी संयुक्त बयान में दोनों नेताओं ने आतंकवाद और भारत के पड़ोस के हिंसक चरमपंथियों से उत्पन्न खतरे के बारे में गंभीर चिंता व्यक्त की। दोनों नेता इस बात पर सहमत हुए कि आतंकवादियों और उनकी गतिविधियों को शरण देने वाले सुरक्षित ठिकानों को खत्म करने के लिए विश्वसनीय कदम उठाए जाने चाहिए।

अफगानिस्तान और दक्षिण एशिया पर ओबामा प्रशासन में काम करने वाले पूर्व सीआईए अधिकारी ब्रूस रिडेल ने कहा, नवंबर 2008 में मुंबई पर लश्कर-ए-तैयबा (एलईटी) के हमले के बाद से भारत-अमेरिका के आतंकवाद विरोधी सहयोग में काफी सुधार हुआ है।

उन्होंने कहा, संयुक्त राज्य अमेरिका को एकतरफा कदम पर विचार करना चाहिए। पाकिस्तान को आतंकवाद प्रायोजक देशों की सूची में रखना चाहिए। रिडेल ने लिखा है प्रथम बुश प्रशासन ने आतंवादी खतरे को देखते हुए 1992 में पाकिस्तान पर ध्यान दिया था, लेकिन बाद में ऐसा नहीं किया गया। अमेरिका को अफगानिस्तान के संकट से निपटने और उसका समाधान करने के लिए पाकिस्तान के सहयोग की आवश्यकता थी। ऐसे में पूर्व सीआईए ऑपरेटिव ने सिफारिश की कि अमेरिका पाकिस्तान के प्रति उदारता बरतनी चाहिए। बाद में पाकिस्तान ने खुद को इस संकट से बाहर निकाल लिया। अन्य बातों के अलावा पाकिस्तान ने हाल ही में आई बाढ़ का इस्तेमाल खुद को जलवायु परिवर्तन के ग्राउंड जीरो के रूप में फिर से गढ़ने और चित्रित करने के लिए किया है। वहां से भोजन और स्वास्थ्य की कमी की डरावनी कहानियों ने बाकी दुनिया का ध्यान आकर्षित किया है। 26/11 एक खुला मामला है और भारत को अब इससे खुद निपटने की आदत डालनी चाहिए।

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