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प्रेस फ्रीडम की रैंकिंग में भारत 142वें नंबर पर, पूरी जानकारी पढ़कर हैरान रह जाएंगे

jantaserishta.com
11 April 2022 6:30 AM GMT
प्रेस फ्रीडम की रैंकिंग में भारत 142वें नंबर पर, पूरी जानकारी पढ़कर हैरान रह जाएंगे
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नई दिल्ली: फ्रांस की संस्था 'रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स' हर साल वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की रैंकिंग जारी करता है. इसके मुताबिक, ठीक तरीके से काम करने वाले पत्रकारों के लिए भारत दुनिया के सबसे खतरनाक देशों में से एक है.

इन सब बातों का जिक्र इसलिए, क्योंकि हाल ही में कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिसमें काम कर रहे पत्रकार निशाना बने है. पिछले साल त्रिपुरा में हुई हिंसा पर ट्वीट करने पर 100 से ज्यादा पत्रकारों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था. बाद में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ये केस हटाया गया था. इससे पहले जून में दिवंगत पत्रकार विनोद दुआ के देशद्रोह से जुड़े मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हर पत्रकार कानूनी रूप से सुरक्षा मिलने का अधिकार रखता है. विनोद दुआ पर हिमाचल में देशद्रोह का केस दर्ज किया गया था. सुप्रीम कोर्ट ने इस केस को निरस्त कर दिया था.
हाल ही में मध्य प्रदेश के सीधी में भी एक पत्रकार और उसके साथ पकड़े गए कुछ रंगकर्मियों की निर्वस्त्र तस्वीर सामने आने के बाद बवाल हुआ. मामला सामने आने के बाद दो पुलिसकर्मियों को सस्पेंड कर दिया गया है. बलिया में पेपर लीक का खुलासा करने वाले पत्रकारों को ही गिरफ्तार करने का आरोप है जिसके खिलाफ पत्रकार संगठन आंदोलन चलाए हुए हैं.


पिछले साल पत्रकार गीता सेशु ने पत्रकारों पर दर्ज हुए मुकदमों को लेकर एक रिपोर्ट जारी की थी. इस रिपोर्ट का नाम 'बीहाइंड बार्सः अरेस्ट एंड डिटेंशन ऑफ जर्नलिस्ट इन इंडिया' था. इस रिपोर्ट में गीता सेशु ने 2010 से 2020 के दौरान पत्रकारों पर दर्ज हुए मामलों को लेकर एक आंकड़ा दिया था.
इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 से 2020 के बीच देशभर में 154 पत्रकारों पर केस दर्ज किया गया था. दावा था कि ये केस उनके काम को लेकर दर्ज किया था. रिपोर्ट में कहा गया था कि 2017 के बाद पत्रकारों पर दर्ज होने वाले मुकदमों की संख्या बढ़ गई थी. 2010 से 2016 के बीच 33 पत्रकारों पर केस दर्ज हुए थे. जबकि, 2017 से 2020 के इन चार सालों में 121 केस दर्ज किए गए थे.
इस रिपोर्ट में बताया गया था कि जिन पत्रकारों पर केस दर्ज हुए थे, उनमें से ज्यादातर को देशद्रोह और यूएपीए के तहत आरोपी बनाया गया था.
पत्रकारों की सुरक्षा पर काम करने वाली अमेरिकी संस्था 'कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट' यानी CPJ के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2021 में 7 पत्रकारों को जेल में डाला गया, जबकि इससे पहले 2020 में 4 पत्रकारों को कैद किया गया था. CPJ के अनुसार, 2012 से 2021 तक 10 साल में 26 पत्रकारों को जेल में डाला गया है. इसी दौरान दुनियाभर में ढाई हजार से ज्यादा पत्रकारों को जेल में डाला गया.
CPJ के आंकड़े बताते हैं कि 2001 से 2010 तक भारत में सिर्फ दो पत्रकारों को जेल में डाला गया था. लेकिन 2011 के बाद से हर साल कम से कम एक पत्रकार को जेल में डाला ही जा रहा है.
कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट के मुताबिक, दुनियाभर में पत्रकारों पर हमले बढ़ते जा रहा है. रिपोर्टिंग करते समय कई पत्रकारों को अपनी जान गंवानी पड़ी है. 2012 से लेकर अब तक दुनियाभर में 537 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है. इसी दौरान भारत के 28 पत्रकारों की भी उनके काम के चलते जान गई.
इसी साल अब तक दुनिया में 15 पत्रकारों की मौत हो चुकी है. भारत में भी एक पत्रकार की जान गई है. CPJ के मुताबिक, 5 फरवरी को रोहित बिस्वाल की मौत हो गई थी. रोहित बिस्वाल ओडिशा के कालाहांडी जिले के एक स्थानीय अखबार में काम करते थे. रोहित की मौत उस समय हो गई थी, जब एक बम को डिटोनेट किया जा रहा था. रोहित इस दौरान रिपोर्टिंग कर रहे थे और तभी इसमें विस्फोट हो गया, जिससे उनकी मौत हो गई.
मीडिया की आजादी के मामले में भारत की रैंकिंग लगातार गिरती जा रही है. 2002 में 180 देशों में भारत का 80वें नंबर पर था. ये रैंकिंग 2010 में गिरकर 122 और 2012 में 131 पर आ गई. 2013 और 2014 में भारत और फिसलकर 140वें नंबर पर आ गया. पिछले दो साल यानी 2020 और 2021 में भारत 142वें नंबर पर रहा.
रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के मुताबिक, भारत में पत्रकार लगातार हमलों का सामना करते हैं. पत्रकारों को पुलिस के हमलों को भी झेलना पड़ता है, राजनेता भी हमले करते हैं और भ्रष्ट अधिकारियों के भी हमलों का सामना करना पड़ता है. संस्था का कहना है कि सरकार का विरोध करने वाले पत्रकारों के खिलाफ सोशल मीडिया पर कैंपेन चलाया जाता है और उन्हें जान से मरने की धमकी दी जाती है.
हालांकि, भारत सरकार इस रिपोर्ट को नहीं मानती है. इसी साल 22 मार्च को लोकसभा में सरकार ने कहा था कि सरकार रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स की ओर से जारी वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की रैंकिंग को नहीं मानती है. सरकार का कहना है कि संस्था अपनी रिपोर्ट कम सैंपल साइज के आधार पर तैयार करती है, उसमें लोकतंत्र के मूल सिद्धांत को भी ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता और इसकी कार्यप्रणाली भी गैर-पारदर्शी है.
पत्रकारों पर हमलों का आंकड़ा सरकार अलग से नहीं रखती है. मीडियाकर्मियों पर हुए हमलों को भी आईपीसी की धारा 325, 326, 326A और 326B के तहत रखा जाता है. इन चारों धाराओं के तहत 2020 में 90,627 मामले दर्ज किए गए थे. ये धाराएं ऐसा हमला होने पर लगाई जाती है, जब उसमें किसी व्यक्ति की जान को खतरा हो.
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