आर.के. सिन्हा
कश्मीर की राजधानी श्रीनगर के जिस लाल चौक पर कुछ साल पहले तक सिर्फ सुरक्षा बलों के जवान ही झुण्ड के झुण्ड दिखाई दिया करते थे, वहां आजकल लोकसभा चुनाव को लेकर स्थानीय लोग खुलकर राजनीतिक चर्चाएं कर रहे हैं। कश्मीर घाटी में धारा 370 को हटाये जाने के बाद पहली बार कोई चुनाव हो रहे हैं। तब से घाटी की स्थिति में भी अभूतपूर्व बदलाव आया है। घाटी में आतंकवाद जब चरम पर चल रहा था, तब बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडितों और अन्य लोग वहां से भागकर दिल्ली और दूसरे राज्यों में शरण ली थी। तब इनके सामने विस्थापन का संकट झेलने से लेकर अनिश्चित भविष्य की मुश्किलों का सामना करने के अलावा कोई दिशा या रास्ता भी तो नहीं था।
2019 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गृहमंत्री अमित शाह ने जब धारा 370 को हटाया जिस एतिहासिक संसद के सत्र में भी भागीदार था, तब उनमें एक उम्मीद जगी है। तब से उन्हें यही महसूस हो रहा है कि अब वे किस तरह अपने कश्मीर जाकर फिर से अपनी जड़ों की ओर लौट सकेंगे। कश्मीर घाटी में आतंकवाद के दौर के बाद लाखों पंडितों ने अपमान और अत्याचार के दौर में घाटी को छोड़ा था। वे आगामी 13 मई को अपना वोट राजधानी के पृथ्वीराज रोड पर स्थित जम्मू-कश्मीर हाउस में जाकर डालेंगे। उस दिन श्रीनगर सीट के लिए वोटिंग होनी है। यहां कश्मीरी पंडितों को लोकसभा चुनाव के लिए मतदान करने की सुविधा दी गई है। इसके बाद 20 मई (बारामूला) और 25 मई को (अनंतनाग- राजौरी) में मतदान होगा। तब भी राजधानी और इसके आसपास रहने वाले कश्मीरी पंडित यहां आकर अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे I सरकार का कहना है कि जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव भी कराकर वहां की जनता की चुनी हुई सरकार को लाने और विकास कार्य में तेजी लाकर देश की मुख्य धारा से राज्य को जोड़ने के लिए प्रयास शुरू हो चुके हैं। लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार अभियान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में राज्य के अपने दौरे में इस बात को साफ तौर पर कहा भी था। साल 2019 में धारा 370 हटाए जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राज्य का यह पहला दौरा था। श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में प्रधानमंत्री मोदी को सुनने के लिए करीब दो लाख लोग वहां पहुंचे थे। इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने विस्तार से बताया था कि कैसे उनकी सरकार जम्मू-कश्मीर के हालात को बदलने और वहां के युवाओं के लिए भविष्य को संवारने के लिए काम कर रही है। राजधानी और एनसीआर में आज भी हजारों कश्मीरी पंडित रहते हैं।
ये अधिकतर दक्षिण दिल्ली में ही रहते हैं। दिल्ली में रहने वाले कश्मीरी प्रवासियों को सरकार की ओर से हर महीने मासिक राहत पैकेज दिया जाता है। पहले यह 10,000 रुपये था, लेकिन पिछले साल 2023 में दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने इसको 10,000 रुपये से बढ़ाकर 27,000 रुपये प्रति माह कर दिया था। उप राज्यपाल ने दिल्ली सरकार के कश्मीरी प्रवासी कार्डों में नाम जोड़ने को भी मंजूरी दे दी थी। इससे प्रवासियों के बड़े और विवाहित बच्चों को अपने स्वयं के कश्मीरी प्रवासी कार्ड प्राप्त करने और एएमआर के लिए पात्र बनने की अनुमति मिल गई।
उग्रवाद के दौरान विस्थापित हुए कश्मीरी परिवारों के राहत और पुनर्वास के लिए सरकार 1989-90 में एडहॉक मंथली रीलिफ (एएमआर) शुरू की थी। 16 साल बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में रह रहे कश्मीर लोगों के लिए इसको बढ़ाकर कश्मीरियों के लिए एक बड़ी राहत दी है। इससे पहले 2007 में सरकार ने एएमआर को 5,000 रुपये से बढ़ाकर 10,000 रुपये कर दिया था। राहत पाने वालों की संख्या भी इस बीच काफी बढ़ी है। शुरू में जितने कश्मीरी परिवार दिल्ली में थे, अब तो उसमें काफी इजाफा हो गया है।
राजधानी के जामिया मिल्लिया इस्लामिया समेत राजधानी के तमाम विश्वविद्यालयों और कालेजों में बड़ी संख्या में कश्मीरी छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। काफी लोग विभिन्न सरकारी सेवाओं की प्रतियोगिताओं की तैयारी में जुटे हैं। सिविल सर्विस से लेकर सरकारी और गैर-सरकारी संस्थानों में काफी कश्मीरी युवक-युवतियां नौकरी भी कर रहे हैं। बड़ी संख्या में घाटी के युवक और युवतियां यहां अपना खुद का व्यवसाय कर रहे है।
दिल्ली के अलावा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और दिल्ली से सटे दूसरे शहरों में भी कश्मीर से विस्थापित बड़ी संख्या में लोग रह रहे हैं। राजधानी में रह रहे कश्मीरी समुदाय का मानना है कि वर्षों बाद उनमें एक उम्मीद की किरण जगी है। घाटी से विस्थापन के बाद कश्मीरी दंपतियों के दिल्ली में जन्म लेने वाले बच्चे भी अब बड़े हो गये हैं। वे भी अब अपने पूर्वजों की जगह कश्मीर को जाकर देखना चाहते हैं।
इस बीच, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा है कि सरकार जम्मू-कश्मीर से सशस्त्र बल विशिष्ट शक्ति (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम कानून (एएफएसपीए) को भी रद्द करने पर विचार कर रही है। सरकार केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर से सैनिकों को वापस बुलाने की योजना बना रही है और कश्मीर की कानून व्यवस्था को अब पूरी तरह जम्मू-कश्मीर पुलिस के हवाले किया जाएगा। सरकार भी मान रही है कि जम्मू कश्मीर में आतंकियों का मूवमेंट कम हुआ है। आंकड़े बताते हैं कि आतंकवाद में 80 फीसदी कमी आई है। पत्थरबाजी की घटनाएं तो पूरी तरह खत्म ही हो गई हैं । बंद, प्रदर्शन और हड़तालें भी नहीं हो रही हैं। गृह मंत्री ने कहा, 2010 में पथराव की 2564 घटनाएं हुई थीं, जो अब शून्य हैं। 2004 से 2014 तक मौतों की कुल संख्या 2829 थी और 2014-23 के दौरान यह घटकर 915 हो गई है। यह 68 प्रतिशत की कमी है। नागरिकों की मृत्यु 1770 थी और घटकर 341 हो गई है, जो 81 प्रतिशत की गिरावट है। सुरक्षा बलों की मौतें 1060 से घटकर 574 हो गईं, जो 46 प्रतिशत की कमी है।
मोदी सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने के लिए 12 संगठनों पर प्रतिबंध लगाया है। 36 लोगों को आतंकवादी घोषित किया है। टेरर फंडिंग को रोकने के लिए 22 से ज्यादा मामले दर्ज किए हैं और 150 करोड़ रुपये की संपत्ति भी जब्त की है। 90 संपत्तियां भी कुर्क की गईं और 134 बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए हैं। एक बात बहुत साफ है कि सरकार देश विद्रोही ताकतों को कुचलने के लिए तैयार है और जो वार्ता करना चाहता है उसका सदैव स्वागत भी है।
हां, उसे वार्ता संविधान के दायरे में आकर करनी होगी। बातचीत की प्रक्रिया में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस जैसे अलगाववादी संगठनों का कोई स्थान नहीं है। कहना न होगा कि अब देश बदला-बदला सा जम्मू-कश्मीर देख रहा है।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं)