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RSS के कार्यक्रम में सीएम हिमंत बिस्व ने कहा- 'हमने हमेशा से विचार, धर्म और संस्कृति की विविधता को स्वीकार किया'

Kunti Dhruw
21 July 2021 2:42 PM GMT
RSS के कार्यक्रम में सीएम हिमंत बिस्व ने कहा- हमने हमेशा से विचार, धर्म और संस्कृति की विविधता को स्वीकार किया
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RSS के कार्यक्रम में सीएम हिमंत बिस्व

असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा (Assam Chief Minister Himanta Biswa Sarma) ने बुधवार को RSS के एक बुक लॉन्च कार्यक्रम में कहा कि धर्मनिरपेक्षता (Secularism) के कॉन्सेप्ट को 'भारतीय सभ्यता' के संदर्भ में परिभाषित करने की जरूरत है. सरमा ने लेफ्ट लिबरल, उदारवादियों और मीडिया पर निशाना साधते हुए दावा किया कि देश के बौद्धिक समाज में अब भी लेफ्ट लिबरल का वर्चस्व है और मीडिया ने वैकल्पिक आवाजों की अनदेखी करते हुए उन्हें ज्यादा स्थान दिया है.

उन्होंने दावा किया कि देश में इंटलेक्चुअल आतंकवाद (Intellectual terrorism) फैलाया गया है और देश के वामपंथी कार्ल मार्क्स (Karl Marx) से भी ज्यादा लेफ्टिस्ट हैं. सरमा ने कहा कि मीडिया में कोई लोकतंत्र नहीं है. हमारे यहां भारतीय सभ्यता के लिए कोई जगह नहीं है लेकिन कार्ल मार्क्स और लेनिन के लिए जगह है. "
सरमा ने आरोप लगाया कि मीडियाकर्मी निजी बातचीत में वैकल्पिक विमर्श पर सहमत हो सकते हैं लेकिन वे वामपंथी-उदारवादियों को महत्व देते हैं क्योंकि यह एक स्वतंत्र दृष्टिकोण को दर्शाता है. उन्होंने कहा, "वामपंथी सोच को चुनौती दी जानी चाहिए और अस्तित्व के लिए हमारे लंबे संघर्ष, इतिहास पर किताबें तैयार की जानी चाहिए."
हमारी सभ्यता पांच हजार साल पुरानी
हालांकि अपने भाषण के दौरान उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि भारतीय सभ्यता के संदर्भ में धर्मनिरपेक्षता को किस प्रकार परिभाषित किया जाए, लेकिन उन्होंने जोर दिया कि भारत ऋग्वैदिक काल से ही धर्मनिरपेक्ष देश रहा है. उन्होंने कहा, "हमने दुनिया को धर्मनिरपेक्षता और मानवता की धारणा दी है. हमारी सभ्यता पांच हजार साल पुरानी है और हमने युगों से विचार, धर्म और संस्कृति की विविधता को स्वीकार किया है."
संशोधित नागरिकता कानून का जिक्र
संशोधित नागरिकता कानून का जिक्र करते हुए सरमा ने कहा कि इस पर दो विचार हैं- असम के बाहर प्रदर्शनकारियों के लिए मांग है कि सिर्फ हिंदुओं को ही नागरिकता क्यों दी जाए, मुस्लिम प्रवासियों को भी इसके दायरे में लाया जाए. हालांकि असम में कानून के खिलाफ विरोध यह था कि न तो हिंदुओं और न ही अन्य देशों के मुसलमानों को नागरिकता दी जाए. उन्होंने दावा किया कि राष्ट्रीय स्तर पर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष प्रदर्शनकारियों ने पूरे प्रदर्शन को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की.
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