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एक और राज्य में गवर्नर और मुख्यमंत्री के बीच सब कुछ ठीक नहीं
jantaserishta.com
6 April 2022 3:09 AM GMT
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हैदराबाद: तेलंगाना के गवर्नर और मुख्यमंत्री के बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं। आलम यह है कि एक राज्य के दो शीर्ष हस्तियों के बीच छह महीने से कोई बात-मुलाकात तक नहीं हुई है। महत्वपूर्ण सरकारी समारोह में मुख्यमंत्री राज्यपाल को न्योता देना जरूरी नहीं समझते हैं। वहीं, राज्यपाल उन्हें निमंत्रण देते हैं तो वह न खुद जाते हैं और न मंत्रियों को जाने की अनुमति होती है। छह महीने से भी अधिक समय से जारी यह शीत युद्ध आने वाले दिनों में और बढ़ सकता है, क्योंकि गतिरोध टूटने के कहीं आसार नजर नहीं आ रहे हैं।
हिन्दुस्तान की रिपोर्ट के मुताबिक तेलंगाना की राज्यपाल डॉ. तमिलिसाई सुंदरराजन पेशे से डॉक्टर हैं। वह सामाजिक कार्यों में बेहद सक्रिय रहती हैं। जबकि केसीआर राव दूसरी बार प्रचंड बहुमत से जीतकर सरकार बना चुके हैं। 2023 में उन्हें तीसरे चुनाव का सामना करना है। राज्य में भाजपा अपनी पैठ बढ़ा रही है तथा वह कांग्रेस को पछाड़ने की ओर अग्रसर है। केसीआर कांग्रेस को तोड़कर उसे कमजोर बना चुके हैं। लेकिन मौजूदा टकराव की वजहें कुछ और हैं।
राज्यपाल डॉ. तमिलिसाई सुंदरराजन ने 'हिन्दुस्तान' से बातचीत में स्वीकार किया कि उनकी छह महीने से मुख्यमंत्री के साथ कोई बैठक नहीं हुई है। लेकिन इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इस पर उन्होंने कोई टिप्पणी नहीं की। हालांकि, उन्होंने कहा कि उन्होंने हमेशा नियमों के तहत कदम उठाए हैं।
राजभवन के सूत्रों की मानें तो पिछले साल राज्यपाल ने सरकार की दो फाइलें लौटा दी थी जिसके बाद से मुख्यमंत्री केसीआर राव उनसे नाराज हो गए। इसी के बाद से राजभवन और मुख्यमंत्री कार्यालय के बीच तनातनी शुरू हो गई।
वजह-1- राजभवन के सूत्रों की मानें तो पिछले साल दो मामले जो राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री के बीच टकराव के कारण बने, उनमें एक राज्यपाल कोटे से सेवा श्रेणी में एमएलसी का चयन किया जाना था। केसीआर सरकार ने कौशिक रेड्डी नामक एक व्यक्ति का नाम भेजा। यह नेता कांग्रेस से टीआरएस में आया था। लेकिन राज्यपाल ने यह कहकर फाइल लौटा दी कि यह सिफारिश उपयुक्त नहीं है क्योंकि इस श्रेणी में गैर राजनीतिक व्यक्ति या समाज के किसी प्रबुद्ध व्यक्ति की सिफारिश की जानी चाहिए। इसके अलावा जिस व्यक्ति की सिफारिश की गई थी, उसका रिकॉर्ड भी साफ नहीं था।
वजह-2- दूसरी बार तनातनी एमएलसी के चैयरमैन पर प्रोटम चेयरमैन की नियुक्ति को लेकर हुई। प्रोटम चैयरमैन की नियुक्ति स्थायी चेयरमैन की नियुक्ति तक होती है, जो अधिकतम छह महीने हो सकती है। लेकिन केसीआर सरकार ने छह महीने के बाद फिर प्रोटम चैयरमैन का कार्यकाल बढ़ाने की सिफारिश की तो राज्यपाल ने उसे ठुकरा दिया। जबकि चैयरमैन पांच वर्ष के लिए होता है।
एक तरफ केसीआर और राज्यपाल के बीच तनातनी जारी है, वहीं भाजपा ने केसीआर के उस बयान को मुद्दा बना रखा है, जिसमें उन्होंने संविधान को नये सिरे से लिखने की बात कही है। दरअसल, भाजपा तेलंगाना में अपनी जड़ें जमा रही हैं। कांग्रेस वहां लगभग खत्म हो चुकी है। कांग्रेस के ज्यादातर नेता केसीआर की पार्टी में जा चुके हैं।
पिछले चुनाव में कांग्रेस को 19 सीटें मिली थीं, जिनमें से 12 टूटकर टीआरएस में चले गए। एक ने लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया। एक के भाजपा में जाने की खबर है। इस प्रकार कांग्रेस के पास पांच विधायक ही बचे हैं। जबकि ओवैसी की पार्टी के सात एमएलए हैं और वह राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी हो चुकी है।
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