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सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, कानून से बचने के लिए जनप्रतिनिधि नहीं दे सकते विशेषाधिकार की दलील

Deepa Sahu
28 July 2021 6:48 PM GMT
सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, कानून से बचने के लिए जनप्रतिनिधि नहीं दे सकते विशेषाधिकार की दलील
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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक अहम फैसले में कहा कि सभी नागरिकों पर लागू होने वाले आपराधिक कानूनों से छूट का दावा, सदन में मिली छूट और विशेषाधिकार का हवाला देकर नहीं किया।

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक अहम फैसले में कहा कि सभी नागरिकों पर लागू होने वाले आपराधिक कानूनों से छूट का दावा, सदन में मिली छूट और विशेषाधिकार का हवाला देकर नहीं किया जा सकता। आपराधिक कानून से छूट का दावा करना उस भरोसे को धोखा देना होगा जो उन पर जनप्रतिनिधि के तौर पर किया गया है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा- सदन में तोड़फोड़ करना और विरोध में संपत्ति को क्षति पहुंचाना विधायी कार्य नहीं
कोर्ट ने कहा कि जन प्रतिनिधियों को सदन की कार्यवाही के दौरान छूट और विशेषाधिकार इसलिए मिले हैं ताकि वे बिना किसी भय और बाधा के अपना विधायी कार्य कर सकें। सदस्यों द्वारा विरोध जताने में सदन में तोड़फोड़ करना और संपत्ति को नुकसान पहुंचाना विधायी कार्य नहीं है। उल्लेखनीय है इस मामले में पिछली सुनवाई में भी कोर्ट ने काफी तल्ख टिप्पणियां की थीं।
सदन में तोड़फोड़ करने वाले एलडीएफ के छह विधायकों के खिलाफ दर्ज मुकदमा वापस नहीं
कोर्ट ने जन प्रतिनिधियों को सदन में मिली छूट और विशेषाधिकार के दायरे की संवैधानिक प्रविधानों के आलोक में कानूनी व्याख्या करते हुए एलडीएफ के छह विधायकों के खिलाफ 2015 में दर्ज सदन में तोड़फोड़ और संपत्ति नष्ट करने का आपराधिक मुकदमा वापस लेने की इजाजत देने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि यह न्यायहित में नहीं होगा।
माननीयों को उनका दायरा बताने वाला सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आये दिन देश के विभिन्न सदनों में होने वाले हंगामे और सदस्यों के मर्यादा लांघने की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए महत्वपूर्ण है। इस फैसले से एक सीमा रेखा खिंचती नजर आती है जो माननीयों को उनका दायरा बताती है।
दूरगामी व्यवस्था देने वाला सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, केरल सरकार की याचिका खारिज
दूरगामी व्यवस्था देने वाला यह अहम फैसला जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एमआर शाह की पीठ ने केरल सरकार की अपीलीय याचिका खारिज करते हुए सुनाया। पीठ ने निचली अदालत और हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराया जिसमें छह नेताओं के खिलाफ मुकदमा वापस लेने की लोक अभियोजक (सरकारी वकील) की अर्जी नामंजूर की जा चुकी है।
कोर्ट ने कहा- सदन में सार्वजनिक संपत्ति को तोड़ना विधायी कार्य नहीं
कोर्ट ने कहा कि सदन में सार्वजनिक संपत्ति को तोड़ना और नुकसान पहुंचाना, अभिव्यक्ति की आजादी और विपक्ष को विरोध के मिले वैध अधिकार के बराबर नहीं है। बजट पेश करने का विरोध करने में सदन में सार्वजनिक संपत्ति को तोड़ना जरूरी विधायी कार्य का निर्वहन नहीं माना जा सकता। ऐसा करना विशेषाधिकार और छूट के तहत नहीं आता।
सुप्रीम कोर्ट ने की सदन में सदस्यों को मिली छूट की व्याख्या
कोर्ट ने सांसदों, विधायकों को सदन की कार्यवाही के दौरान मिली छूट और विशेषाधिकार के बारे में आये पूर्व के सुप्रीम कोर्ट के विभिन्न फैसलों और सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के बारे में आये फैसलों और कानून का विश्लेषण करते हुए कहा कि इससे साबित होता है कि कोर्ट और संसद दोनों मानते हैं कि विरोध के नाम पर सार्वजनिक और निजी संपत्ति को नुकसान पहुंचाना सहन नहीं किया जाना चाहिए। कोर्ट ने सदन में सदस्यों को मिली छूट और विशेषाधिकार के संवैधानिक प्रविधानों की व्याख्या और विश्लेषण किया है।

क्या है पूरा मामला
केरल विधानसभा में 13 मार्च 2015 को बजट पेश होने के दौरान एलडीएफ (वाम लोकतांत्रिक मोर्चा) के छह सदस्यों ने, जो उस वक्त विपक्ष में थे, वित्त मंत्री को बजट पेश करने से रोकने के लिए जोरदार हंगामा किया था। विरोध करते हुए ये नेता स्पीकर के डायस पर चढ़ गए। वहां फर्नीचर को नुकसान पहुंचाया। कंप्यूटर, माइक, इमरजेंसी लैंप और अन्य इलेक्ट्रानिक सामान भी तोड़ दिया। इस तोड़फोड़ में 2,20,093 रुपये की संपत्ति का नुकसान हुआ।
निचली अदालत ने कहा था- केस वापस लेने की इजाजत देना जनहित में नहीं
लेजिस्लेटिव सीक्रेट्री के कहने पर सदस्यों के खिलाफ आइपीसी और सार्वजनिक संपत्ति नष्ट करने पर रोक कानून की विभिन्न धाराओं में आपराधिक मुकदमा दर्ज हुआ। इस मामले में लोक अभियोजक (सरकारी वकील) ने निचली अदालत में अर्जी दाखिल कर सभी नेताओं के खिलाफ केस वापस लेने की इजाजत मांगी, लेकिन निचली अदालत ने अर्जी नामंजूर करते हुए इजाजत देने से इन्कार कर दिया। निचली अदालत ने कहा कि ऐसा कहना जनहित में नहीं होगा। निचली अदालत से निराश होने के बाद केरल सरकार ने हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की लेकिन हाईकोर्ट ने भी याचिका खारिज कर दी और मंजूरी देने से इन्कार कर दिया। इसके बाद केरल सरकार सुप्रीम कोर्ट आई।
सुप्रीम कोर्ट ने की केरल सरकार की दलीलें खारिज, कहा- अपील आधारहीन है
सुप्रीम कोर्ट ने विशेषाधिकार का मामला बताने और घटना की वीडियो रिकार्डिंग और मंजूरी न लेने के बारे में दी गई केरल सरकार की दलीलें भी खारिज कर दीं। कोर्ट ने कहा कि अपील आधारहीन है इसलिए खारिज की जाती है।


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