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छत्तीसगढ़ में जलवायु परिवर्तन का नवजात शिशुओं के आहार पर असर
jantaserishta.com
13 Nov 2022 6:15 AM GMT
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आठ शहरों बिलासपुर, रायपुर, भिलाई, दुर्ग, बलौदाबाजार, रायगढ़, कोरबा, जांजगीर-चांपा और बस्तर में देखा जा रहा है।
रायपुर (आईएएनएस)| जलवायु परिवर्तन का संकट देश और दुनिया के हर हिस्से में नजर आता है, इससे छत्तीसगढ़ राज्य भी अछूता नहीं है। यहां की महिलाओं पर भी इसका असर पड़ रहा है, यही कारण है कि राज्य के कई हिस्से ऐसे हैं जहां की महिलाएं अपने नवजात शिशुओं को पर्याप्त मात्रा में दूध नहीं पिला पा रही हैं।
छत्तीसगढ़ वह राज्य है जहां वन क्षेत्र भौगोलिक क्षेत्र का 44 फीसदी से ज्यादा है, जो देश में तीसरे स्थान पर है, फिर भी इस इलाके पर जलवायु परिवर्तन का असर है। यहां भी इस परिवर्तन के कारण समस्याएं जन्म ले रही हैं। नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे बताता है कि जिन इलाकों में औद्योगिक क्षेत्र है, कोलियरी एरिया है, पेड़ों की कटाई हो रही है, कोयला का ज्यादा उपयोग होता है, जलस्त्रोत सूख रहे हैं, वे जलवायु परिवर्तन से ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। जो कई तरह की बीमारियों को भी तेज गति से बढ़ा रहा है।
इनमें प्रमुख रूप से माताओं का दूध का न आना भी एक कारण बना है। नेशनल फैमली हेल्थ सर्वे के मुताबिक देश की 45 प्रतिशत महिलाएं इससे ग्रसित हैं। जिसका एक कारण जलवायु परिवर्तन भी बना है।
जलवायु परिवर्तन का असर राज्य के आठ शहरों बिलासपुर, रायपुर, भिलाई, दुर्ग, बलौदाबाजार, रायगढ़, कोरबा, जांजगीर-चांपा और बस्तर में देखा जा रहा है। जहां तेज गति से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, वहां बीमारियों के रुप में दुष्प्रभाव भी सामने आ रहे हैं।
केंद्र सरकार ने जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को देखते हुए नेशनल प्रोग्राम फॉर क्लाइमेंट चेंज एंड ह्यूमन हेल्थ शुरू किया है। जिसमें पेड़ो को बचाने, नदी को संरक्षण देने, कोयला का जलना आदि को कम करने की दिशा में काम किया जाएगा। वहीं इंडस्ट्रियल व कोलियरी क्षेत्रों में प्रदूषण की जांच कर उन्हें कम करने के प्रयास किया जाएगा।
इसी तरह जर्मनी की पोट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट स्टडी में खुलासा हुआ है कि हर साल बढ़ रहे तापमान के असर से छत्तीसगढ़ समेत भारत के आठ राज्यों में जलवायु परिवर्तन का खतरा सबसे अधिक है। वन क्षेत्र में कमी होना इसका प्रमुख कारण है।
इस स्टडी के मुताबिक अब मानसून पहले से ज्यादा ताकतवर और अनियमित होगा। इससे जून से सितंबर के बीच सबसे अधिक मूसलाधार बारिश की संभावना है। इससे धान व अरहर जैसी फसलों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा।
अर्थ सिस्टम डायनैमिक्स जर्नल में प्रकाशित अध्ययन भी यह बताता है कि भारत की कृषि अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी। इस दौरान कई फसलें चौपट होंगी और सामान्य जनजीवन भी बाधित होगा।
डिस्क्लेमरः यह आईएएनएस न्यूज फीड से सीधे पब्लिश हुई खबर है. इसके साथ हमारी टीम ने किसी तरह की कोई एडिटिंग नहीं की है. ऐसे में संबंधित खबर को लेकर कोई भी जिम्मेदारी न्यूज एजेंसी की ही होगी.
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