गुजरात। एक ऐतिहासिक उपलब्धि में, आईआईटी गांधीनगर ने अपनी स्थापना से अब तक परोपकारी फंड प्राप्तियों में 100 करोड़ रुपए का आंकड़ा पार कर लिया है। 2008 में मामूली दान के साथ शुरू कर, 14 साल का युवा संस्थान पिछले पांच वर्षों से लगातार इस मद में सालाना 10 करोड़ रुपये से अधिक का फंड जुटा रहा है। इस असाधारण उपलब्धि की सराहना करते हुए, अमेरिका में आईआईटी जीएन फाउंडेशन के अध्यक्ष रुयिन्तन मेहता ने कहा, "एक युवा आईआईटी के इतने कम समय में 100 करोड़ रुपए जुटाना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह आईआईटी गांधीनगर की अद्वितीय संस्कृति, अकादमिक ²ढ़ता, और अद्भुत बुनियादी ढांचे के बारे में बहुत कुछ बताता है। मुझे अमेरिका में आईआईटी गांधीनगर फाउंडेशन के अध्यक्ष के रूप में सेवा करने पर गर्व है।"
आईआईटी, दुनिया भर में फैले अपने शुभचिंतकों के सहयोग से इतने कम समय में इस उल्लेखनीय उपलब्धि तक पहुंच गया है। इसके अधिकांश योगदानकर्ता ऐसे लोग हैं जो आईआईटी के पूर्व छात्र भी नहीं हैं। यह दानदाता गुजराती मूल के हैं, जो भारत या विदेश में रहते हैं। प्रोफेसर रजत मूना, निदेशक, आईआईटी जीएन ने कहा, "आईआईटी जीएन एक पथ प्रदर्शक है जिसने अपने समकालीनों के लिए कई नए क्षितिज खोले हैं। परोपकारी फंड प्राप्तियों में 100 करोड़ रूपए को पार करना, वो भी जिनमें मुख्य रूप से पूर्व छात्र न हो, यह भी एक सम्मान है। हम अपने दाताओं को उनके भरोसे और विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्टता के लिए उनके सहयोग के लिए धन्यवाद देते हैं, और सामाजिक भलाई के लिए विज्ञान और प्रौद्योगिकी की उन्नति के लिए नई चुनौतियों को स्वीकार करने और नवीन विचारों का समर्थन करने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करते हैं।"
संस्थान को बधाई देते हुए, मौलिक जसुभाई, अध्यक्ष, जसुभाई ग्रुप, मुंबई, जिन्होंने संस्थान में कई कार्यक्रमों का समर्थन किया है। उन्होने संस्थान के नेतृत्व और शासन की प्रशंसा की, और कहा, "यह मील के पत्थर के समान उपलब्धि आईआईटी गांधीनगर के अभिनव और उद्देश्यपूर्ण नेतृत्व का एक बड़ा प्रतिबिंब है।"
अहमदाबाद स्थित शाह भोगीलाल जेठालाल एंड ब्रदर्स के मैनेजिंग पार्टनर मुकेश शाह, जिन्होंने आईआईटी जीएन में अकादमिक और अनुसंधान उत्कृष्टता का समर्थन करने के लिए एक एंडाउमेंट स्थापित किया है, उन्होने कहा, "उन्नत बुनियादी ढांचे और विश्व स्तरीय अनुसंधान करने की सामथ्र्य के साथ, यह कोई आश्चर्य नहीं है कि आईआईटी जीएन ने दुनिया भर में प्रतिष्ठा अर्जित की है और 15 वर्षों से भी कम समय में यह मील का पत्थर हासिल किया है। हमें इस प्रमुख संस्थान के साथ जुड़कर गर्व हो रहा है और मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह आईआईटी जीएन के लिए एक बहुत बड़ी सफलता की कहानी की शुरूआत है।"
वैसे संस्थान को अब तक परोपकारी फंड का एक बड़ा हिस्सा गैर-पूर्व छात्रों से आया है, पर आईआईटी जीएन के पूर्व छात्रों ने भी अपने अल्मा माटर को वापस देने के लिए एक मजबूत प्रतिबद्धता दिखाई है। हालांकि वे उनके पेशेवर करियर के शुरूआती चरणों में है, उनमें से 50 फीसदी से अधिक संस्थान के वार्षिक दान में योगदान करते हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक अनुपात में से एक है, और कई ने वर्तमान छात्रों को मदद करने के लिए छात्रवृत्ति की स्थापना भी की है।