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अगर संत के हाथ में माला है, तो वो परुशुराम की प्रवृत्ति का भी हो सकता है : दिनेश शर्मा

Nilmani Pal
22 Sep 2024 1:07 AM GMT
अगर संत के हाथ में माला है, तो वो परुशुराम की प्रवृत्ति का भी हो सकता है : दिनेश शर्मा
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लखनऊ lucknow newsराज्यसभा सांसद एवं उत्तर प्रदेश के पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा ने तमाम मुद्दों पर अपनी प्रतिक्रिया दी। आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण ने कहा है कि देश में राष्ट्रीय स्तर पर सनातन रक्षक बोर्ड का गठन होना चाहिए। इस पर दिनेश शर्मा ने कहा, पवित्र भावना से उनका ये एक सुझाव है। वो देख रहे हैं कि चारों तरफ से सनातन पर आघात हो रहा है। तो ऐसी स्थिति में सनातन परंपरा और संस्कृति को अक्षुण्ण बनाए रखना भी सरकार का एक नैतिक दायित्व है। तिरुपति बालाजी मंदिर में प्रसाद प्रकरण को लेकर उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि ये श्रद्धा के साथ खिलवाड़ है। जांच के बाद अन्य तथ्य सामने आएंगे और दोषियों के प्रति कठोर कार्रवाई होनी चाहिए।
Dinesh Sharma

सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव के मठाधीश वाले बयान पर भाजपा नेता दिनेश शर्मा ने कहा, अब उनको पता चल गया कि अगर उत्तर प्रदेश का संत हाथ में माला लिया है, तो वो परशुराम की प्रवृत्ति का भी हो सकता है। संत का क्रोध और श्राप बहुत मायने रखता है। संत की तुलना माफियाओं से करना उचित नहीं है। संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति को शब्दों पर संयम रखना चाहिए। सपा अध्यक्ष द्वारा यूपी में एनकाउंटर पर सवाल उठाए जाने पर भाजपा नेता ने तंज कसते हुए कहा कि जब अपनों को कष्ट होता है तो लोगों को पीड़ा होती है। उनके शासन में अपराध एक उद्योग बन गया था। लेकिन अब अपराधी उत्तर प्रदेश छोड़ रहे हैं या फिर दंडित हो रहे हैं। कष्ट उसी को हो रहा है, ज‍िन्‍होंने माफियाओं को संरक्षण दिया है।

एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी द्वारा इस बयान पर कि लाखों लोगों के पास वक्फ की संपत्ति का कागज नहीं है। भाजपा नेता ने कहा, थोड़े दिन बाद ओवैसी कहेंगे कि पूरा भारत हमारा है। उनको ये समझना चाहिए कि जितना वक्फ दावा कर रहा, उतना क्षेत्रफल तो पाकिस्तान के पास भी नहीं है। अगर उतनी जमीन उनको दे दें, तो एक पाकिस्तान, एक बांग्लादेश और एक वक्फ होगा। ऐसे में मूल भारतवासी कहां रहेंगे?

दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से जुड़े सवाल के जवाब में दिनेश शर्मा ने कहा कि केजरीवाल को नाटक करने की क्या जरूरत थी। जब कोर्ट ने निर्णय ले लिया कि वो मुख्यमंत्री से जुड़ी फाइलों पर दस्तखत नहीं कर सकते, तो उनके पास इस्तीफे अलावा कोई विकल्प नहीं था। लोकसभा में वो सातों सीट हार गए। दिल्ली की जनता उनको नकार चुकी है।

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