काल्पनिक सवाल: जानिए किसके पास है परमाणु हमला करने का अधिकार?
सोर्स न्यूज़ - आज तक
क्या होगा अगर भारत को अपने किसी दुश्मन पर परमाणु हमला करने की नौबत आ जाए? सवाल काल्पनिक (Hypothetical) है लेकिन आज के जियोपॉलिटिकल वर्ल्ड पर गौर करें तो अनिष्ट की आशंका से भरे इस काल्पनिक सवाल में सच्चाइयां भी छिपी हैं. भारत के न्यूक्लियर डॉक्ट्रिन (Nuclear Doctrine of India) के अनुसार हमारा देश नो फर्स्ट यूज की पॉलिसी का पालन करता है. यानी भारत पहले परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं करेगा. हालांकि, हमारी परमाणु नीति यह भी कहती है कि जैविक या रासायनिक हथियारों से भारत या भारतीय सेना के खिलाफ कहीं भी (Anywhere) बड़े हमले की स्थिति में, भारत परमाणु हथियारों से जवाबी कार्रवाई करने का विकल्प खुला रखेगा.
इंडिया की परमाणु नीति का विश्लेषण करने से इतना तो समझ आता है कि भारत अपने जखीरे से परमाणु हथियारों का इस्तेमाल तभी करेगा जब हमारा देश स्वयं 'महाविनाश' का शिकार हो चुका होगा. तो भारत द्वारा इस घातक और विध्वंसक जवाबी एटमी हमला करने की प्रक्रिया क्या होगी? ये एक ऐसा प्रश्न है जिसका जवाब प्रधानमंत्री कार्यालय में मौजूद अति गोपनीय फाइलों में सहेज कर रखा गया है. यहां पीएमओ की चर्चा इसलिए की गई है क्योंकि भारत की सरकार ने परमाणु हमला करने के लिए जिस नेशनल कमांड अथॉरिटी (Nuclear Command Authority) को बनाया है उसके अनुसार नेशनल कमांड अथॉरिटी के तहत बनी पॉलिटिकल काउंसिल के चेयरमैन प्रधानमंत्री को ही एटमी अटैक पर निर्णय लेने का एकमात्र अधिकार है.
रायसीना हिल्स! भारत का VVIP और प्रीमियम एड्रेस
हालांकि प्रधानमंत्री परमाणु युद्ध पर फैसला लेने वाले सुप्रीम शक्ति हैं. लेकिन यहां एक और सुप्रीम कमांडर है और उसका पता बेहद महत्वपूर्ण है. ये एड्रेस है रायसीना हिल्स! हिन्दुस्तान का वो पता जो सुपर प्रीमियम और VVIP है. रायसीना हिल्स पर मौजूद 330 एकड़ में फैले राष्ट्रपति भवन में भारतीय गणराज्य के सबसे शक्तिशाली व्यक्ति भारत के राष्ट्रपति रहते हैं. 340 कमरे वाली इस भव्य इमारत में भारत के प्रथम नागरिक यानी कि राष्ट्रपति और उनके पूरे स्टाफ का निवास है.
युद्ध की घोषणा करने का एक्सक्लूसिव अधिकार राष्ट्रपति के पास
भारत के संविधान का अनुच्छेद 53 (Article 53) राष्ट्रपति के सैन्य अधिकारों की व्याख्या करते हुए उन्हें भारत के सशस्त्र बलों का सुप्रीम कमांडर बताता है. भारत की रूल बुक के अनुसार राष्ट्रपति सैन्य बलों के सुप्रीम कमांडर हैं. राष्ट्रपति ही सेना के तीनों (जल-थल और नभ) सर्वोच्च कमांडरों की नियु्क्ति करते हैं. राष्ट्रपति के पास भारत की ओर से किसी दूसरे देश के साथ युद्ध की घोषणा करने का एक्सक्लूसिव अधिकार होता है. इसके साथ ही वे किसी युद्धरत राष्ट्र के साथ शांति की घोषणा करने का भी विशिष्ट अधिकार रखते हैं. हालांकि राष्ट्रपति ये फैसले मंत्रिपरिषद (जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते हैं) की सलाह मानते हुए करते हैं. इसके अलावा सभी अंतरराष्ट्रीय संधियां और समझौते भी राष्ट्रपति के नाम से की जाती हैं.
परमाणु हमले पर हरी झंडी देने वाली नेशनल कमांड अथॉरिटी का प्रोटोकॉल
हालांकि भारत के सामने ऐसी नौबत कभी नहीं आई है, हम उम्मीद करते हैं कि ऐसे हालात कभी बनें भी न. लेकिन अगर दुर्योगवश ऐसा करना ही पड़ा तो भारत सरकार की नेशनल कमांड अथॉरिटी एक्टीवेट (NCA) हो जाएगी.
4 जनवरी 2003 को भारत सरकार ने देश के न्यूक्लियर ड्रॉक्ट्राइन को जनता के सामने रखते हुए कहा कि नेशनल कमांड अथॉरिटी पॉलिटिकल काउंसिल और एग्जीक्यूटिव काउंसिल से मिलकर बनेगी. पॉलिटिकल काउंसिल के मुखिया पीएम होते हैं. इस समय बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पॉलिटिकल काउंसिल के चीफ हैं. पीएम इस काउंसिल के एक मात्र आधिकारिक रूप से घोषित सदस्य हैं. इस काउंसिल में और कौन सदस्य हैं ये बेहद गुप्त जानकारी है. लेकिन माना जाता है कि गृह मंत्री, रक्षा मंत्री, विदेश मंत्री इसके सदस्य होंगे. इसी तरह एग्जीक्यूटिव काउंसिल के बॉस राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होंगे. इस समय अजित डोभाल एग्जीक्यूटिव काउंसिल को लीड कर रहे हैं. एक बार फिर से NSA ही इस काउंसिल के एकमात्र ऐसे सदस्य हैं जिनका नाम सरकार ने सार्वजनिक किया है. न्यूक्लियर हमले की स्थिति बनते ही एग्जीक्यूटिव काउंसिल पॉलिटिकल काउंसिल को सलाह और कई तरह के इनपुट देता है. इस सलाह को देने से पहले एग्जीक्यूटिव काउंसिल कई पहलुओं पर विचार करता है. निश्चित रूप से ये सूचनाएं अति गोपनीय (Highly classified) होती हैं और इससे जुड़ी बैठकों की टाइम, लोकेशन और प्रोसेस की कोई जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती है.
बता दें कि भारत के पास कभी ऐसी नौबत नहीं आई है जब देश को किसी शत्रु पर परमाणु हमले के लिए विचार करना पड़े. इसलिए इन सारी प्रक्रिया का सैन्य विशेषज्ञ अनुमान ही लगा पाते हैं. प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में पॉलिटिकल काउंसिल परमाणु हमले पर अंतिम फैसला लेती है. कुल मिलाकर कहा जाए तो भारत में न्यूक्लियर अटैक पर आखिरी फैसला प्रधानमंत्री के हाथों में होता है. अगर पॉलिटिकल काउंसिल ने ग्रीन सिग्नल दे दिया तो स्ट्रैटेजिक फोर्सेज कमांड (Strategic Forces Command) का रोल आता है. SFA ही हमले की लोकेशन, टाइप ऑफ डिलीवरी और टाइम तय करता है और राजनैतिक नेतृ्त्व को इसकी जानकारी देता है. टाइप ऑफ डिलीवरी की बात करें तो भारत अब दुनिया के चुनिंदा देशों में शामिल हो गया है जिसे न्यूक्लियर ट्रायड (Nuclear triad) हासिल है यानी कि भारत जल (परमाणु पनडुब्बी अरिहंत, अरिदमन), थल (पृथ्वी, अग्नि और सूर्या मिसाइलें) और नभ (राफेल, मिराज, जगुआर लड़ाकू विमान) से परमाणु हमला करने की क्षमता रखता है. भारत की ये मिसाइलें अमेरिका-रूस की तरह ही पहाड़ों में दबी हैं, समंदर में छिपी हैं या फिर कंक्रीट के गुप्त बंकरों में बेहद सुरक्षित रखी हुई हैं, इसकी जानकारी सिर्फ प्रधानमंत्री और उनकी टीम के लोगों को होती है.