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पश्चिम बंगाल में नारों के जरिए हुंकार, भाजपा के 'एबार बांग्ला, पारले शामला' से लेकर ममता के 'बंगध्वनि' तक...

jantaserishta.com
4 Dec 2020 6:56 AM GMT
पश्चिम बंगाल में नारों के जरिए हुंकार, भाजपा के एबार बांग्ला, पारले शामला से लेकर ममता के बंगध्वनि तक...
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फाइल फोटो 

पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में 'एबार बांग्ला, पारले शामला' (अब बंगाल, बचा सको तो बचा लो) जैसे नारों से भाजपा की ओर से मिल रही चुनौतियों के जवाब में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की नई जवाबी रणहुंकार है 'बंगध्वनि' (बंगाल की दहाड़). यह सचमुच टीएमसी के मुख्य विरोधी दल के खिलाफ उनकी दहाड़ ही है जिसे वे बाहरी करार देती हैं और कहती हैं कि इसका मकसद लोगों के दिल जीतना नहीं, बंगाल जीतना है.

चाहे चुनाव हो या सरकारी योजनाएं, ममता हमेशा लुभावने नारों और नामों के सात आती हैं. टीएमसी सरकार की सभी योजनाओं का नामकरण उन्होंने खुद किया है. इनमें से कुछेक हैं—कन्याश्री (लड़कियों को उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति), रूपश्री (लड़कियों की शादी के लिए दी जाने वाली एकमुश्त रकम) और पथश्री सबूज साथी (स्कूली लड़कियों को साइकिल देना). जनता को याद रहने वाले नारे गढ़ने में ममता उस्ताद हो चुकी हैं. 2009 के आम चुनाव और वाममोर्चा सरकार के खिलाफ नंदीग्राम और सिंगूर में आंदोलन में उनका 'मां, माटी, मानुष नारा' बहुत महत्वपूर्ण हो गया था. मां, माटी मानुष से ममता का तात्पर्य मां (मातृभूमि बंगाल), माटी (खेत) और मानुष (आम जनता) के प्रति उनकी पार्टी के संकल्प से है. यह बीते कई वर्षों से टीएमसी की राजनीति और ममता के विकास का एजेंडा परिभाषित करता आ रहा है. इसे ऐसा इशारा माना जाता है कि जब लोगों के कल्याण की बात आती है तो सरकार और पार्टी एक धरातल पर आ जाते हैं.,
आकर्षक नारे बंगाल की राजनीति का अभिन्न हिस्सा रहे हैं. साल 2011 में पोरिबोर्तन चाइ (बदलाव चाहिए) नारा 34 साल की वामदलों की सरकार को बदलने के लिए बंगाल की सिविल सोसायटी और बुद्धिजीवियों की तरफ से आया था. इस अपील से टीएमसी सत्ता में आ गई. क्षेत्रीय शक्ति बन चुकी टीएमसी ने 2014 के आम चुनाव में अपने नारे 'बांग्लार दिशा, भारोतर पोत, तृणमूल गोरबे भारोतर भोबिष्योत' (तृणमूल बंगाल की दिशा तय करेगी और देश के भविष्य का रास्ता) के जरिये राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं पेश की थीं. उस वक्त देश में नरेंद्र मोदी की लहर चल रही थी लेकिन ममता अपनी जमीन बचा ले गईं, उनकी पार्टी ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 34 में जीत हासिल की थी.
2016 के विधानसभा चुनाव में ममता ने 'ठंडा ठंडा कूल कूल, ऐबार जितबे तृणमूल' का नारा दिया ताकि यह संदेश दिया जा सके कि सारधा और नारधा घोटालों के आरोपों और लेफ्ट-कांग्रेस के गठबंधन की चुनौतियों के बावजूद उनकी पार्टी बहुत आसानी से चुनाव जीतने जा रही है. 2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार ममता के नारे बेअसर रहे. उनकी 'बेयालिशे बेयालिश' (सभी 42 लोकसभा सीटों पर जीत) की अपील के बावजूद टीएमसी केवल 22 सीटें जीत सकी. भाजपा का जवाबी नारा 'उनीशे हाफ एकुशे साफ' (2019 में टीएमसी की ताकत घटेगी और 2021 में पार्टी साफ हो जाएगी) काफी असरदार रहा.
नारे जब जुबान पर चढ़ जाते हैं तो उनका लोगों पर ध्वन्यात्म असर तो होता है. वाम मोर्चा सरकार को उखाड़ने में 'चुप चाप फूले छाप' (शांति से तृणमूल के दो फूलों वाले निशान पर वोट करो) ने काफी विश्वसनीयता अर्जित की. लोग वाम मोर्चा की रैलियों में शिरकत करते थे, उनके मार्च में भाग लेते थे, लेकिन 2011 में उन्होंने वोट तृणमूल को दे दिया.
2021 की चुनावी जंग में ममता ने राज्य को भाजपा से बचाने के लिए बंगध्वनि का नारा दिया है. वे कहती हैं, "आप बंगाल को प्यार से तो जीत सकते हो लेकिन आक्रमण करके नहीं जीत सकते." ममता और तृणमूल दोनों भाजपा को हिंदी क्षेत्र की पार्टी बताते हैं जिसे राज्य, यहां के लोगों, उनकी संस्कृति और लोकाचार की कोई समझ नहीं है. पिछले सप्ताह कोलकाता में जगधात्रि पूजा पंडाल के उद्घाटन के मौके पर उन्होंने लोगों को चेताया था कि बाहरी लोग राज्य में अशांति फैलाने आ रहे हैं. उन्होंने कहा, "अगर बाहर से कोई गुंडा राज्य में आएगा और आपको आतंकित करेगा तो आपको एकजुट होकर उसका विरोध करना है. हम आपके साथ खड़े रहने का वादा करते हैं. हम उन्हें यहां खुली छूट नहीं देंगे." इसके आगे की बात उनके मंत्री ने कही. स्वास्थ्य मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने कहा कि बंगाल भाजपा नेताओं का स्वागत करेगा अगर वे यहां तीर्थ करने आएंगे और ये देखने आएंगे कि ममता ने कैसे बंगाल का विकास किया है. उन्होंने कहा, "लेकिन अगर वे यहां छीनने आएंगे और हमारे लोगों को दहशत की लाल आंखें दिखाने आएंगे तो हम पूरी ताकत से विरोध करेंगे. बंगाल के लोग उन्हें बाहर कर देंगे."
भाजपा नेताओं ने भी इसका जवाब यह कहकर दिया है कि ममता भाजपा को तो बाहरी बता रही हैं लेकिन बांग्लादेशी घुसपैठियों का तहेदिल से स्वागत कर रही हैं. प्रेसिडेंसी यूनिवर्सिटी के प्रिंसिपल अमल कुमार मुखोपाध्याय इसकी व्याख्या करते हुए कहते हैं, "यह एक तरीका है तृणमूल प्रमुख को बंगाल और बंगालियों तुच्छ क्षेत्रीय तर्कवितर्क में फंसाने का. तृणमूल प्रमुख ने खुद ही बंगाली और गैर बंगाली की बहस शुरू की थी लेकिन यह महसूस करने के बाद कि 1 करोड़ हिंदी भाषी बंगाल के वोटरों को अलग थलग कर दिया है, उन्होंने अपने सुर बदल लिए हैं."
बाहरी की ध्वनि चुनाव प्रचार के दौरान लगातार सुनाई देगी. भाजपा की प्रवासी सेल के प्रभारी मोहित राय कहते हैं, "ममता बनर्जी की नजरों में कौन बाहरी और अवांछित है—एक भारत का नागरिक? बांग्लादेशी घुसपैठियों का गर्मजोशी के साथ स्वागत हो रहा है, उनके वोटर कार्ड बने और कौन सी चीज नहीं मिली?"
टीएमसी नेता मानते हैं कि बंगध्वनि सिर्फ एक रणघोष नहीं है बल्कि बंगाल के लोगों की अपेक्षाओं की प्रतिध्वनि भी है. वे कहते हैं कि इससे यह संदेश जाता है कि केंद्र किस तरह बंगाल से भेदभाव कर रहा है—जीएसटी का बकाया बढ़ता जा रहा है, तूफान अम्फान के बाद और आर्थिक सहायता की बंगाल की मांग पर केंद्र ने चुप्पी साध रखी है, वित्तीय योजनाओं में केंद्र का हिस्सा नहीं पहुंच रहा है और भी न जाने क्या-क्या. जाहिर है बंगाल के चुनाव प्रचार में घमासान मचना तय है.


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