भारत

मप्र में आजादी से पहले बने सौ पुल हैं आवागमन के बड़े साधन

jantaserishta.com
5 Nov 2022 10:30 AM GMT
मप्र में आजादी से पहले बने सौ पुल हैं आवागमन के बड़े साधन
x

DEMO PIC 

भोपाल (आईएएनएस)| गुजरात के मोरबी पुल हादसे के बाद हर तरफ चर्चाएं नदी और नालों पर बने पुलों के हाल को लेकर हैं। मध्यप्रदेश में जहां हाल के वर्षों में बने कई पुलों के खस्ताहाल होने के मामले सामने आए हैं, वहीं सौ से ज्यादा ऐसे पुल हैं जो आजादी के पहले के हैं और उन पर आवागमन हो रहा हैं। सरकारें कई आई और गई मगर विकल्प पर ज्यादा काम नहीं हो पाया।
मोरबी पुल हादसे के बाद राज्य सरकार और तमाम एजेंसियों की पुलों की हालत पर नजर है। लगभग डेढ़ दशक पहले राजधानी में पर्यटन विकास निगम में सैर सपाटा पर्यटन स्थल विकसित किया और यहां एक झूला पुल है। पुल का नियमित तौर पर परीक्षण न होने की बात सामने आई तो वहीं नगर निगम की महापौर मालती राय ने पर्यटन विकास निगम को पत्र लिखकर पुल की हालत की जांच कराने और फिटनेस सर्टिफिकेट उपलब्ध कराने को कहा है। यह ऐसा पुल है जिस पर शनिवार और रविवार को यहां आने वाले पर्यटक बड़ी संख्या में होकर गुजरते हैं। इसी तरह का एक झूला पुल इंदौर में भी है जिसकी वर्तमान स्थिति को लेकर सवाल उठ रहे हैं।
बीती बरसात पर गौर करें तो कई मामले सामने आए हैं जिन्होंने पुल निर्माण की पोल खोल कर रख दी है। ग्वालियर चंबल इलाके में तो आधा दर्जन से ज्यादा पुलों को नुकसान पहुंचा था इसके अलावा राजधानी के करीब स्थित एक पुल का तो हिस्सा ही खसक गया था। हर साल ऐसे कई मामले सामने आते हैं जो इस बात की गवाही देते हैं कि आजादी के बाद बने पुलों की हालत न केवल खस्ता हैं बल्कि पैदल चलने लायक भी नहीं बचे हैं।
इंदौर के पास तो एक अजब मामला सामने आया है जहां रस्सी का पुल बनाकर लोग आवागमन करते थे। सिलोटिया गांव में रस्सी के एक पुल से गुजरते समय बीते दिनों किसान प्रेम नारायण पटेल की गिर कर नदी में डूबने से मौत हो गई, यह मामला सांवेर विधानसभा क्षेत्र का है जहां से जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट विधायक हैं। इस घटना के सामने आने के बाद मंत्री सिलावट ने रस्सी वाले पुल को हटाने के आदेश दिए और पक्का पुल बनाने की घोषणा की।
वहीं दूसरी ओर हम देखते हैं कि राज्य में 100 से ज्यादा ऐसे पुल हैं जो आजादी के पहले बने थे। इन पुलों की हालत अब भी ऐसी है जिन पर यातायात सुगमता से चल रहा है। जानकारों का कहना है कि अंग्रेजों के समय पुलों का निर्माण आर्च टेक्नोलॉजी के जरिए होता था मगर अब तकनीक बदल गई है और उस तकनीक का इस्तेमाल नहीं होता।
लोक निर्माण विभाग और रोड डेवलपमेंट कॉरपोरेशन के अधिकारियों का कहना है कि पुल निर्माण में कई बार खामियां और गड़बड़ियां सामने आ जाती हैं, मगर सियासी दबाव के चलते चाह कर भी सख्त कार्रवाई नहीं कर पाते। यह अलग बात है गड़बड़ी करने वाली कुछ कंपनियों को ब्लैक लिस्ट कर देती हैं, जो बाद में फिर अपने काम को यथावत करने लगती है।
Next Story