कोरोना वायरस का असर न केवल लोगों के शरीर पर बल्कि लोगों के मन और भावनाओं पर भी पड़ने लगा है। कोई बेटा अपने पिता का शव लेने से मना कर रहा है तो कोई बेटी वायरस के डर से दूर भाग रही है। कहीं पर रिश्तेदार मुंह मोड़ रहे हैं तो कहीं पर लोग अपनों को पहचानने तक से इनकार कर रहे हैं। मगर कोरोना का असर अब ममता और स्नेह के उस रिश्ते पर भी पड़ने लगा है जिसकी छांव में बच्चे खुद को महफूज करते हैं। झारखंड से मानवता को झकझोर कर रख देने वाला मामला सामने आया है। दो साल के मासूम बिट्टू को उसके माता-पिता ने बुखार आने के बाद रिम्स में भर्ती कराया। वह पॉजिटिव पाया गया और डॉक्टरों के प्रयास के बावजूद जिंदगी की जंग हार गया। लेकिन, इससे भी बड़े अफसोस की बात यह है कि मौत से पहले वह रिश्तों की जंग हार चुका था। पत्थर दिल मां-बाप इस अभागे बेटे को रिम्स में डॉक्टरों के जिम्मे छोड़कर ऐसे भागे कि फिर लौट के नहीं आए।
बिट्टू की अंतिम विदाई अनाथ की तरह नहीं हुई। उसके अंतिम संस्कार का सारा फर्ज रिम्स के वार्ड बॉय रोहित बेदिया ने निभाया। अबोध बच्चे को जरा भी आभास नहीं रहा होगा कि उसे जन्म देने वाले माता-पिता ही उसे विपरीत परिस्थितियों में छोड़ जाएंगे। अंतिम संस्कार ऐसा व्यक्ति करेगा जिसे उसने जीते जी देखा ही नहीं। दो वर्षीय बिट्टू कुमार को उसके माता-पिता ने 11 मई को रिम्स में भर्ती कराया था। रिम्स में पंजीयन के आधार पर बच्चे के पिता का नाम सिकंदर यादव है। उसका पता नैयाडीह, चकाई, जमुई, बिहार लिखा हुआ है। बच्चा रिम्स के पीडियाट्रिक सर्जरी विभाग में भर्ती था। उसका इलाज कर रहे डॉ अभिषेक रंजन ने बताया कि इसके परिवार वालों ने यह कहकर एडमिट कराया था कि बच्चे ने छुहाड़े की गुठली खा ली है, लेकिन इलाज के दौरान ही शक हो गया। तब माता-पिता ने कहा कि फीवर भी था।
डॉक्टर ने झूठ पकड़ लिया तो परिजन चुप हो गये। इसके बाद चेस्ट एक्सरे में पूरा इंफेक्शन दिखा, तब जांच के लिए भेजा गया। बाद में स्थिति बिगड़ गयी तो वेंटिलेटर पर डाल दिया गया। उसके बाद उसके माता-पिता अचानक गायब हो गये। डॉ अभिषेक ने कहा कि उन्होंने जान बचाने के लिए इन्क्यूबेशन तक किया, लेकिन नहीं बचा पाये। बच्चे की मौत 12 मई को हो गयी। बच्चे की मौत के बाद पंजीयन में दिए गए उसके माता-पिता के फोन नंबर पर संपर्क करने का बहुत बार प्रयास किया गया, कई बार जवाब नहीं मिला, जब जवाब आया तो बताया गया कि गलत नंबर पर संपर्क किया गया है। दो दिन तक इंतजार करने के बाद रिम्स के कर्मचारियों ने बच्चे के शव को अंतिम संस्कार के लिए घाघरा घाट भेज दिया। इलाज करने वाले डॉक्टर अभिषेक ने बताया कि पिछले साल भी तीन साल के बच्चे को छोड़कर माता-पिता भागे थे, पर वह ठीक हो गया और उसके दादा-दादी लेने आये थे।
जब इंसानियत खत्म हो रही थी और मां की ममता मर गई थी उस वक्त रिम्स के वार्ड बॉय रंजीत बेदिया ने आगे आकर बच्चे के शव का अंतिम संस्कार कराने का बीड़ा उठाया। वह शव को अपनी गोद में लेकर एंबुलेंस से घाघरा श्मशान घाट तक गया।