मानवाधिकार आयोग का ऐतिहासिक फैसला, पुलिस अधिकारी देंगे 2.5-2.5 लाख का मुआवजा, जानिए पूरा मामला
ओडिशा मानवाधिकार आयोग ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. मामला झूठे केस में दो व्यक्तियों को गिरफ्तार करने का है. दरअसल 2016 में एक युवक की हत्या के आरोप में दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया था. दो साल बाद वह युवक जीवित घर लौट आया. अब इस मामले में मानवाधिकार आयोग ने दोनों व्यक्तियों को 2.5-2.5 लाख रुपये का मुआवजा देने की बात कही है. वहीं मुआवजे के भुगतान के लिए तत्कालीन जांच अधिकारी को आदेश दिया गए हैं.
पैनल ने सिफारिश की है कि 5 लाख रुपये की मुआवजा राशि पायकामल पुलिस स्टेशन के पूर्व-आईआईसी प्रकाश कुमार कर्ण की सैलरी से काटी जाए, जिन्होंने जांच अधिकारी के रूप में दोनों को गिरफ्तार किया था. सूत्रों के मुताबिक, बारगढ़ जिले में पाइकामल पुलिस की सीमा के तहत पिप्पली गांव का जीतू दंडसेना 7 दिसंबर 2016 को लापता हो गया था. जांच के दौरान, पुलिस ने 24 दिसंबर, 2016 को बरगढ़ शहर के हलु गुरला और रागब नाइक को हत्या और सबूत नष्ट करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. बाद में दोनों को जेल भेज दिया गया.
गिरफ्तार दोनों को न्यायिक हिरासत में भेजा
तीन याचिकाकर्ताओं बिस्वप्रिया कानूनगो, चंद्रनाथ और बिजय कुमार पांडा ने बताया कि जांच अधिकारी ने लापता युवक के मोबाइल फोन के साथ दो व्यक्तियों को गिरफ्तार किया था. बाद में दोनों आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया. वे लगभग एक साल तक जेल में रहे और उन्हें जमानत मिल गई.
याचिकाकर्ता ने यह भी कहा कि दोनों को पहले लापता युवक के मोबाइल फोन चुराने और चोरी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था, बाद में जब लापता युवक नहीं मिला तब पुलिस ने जबरदस्ती उन दोनों से वह अपराध कबूल करवा लिया जो उन्होंने किया ही नहीं था.
याचिकाकर्ता और दो दोषियों के वकील बिस्वप्रिया कानूनगो ने बताया कि पायकामल क्षेत्र का जीतू दंडसेना दिसंबर, 2016 में लापता हो गया था. परिवार के सदस्यों द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के बाद, पुलिस ने दो लोगों को गिरफ्तार किया और हत्या का मामला दर्ज करके उन्हें जेल भेज दिया. हालांकि, जीतू दंडसेना 2018 में कोलकाता से घर लौट आया. दोनों व्यक्तियों ने जेल से छूटने के बाद OHRC से न्याय की गुहार लगाई थी.