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कर्नाटक में जानवरों के सिकुड़ते आवास के कारण बढ़ रहा मानव-पशु संघर्ष
jantaserishta.com
25 Sep 2022 7:42 AM GMT
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बेंगलुरु (आईएएनएस)| कर्नाटक देश के सबसे समृद्ध और सबसे बड़े वन संसाधनों में से एक है। हालांकि, शहरीकरण और विकास के कारण तेजी से घटते वन क्षेत्र ने मानव-पशु संघर्ष को उस स्तर तक बढ़ा दिया है, जो पहले कभी नहीं देखा गया था।
मानव-पशु संघर्ष में केवल हाथी का खतरा था जो दक्षिण कर्नाटक के हासन और मैसूर जिलों में सामने आया था। आज शहरों में तेंदुआ घूम रहे हैं, लोमड़ियां झुंड में निकलकर लोगों पर हमला कर रही हैं, बाघों और हाथियों के हमले भी आम हो गए हैं।
हाथी के बच्चों की संख्या कम करने के लिए उन्हें मारने की मांग की गई है। हालांकि श्रम मंत्री शिवराम हेब्बार ने स्पष्ट किया कि उनके सामने ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है और सरकार इस पर विचार भी नहीं करेगी।
पर्यावरण संरक्षण समिति के अध्यक्ष भानु मोहन ने आईएएनएस को बताया कि उन्होंने हाथी और बाघों की गणना के अभ्यास में हिस्सा लिया है। इसके लिए वे 20 से 25 किलोमीटर जंगलों में गए थे।
उन्होंने कहा, "जहां तक आप देख सकते हैं, वहां केवल झाड़ियां हैं जो हाथियों और तेंदुओं के रहने के लिए अनुकूल नहीं हैं। केवल खरगोश और छोटे जानवर ही वहां रह सकते हैं।"
भानु मोहन का कहना है कि वनों पर जनसंख्या के दबाव के कारण वन क्षेत्र का नुकसान हो रहा है। वह कहते हैं कि दक्षिण कर्नाटक के बांदीपुर, नागरहोल, बिलिगिरि, रंगनबेट्टा और चामराजनगर के जंगलों में अतिक्रमण देखा जा सकता है, जो ज्यादातर राजनेताओं द्वारा किया जाता है।
वह कहते हैं कि एक अन्य महत्वपूर्ण कारक यह है कि जानवरों को जंगलों के अंदर जलस्रोत नहीं मिल रहे हैं।
उत्तम भारत के संयोजक पर्यावरणविद् नीरज कामथ ने आईएएनएस को बताया कि वन्यजीव तभी पनपेंगे, जब वन्यजीव अभयारण्यों में मानव हस्तक्षेप कम से कम या बिल्कुल नहीं होगा।
उनका कहना है कि वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को प्रभावित करने वाले किसी भी विकास को नहीं लिया जाना चाहिए और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) को इस तरह के किसी भी अनुरोध को सख्ती से ठुकरा देना चाहिए।
कामत का कहना है कि आदिवासियों के हितों का ध्यान रखा जाना चाहिए जो इस तरह के पारिस्थितिकी तंत्र का हिस्सा हैं, उन्हें पहले सभी बुनियादी, नौकरी और शिक्षा सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए और फिर उन्हें स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
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