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न्यूज़ क्रेडिट: हिंदुस्तान
नई दिल्ली: देश में पायलटों की भारी कमी है और इससे परिचालन प्रभावित हो रहा है। देश की विमान कंपनियों की क्षमता साल 2030 तक सालाना करीब 100 करोड़ यात्रियों की हो जाएगी। हालांकि इसके रास्ते में पायलटों की कमी एक बड़ी चुनौती बन रही है। अगले पांच सालों में भारत को हर साल 1000 से 1200 नए पायलट की आवश्यकता होगी, जो हर साल बाजार में प्रवेश करने वाले लगभग 600-700 पायलटों की वर्तमान दर के मुकाबले दोगुना हैं। वहीं वैश्विक एयरोस्पेस दिग्गज बोइंग का कहना है कि 2040 तक दुनिया भर में 6,12,000 नए पायलट चाहिए।
दरअसल, भारतीय नागरिक उड्डयन बाजार दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रहा है। दक्षिण एशिया के कुल हवाई यातायात में भारत के घरेलू यातायात का हिस्सा 69 फीसदी तक है। सूत्रों के अनुसार पायलट की कमी के चलते कुछ एयरलाइन नए मार्गों पर हवाई सेवाएं शुरू नहीं करने के लिए मजबूर हो रही हैं। हाल ही में देश की सबसे बड़ी विमान कंपनी इंडिगो को नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने इसलिए नोटिस जारी किया था, क्योंकि एक ही दिन में उसकी 55 फीसदी से अधिक करीब 900 उड़ानें विलंब से संचालित हुईं। इसके पीछे कारण स्टाफ की कमी बताया गया।
नागर विमानन मंत्रालय के अनुसार, नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने पिछले पांच वर्ष में भारत में लगभग 3,300 वाणिज्यिक पायलट लाइसेंस जारी किए हैं। इनमें उन कैडेट के लिए जारी लाइसेंस भी शामिल हैं, जो भारतीय उड़ान प्रशिक्षण संगठनों और विदेशी उड़ान प्रशिक्षण संगठनों दोनों से उत्तीर्ण है। इनमें भारतीय उड़ान प्रशिक्षण संगठनों से उत्तीर्ण कैडेटों को करीब 2,000 लाइसेंस जारी किए गए हैं।
पिछले तीन वर्षों के आंकड़े देखें तो भारत में जारी किए गए वाणिज्यिक पायलट लाइसेंसों की संख्या में मामूली वृद्धि हुई है। साल 2019 में भारतीय उड़ान प्रशिक्षण संगठनों से 430 वाणिज्यिक लाइसेंस जारी किए गए, जबकि 2021 में दिए गए ऐसे लाइसेंस की संख्या बढ़कर 504 हो गई। सूत्रों का कहना है कि यह आंकड़ा अभी भी बहुत कम है, क्योंकि आकासा एयर और जेट एयरवेज के शुरू होने पर पायलट की मांग और बढ़ेगी।
भारत में एयरलाइंस वर्तमान में विदेश से वाणिज्यिक पायलटों को काम पर रखकर कमी से निपट रही हैं। हालांकि विदेशी पायलटों को दीर्घकालिक लाइसेंस नहीं दिए जाते हैं और उन्हें हर साल डीजीसीए से अपना लाइसेंस नवीनीकृत कराने की आवश्यकता होती है।
सूत्रों के अनुसार भारत में पायलटों की कमी का एक कारण प्रशिक्षण की उच्च लागत और प्रशिक्षण संस्थानों की कमी है। भारत में एक वाणिज्यिक पायलट के प्रशिक्षण की लागत लगभग 60-75 लाख रुपए है। यह लागत प्रशिक्षण घंटों और प्रशिक्षण के लिए उपयोग किए जाने वाले विमान के प्रकार पर निर्भर करती है। पायलटों के लिए लाइसेंसिंग प्रक्रिया भी सख्त है। डीजीसीए के अनुसार भारत में लगभग 34 पायलट प्रशिक्षण संस्थान हैं।
साभार: हिंदुस्तान
jantaserishta.com
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