x
वैक्सीनेशन अभियान को हुआ भारी नुकसान
जनता से रिश्ता वेबसाइट। पूर्व केंद्रीय मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से सवाल किया कि क्या भारतीय लोकतंत्र कोविड-19 महामारी की चुनौतियों के लिए तैयार था और क्या इसने अपने लोगों और उनके आजीविका की रक्षा की. उन्होंने कहा कि कोरोना महामारी को यूनिवर्सल वैक्सीनेशन के जरिए नियंत्रित किया जा सकता है या दवाई की खोज से इसका इलाज हो सकता है लेकिन इस एक सवाल का जवाब लगातार तलाशने की जरूरत है.
राजस्थान विधानसभा में कॉमनवेल्थ पार्लियामेंट्री एसोसिएशन (CPA) की राजस्थान चैप्टर द्वारा आयोजित एक सेमिनार में 'वैश्विक महामारी और लोकतंत्र के सामने चुनौतियां' विषय पर बोलते हुए उन्होंने यह टिप्पणी की. चिदंबरम ने अपने संबोधन में महामारी काल में सत्ता के केंद्रीकरण समेत 7 चुनौतियों को गिनाया. उन्होंने कहा कि केंद्रीक्ररण के कारण ही हमारे वैक्सीनेशन अभियान पर असर पड़ा और वैक्सीन खरीद पर फैसला लेने में देरी हुई.
उन्होंने कहा कि गरीबी उन्मूलन और असमानता को कम करना लोकतांत्रिक देशों के बीच स्वीकृत लक्ष्य हैं और एक अध्ययन के अनुसार, पिछले दो साल में 23 करोड़ लोगों गरीबी में धकेले गए. उन्होंने कहा, "स्कूली शिक्षा से बच्चों का वंचित होना महामारी का सबसे विनाशकारी प्रभाव रहा. केंद्र और राज्यों की सरकारों के पास इस तबाही का कोई जवाब नहीं था और वे बस मूकदर्शक बनकर खड़ी रहीं."
चिदंबरम ने कहा कि लोकतंत्र के लिए चुनौतियां सिर्फ राष्ट्रीय स्तर पर नहीं हैं. महामारी ने 'वैक्सीन राष्ट्रवाद' की एक असामान्य घटना को जन्म दिया है. उन्होंने कहा, "मैंने जो बनाया वह मेरा है, जो मैं खरीद सकता हूं वह मेरा है, यह वैक्सीन राष्ट्रवाद है. देश अपनी वैक्सीन को बढ़ावा देने के लिए अन्य टीकों के उपयोग की अनुमति नहीं दे रहे हैं. इस वैक्सीन राष्ट्रवाद ने महामारी के खिलाफ लड़ाई में वैश्विक भागीदारी को नुकसान पहुंचाया है."
महामारी ने बहाना बनाने की गुंजाइश भी नहीं छोड़ी- चिदंबरम
उन्होंने कहा कि हर राजनीतिक व्यवस्था यह दावा करती है कि वह लोगों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सबसे उपयुक्त है. चिदंबरम ने आगे कहा, "कोरोना महामारी ने इस अभिमान की कमियों को उजागर कर दिया. राजशाही से लेकर वंशवादी व्यवस्था तक, सैन्य तानाशाही से लेकर एक पार्टी की सरकार तक, कथित निर्वाचित तानाशाहों से लेकर राष्ट्रपति प्रणाली में राष्ट्रपतियों और संसदीय लोकतंत्र में प्रधानमंत्री तक, हर तरह की सरकार की इन कमजोरियों का शिकार है. एक लोकतांत्रिक सरकार अपनी गलतियों पर अधिक चुनौतियों का सामना करती है और कमियों के लिए हर घंटे आलोचना होती है."
उन्होंने कहा, "एक सच्ची संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली में, प्रधानमंत्री हर दिन संसद और जनता के प्रति जवाबदेह होते हैं. हालांकि, किसी भी कमजोर लोकतंत्र में शासक अपनी जिम्मेदारी से बचने के कई तरीके निकाल लेते हैं. किसी भी मुश्किल स्थिति का सामना होने पर कमजोरियां समय के साथ सामने आ ही जाती हैं, लेकिन इस महामारी ने कमजोरियों को बेरहमी से उजागर किया और कोई बहाना बनाने या छिपाने की गुंजाइश नहीं छोड़ी."
Next Story