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न्यायिक जांच होती कैसे है? पुलिस या सीबीआई की जांच से कैसे है अलग जानें यहां
jantaserishta.com
7 Oct 2021 2:39 AM GMT
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नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों को कार से कुचले जाने के बाद भड़की हिंसा पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने स्वत: संज्ञान ले लिया है. अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सुनवाई करेगी. दरअसल, दो दिन पहले ही दो वकीलों ने चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिखकर लखीमपुर हिंसा की न्यायिक जांच अपनी निगरानी में कराने की गुहार लगाई थी. अब इस मामले में न्यायिक जांच होने की आशंका को बल मिल गया है.
अब ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर न्यायिक जांच होती कैसे है? और ये पुलिस या सीबीआई की जांच से कैसे अलग होती है? तो चलिए हम आपको बताते हैं कि कानून के मुताबिक न्यायिक जांच कैसे की जाती है. और इसमें कौन कौन लोग शामिल होते हैं.
न्यायिक जांच
देश के किसी भी कोने में जब कहीं कोई गंभीर घटना होती है या साम्प्रदायिक दंगे होते हैं. या फिर कोई मंत्री या आला अफसर रंगे हाथों भ्रष्टाचार के मामले में पकड़ा जाता है. तब कई बार ऐसे मामलों में पीड़ित, जनता, वकील या विपक्षी या कभी कभी आरोपी भी मामले की न्यायिक जांच की मांग करते हैं. क्योंकि न्यायिक जांच को निष्पक्ष और सटीक माना जाता है. लोग न्यायिक जांच पर भरोसा करते हैं.
भारतीय कानून के मुताबिक, न्यायिक जांच का काम किसी जज से ही कराया जाता है. जैसे जिला न्यायाधीश, जिला अदालत, उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय का कोई वर्तमान या अवकाश प्राप्त जज यह जांच कर सकता है. जब भी किसी घटना के बाद न्यायिक जांच की मांग की जाती है. तो संबंधित अदालत मामले की जांच वर्तमान न्यायाधीश या फिर किसी अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को सौंप देती है. इसमें जांच करने वाले जजों की संख्या एक की बजाय दो भी हो सकती है. संबंधित अदालत जांच के लिए समय सीमा और निगरानी भी तय कर सकती है.
न्यायिक जांच करने वाले वर्तमान न्यायाधीश या अवकाश प्राप्त न्यायाधीश को उनकी सुविधा अनुसार सहायक व अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं. न्यायिक जांच करने वाले जज मौका-ए-वारदात का मुआयना, गवाहों के बयान और सबूतों की छानबीन स्वयं करते हैं. तय सीमा में जांच पूरी कर वह रिपोर्ट बनाते हैं और संबंधित अदालत को सौंप देते हैं. यदि जांच की अनुशंसा सरकार ने की है, तो जांच पूरी होने पर वह सरकार को अपनी रिपोर्ट सुपुर्द करते हैं.
अक्सर देखने में आता है कि संसद या विधानसभा में उठाए गए किसी बड़े संगीन मुद्दे को शांत करने की खातिर सरकारें खुद ही न्यायिक जांच की सिफारिश कर देती हैं. फिर विपक्षी दल उस मुद्दे पर जब भी सरकार से सवाल करता है, तो सरकार कहती है कि अब मामले की न्यायिक जांच हो रही है, तो उस पर ज्यादा कुछ कहना या बहस करना उचित नहीं होगा.
पुलिस और सीबीआई से अलग प्रक्रिया
किसी भी मामले में पुलिस और सीबीआई प्राथमिकी दर्ज करने के बाद एक जांच अधिकारी (IO) की नियुक्ति करते हैं. जो केवल पुलिस या सीबीआई का वर्तमान अधिकारी होता है. फिर वह आईओ पुलिस के तौर तरीके अपनाकर जांच को अपने हिसाब से पूरा कर चार्जशीट बनाता है और उसे अदालत में दाखिल करता है. कई बार कोर्ट चार्जशीट पर सवाल उठा देती है.
अक्सर पुलिसवालों पर जांच को प्रभावित करने के आरोप लगते हैं. ऐसा ही कुछ सीबीआई के साथ भी होता है. लोग आरोप लगाते हैं कि सरकार सीबीआई को अपने हिसाब से इस्तेमाल करती है. लेकिन न्यायिक जांच के बारे में ऐसा नहीं कहा जाता. कोई भी न्यायिक जांच संबंधित कोर्ट अपनी निगरानी में करा सकती है. माना जाता है कि ऐसी जांच को पुलिस या सीबीआई प्रभावित नहीं कर सकती.
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