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तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?...सांसद ने चीन को कहा, लिखा पत्र

jantaserishta.com
31 Dec 2021 2:50 AM GMT
तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई?...सांसद ने चीन को कहा, लिखा पत्र
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नई दिल्ली. तिब्बत की निर्वासित सरकार (Tibetan Parliament-in-exile) की तरफ से आयोजित रात्रिभोज में भारतीय राजनीतिक हस्तियों के शामिल होने पर चीन ने ऐतराज जताया है. चीनी दूतावास ने पत्र के जरिए भारत से 'तिब्बत के स्वतंत्र बलों को समर्थन' देने से बचने के लिए कहा है. बीते हफ्ते तिब्बत की निर्वासित सरकार द्वारा दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में सर्वदलीय संसदीय फोरम ने हिस्सा लिया था. चीन की तरफ से भेजे गए इस पत्र को नई दिल्ली ने गैर-राजनयिक बताया है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पत्र में चीनी सलाहकार झोउ यॉन्गशेंग ने लिखा, 'मैंने देखा है कि आपने तथाकथित 'ऑल-पार्टी इंडियन पार्लियामेंट्री फोरम फॉर तिब्बत' की तरफ से आयोजित कार्यक्रम में भाग लिया और तथाकथित 'Tibetan Parliament-in-exile' के कुछ सदस्यों से चर्चा की. मैं इस पर अपनी चिंता जाहिर करना चाहूंगा.'

उन्होंने लिखा, 'जैसा कि यह सभी जानते हैं, तथाकथित 'Tibetan Parliament-in-exile' अलगाववादी राजनीतिक समूह है और एक अवैध संगठन है, जो चीन के संविधान और कानूनों के उल्लंघन में है. दुनिया के किसी भी देश ने इसे मान्यता नहीं दी है. प्राचीन समय से ही तिब्बत चीन का अभिन्न हिस्सा रहा है, और तिब्बत संबंधी मामले पूरी तरह चीन के आंतरिक मामले हैं, जिसमें विदेशी दखल की अनुमति नहीं है.' सांसदों को लिखे पत्र में झोऊ ने कहा, 'आप एक वरिष्ठ नेता हैं, जो चीन और भारत के संबंधों के ठीक तरह से जानते हैं. यह उम्मीद की जाती है कि आप मुद्दे की संवेदनशीलता को समझेंगे और 'स्वतंत्र तिब्बती' ताकतों को समर्थन देने से बचेंगे और चीन-भारत द्विपक्षीय संबंधों में योगदान देंगे.'
रिपोर्ट के अनुसार, 22 दिसंबर को दिल्ली स्थित एक होटल में आयोजित कार्यक्रम में कम से कम 6 भारतीय सांसदों ने भाग लिया था. इनमें केंद्रीय राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर, भारतीय जनता पार्टी की नेता मेनका गांधी और केसी राममूर्ति, कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और मनीष तिवारी और बीजेडी के सुजीत कुमार शामिल थे. तिब्बत की निर्वासित सरकार के प्रवक्ता खेन्पो सोनम तेनफेल भी कार्यक्रम में मौजूद थे.
रिपोर्ट के मुताबिक, चीन से मिले पत्र पर बीजेडी के सुजीत कुमार ने कड़ी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा, 'दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत की संसद के सदस्य को पत्र लिखने वाले चीनी दूतावास में राजनीतिक सलाहकार कौन हैं? भारतीय सांसदों को पत्र लिखने की आपकी हिम्मत कैसे हुई? अगर कुछ है भी, तो आप अपना विरोध आधिकारिक माध्यमों से दर्ज करा सकते थे. मुझे लगता है कि विदेश मंत्रालय को इसपर कुछ करना चाहिए.' अखबार से बातचीत में राजीव चंद्रशेखर ने बताया, 'मैं शांता कुमारजी की अध्यक्षता में इंडो-तिब्बत पार्लियामेंट्री फोरम का सदस्य था और इसी के चलते मुझे आमंत्रित किया गया था. मैं रात्रि भोज में शामिल हुआ था.'
खास बात ये है कि केंद्र सरकार ने 'वरिष्ठ नेताओं' और 'सरकारी पदाधिकारियों' को भारत में तिब्बतियों की तरफ से होने वाले आयोजन में शामिल होने के लिए मना किया था. इसके लिए सरकार ने द्विपक्षीय संबंधों का हवाला देकर यह बात कही थी. सरकार के इस फैसले के करीब चार साल बाद चीन की ओर से इस तरह का पत्र मिला है. 60 साल पहले कम्युनिस्ट शासन के खिलाफ विद्रोह में असफल होने के बाद दलाई लामा के साथ करीब 80 हजार तिब्बती नागरिक ल्हासा छोड़कर भारत आ गए थे.
तिब्बत की निर्वासित सरकार हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में है. फिलहाल, लगभग 1 लाख 40 हजार तिब्बती निर्वासन में रह रहे हैं. वहीं, एक लाख से ज्यादा नागरिक भारत के अलग-अलग हिस्सों में हैं. हालांकि 60 लाख से ज्यादा तिब्बती नागरिक अभी भी तिब्बत में ही रहते हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, साल 2018 में केंद्र ने वरिष्ठ मंत्रियों और नौकरशाहों को तिब्बती नेताओं की तरफ से आयोजित 'थैंक्यू इंडिया' कार्यक्रमों से दूर रहने की सलाह दी थी.

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