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गृह मंत्रालय बनवाएगा खास सैटेलाइट, ISRO करेगा मदद, सीमा की निगरानी में होगा इस्तेमाल

jantaserishta.com
15 Feb 2022 8:37 AM GMT
गृह मंत्रालय बनवाएगा खास सैटेलाइट, ISRO करेगा मदद, सीमा की निगरानी में होगा इस्तेमाल
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नई दिल्ली: चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमा पर कड़ी नजर रखने के लिए गृह मंत्रालय (Home Ministry) अब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) की मदद लेने वाला है. वह अपने लिए एक खास सैटेलाइट बनवाएगा, जो चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश की सीमा पर नजर रखेगा. यह सीधे गृह मंत्रालय को अपना डेटा और फीड भेजेगा.

गृह मंत्रालय के इस सैटेलाइट को लेकर 15 फरवरी 2022 को एक उच्च स्तर की मीटिंग हो रही है. इस मीटिंग में गृह मंत्रालय के अधिकारी, इंटेलिजेंस ब्यूरो के चीफ, CRPF, BSF, ITBP, SSB के अधिकारी भी शामिल हो रहे हैं. गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक सीमाओं की सुरक्षा करने वाली सेनाएं और अर्धसैनिक बलों को रियल टाइम जानकारी मिलेगी. इस बैठक में इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक और मंगलयान मिशन के प्रोजेक्ट डायरेक्टर एस. अरुणनन भी शामिल हो रहे हैं.
आखिर ये किस तरह के सैटेलाइट्स होते हैं, जो सीमाओं की निगरानी करते हैं. इनमें किसी तरह के यंत्र लगे होते हैं. आमतौर पर निगरानी सैटेलाइट्स में रडार इमेजिंग, माइक्रोवेव रिमोट सेंसिंग, कार्टोग्राफिक सैटेलाइट होते हैं. जैसे- कार्टोसैट सीरीज (Cartosat Series), रीसैट सीरीज (RISAT Series), अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट (EOS Series) आदि. जरूरत के हिसाब से इन सैटेलाइट्स में पेलोड्स लगाए जाते हैं. जैसे ऑप्टिकल कैमरा, इंफ्रारेड कैमरा, थर्मल कैमरा या नाइट विजन कैमरा, या हीट सेंसिंग पेलोड्स.
14 फरवरी 2022 को यानी वैलेंटाइंस डे के दिन इसरो द्वारा छोड़े गए EOS-4/RISAT-1A सैटेलाइट भी एक तरह से निगरानी सैटेलाइट ही है. इसरो (ISRO) ने 43 साल में अब तक 41 अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट्स लॉन्च किए हैं. जिनमें से कुल मिलाकर तीन फेल हुए हैं. यानी 40 सफल. हमारे वैज्ञानिकों की सफलता और सटीकता देखिए कि 1988 में पहली असफलता मिली. दूसरी 1993 में. इसके बाद 28 सालों तक कोई विफलता नहीं मिली थी. फेल हुए लॉन्च में शामिल हैं- SROSS-2 - 13 जुलाई 1988 ASLV-D2 रॉकेट, IRS-1E - 20 सितंबर 1993 PSLV-D1 रॉकेट और EOS-3 - 12 अगस्त 2021 GSLV-F10 रॉकेट.
इसरो ने बताया कि धरती की निचली कक्षा (Lower Earth Orbit) में अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट्स को तैनात किया जाता है. बहुत कम ऐसा होता है कि किसी अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट को जियो-थर्मल ऑर्बिट (GTO) में तैनात किया जाए. क्योंकि इससे दूरी बढ़ जाती हैं. आमतौर पर निगरानी सैटेलाइट 500 से 600 किलोमीटर की दूरी वाली निचली कक्षा में ही तैनात किये जाते हैं.
आमतौर पर अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट का मुख्य काम मैपिंग यानी नक्शा बनाना है. यह मौसम संबंधी एप्स के लिए नक्शे देगा. खेती-बाड़ी के लिए तस्वीरें खींचेगा. जंगल और पौधारोपण के लिए मदद करेगा. धरती की नमी और हाइड्रोलॉजी और बाढ़ के समय मदद करेगा. इसके अलावा जरूरी होने पर रक्षा मंत्रालय उसमें जरूरत के हिसाब से अपने काम के पेलोड्स लगवाती हैं. ताकि सेनाओं को मदद मिल सके.
EOS सैटेलाइट को निगरानी सैटेलाइट भी कहा जा सकता है. क्योंकि यह किसी भी तरह के भौगोलिक स्थितियों पर नजर रख सकता है. इतना ही नहीं इस सैटेलाइट की ताकतवर आंखें हमारे जमीनी और जलीय सीमाओं की निगरानी भी करतीं. इसकी मदद से दुश्मन की हलचल का पता भी किया जा सकता था.
ISRO द्वारा पहले भेजे गए Cartosat और RISAT सीरीज के सैटेलाइट्स ने सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट अटैक और चीन के साथ पिछले साल हुए विवाद के समय सीमा पर भरपूर नजर रखी थी. जिससे दुश्मन देशों की हालत खराब हो रही थी. हमारे दुश्मन इस बात से घबराते हैं कि उनकी हरकतों पर भारत अंतरिक्ष से नजर रख रहा है.

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