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हिंदी किसी पर नहीं थोपी जा रही: संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष भर्तृहरि महताब
jantaserishta.com
23 Oct 2022 5:51 AM GMT
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नई दिल्ली (आईएएनएस)| केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली राजभाषा समिति ने पिछले महीने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को हिंदी भाषा को लेकर रिपोर्ट सौंपी है। अब इसको लेकर कुछ राज्यों में विरोध के स्वर उठने लगे हैं। तमिलनाडु और केरल के मुख्यमंत्रियों ने नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा है कि केंद्र सरकार द्वारा हमारे राज्यों पर हिंदी थोपी जा रही है।
इस पूरे मसले को लेकर संसदीय राजभाषा समिति के उपाध्यक्ष भर्तृहरि महताब ने आईएएनएस से खास बातचीत में कहा कि दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री भ्रामक खबरों पर बयान दे रहे हैं। समिति ऐसा कुछ नही करने जा रही। भर्तृहरि महताब ने खास बातचीत में पूरे विस्तार से मामले पर अपनी राय रखी है।
सवाल: तमिलनाडु और केरल के मुख्यमंत्री ने कहा है कि हिंदी उनपर थोपी जा रही है। समिति का क्या कहना है?
उत्तर: समिति की तरफ से नहीं, मैं अपने विचार और प्रतिक्रिया दे सकता हूं। ये बातें बेबुनियाद हैं। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ने जो मुद्दा उठाया है, तमिलनाडु को तो राजभाषा एक्ट के तहत छूट मिली हुई है। वहां नियम लागू नहीं हो सकते। ऐसा नहीं है कि उनको ये मालूम नहीं है, फिर भी वो ये मुद्दा उठा रहे हैं। रही बात केरल की तो हिंदी किसी राज्य पर नहीं थोपी जा रही है। 1976 से जो एक्ट लागू था, उसमें हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषा रही हैं। हमारे तरफ से सिर्फ ये कहा गया है कि जो (क) वर्ग में संस्थान हैं केंद्र सरकार के वहां हिंदी का प्रयोग बढ़ाया जाए। कुछ मीडिया ने जो शब्दावली दिया है, वो भ्रामक है और गलत है।
सवाल: नए रिपोर्ट में समिति द्वारा इस बार क्या बदलाव हो रहे हैं?
उत्तर: केरल और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री जो संवैधानिक पदों पर बैठे हैं, उन्हें ये ज्ञात होना होगा। 46 सालों से जो बदला नहीं, वो अब क्यों बदलेगा। किसी बदलाव की गुंजाइश नही है। अभी हमने रिपोर्ट का 11वां खंड राष्ट्रपति के पास भेजा है। 9 खंड पहले ही लागू हो चुके हैं। 10 और अब 11 राष्ट्रपति के पास विचाराधीन हैं। हमारी ये नई रिपोर्ट अभी गोपनीय है।
सवाल: अगर रिपोर्ट में कुछ बदलाव नहीं किए गए हैं, तो फिर कुछ राज्य ये मुद्दा क्यों उठा रहे हैं?
उत्तर: उनका कुछ राजनीतिक लाभ लेने की इक्षा होगी शायद। मै नहीं कह सकता, उन्हें ये बात मालूम है फिर भी ये मुद्दा उठाया जा रहा है।
सवाल: राज्यों को क्या 3 कैटेगरी में बांटा गया है?
उत्तर: ये व्यवस्था हमने नहीं की है। 1976 से ही जब इंदिरा गांधी की सरकार थी, उसी समय से बनी हुई हैं। उसी समय से ये व्यवस्था चली आ रही है। इसमें कोई बदलाव नहीं किया गया है।
सवाल: तीसरी कैटेगरी में जो गैर-हिंदी भाषी राज्य रखे गए हैं, उनके लिए हिंदी को लेकर इस रिपोर्ट में क्या प्रावधान किए जा रहे हैं?
उत्तर: केरल, तेलंगाना, बंगाल, ओडिशा, असम आंध्रप्रदेश, कर्नाटक जैसे जो गैर-हिंदी भाषी राज्य हैं, इनमें जो केंद्र सरकार के संस्थान हैं, उनमें कम से कम 55 प्रतिशत हिंदी में काम हो, ये कहा गया है। ये व्यवस्था पहले से ही है। इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। राज्य सरकार अपने हिसाब से उनकी भाषा में काम कर सकते हैं। ये सिर्फ केंद्र सरकार के कार्यालयों और संस्थानों के लिए है।
सवाल: राज्यों में स्तिथ केंद्र सरकार के शिक्षण संस्थानों में हिंदी को पढ़ाई का माध्यम बनाया जा रहा है क्या?
उत्तर: ये तो हो रहा है, ये हम कर रहे हैं। सालों से ये प्रक्रिया चल रही है।
गौरतलब है कि राजभाषा पर संसद की समिति की स्थापना 1976 में राजभाषा अधिनियम, 1963 की धारा 4 के तहत की गई थी। हिंदी के सक्रिय प्रचार के साथ, आधिकारिक संचार में हिंदी के उपयोग की समीक्षा और प्रचार करने के लिए राजभाषा समिति का गठन किया गया था। समिति की अध्यक्षता केंद्रीय गृह मंत्री करते हैं।
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