हाई कोर्ट का मुख्यमंत्री से सवाल, मकान का किराया देने के वादे पर कही ये बात
दिल्ली हाई कोर्ट ने सिंगल जज के उस फैसले पर रोक लगा दी है, जिसमें कहा गया था कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कोविड महामारी के दौरान गरीब किरायेदार के किराए का भुगतान करने का वादा लागू करने योग्य है. 10 सितंबर को दिल्ली सरकार ने बताया था कि मामला विचाराधीन है और इस पर दो हफ्ते में फैसला लिया जाएगा. पिछले साल 29 मार्च को कोरोना महामारी के दौरान सीएम अरविंद केजरीवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में गरीब किरायेदार के किराए का भुगतान करने का ऐलान किया था. हालांकि, ये फैसला लागू नहीं किया गया था. जिसको लेकर हाई कोर्ट में याचिका दायर हुई. बाद में हाई कोर्ट की सिंगल जज बेंच ने इस फैसले को लागू करने योग्य बताया था.
सिंगल जज के फैसले के खिलाफ दिल्ली सरकार ने हाईकोर्ट में अपील की. इस मामले में चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस ज्योति सिंह की बेंच ने सिंगल जज के फैसले पर रोक लगा दी. इस मामले में अब 29 नवंबर को अगली सुनवाई होगी. सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए सीनियर वकील मनीष वशिष्ठ ने कहा, 'ऐसा कोई वादा नहीं किया गया था. हमने सिर्फ इतना कहा था कि प्रधानमंत्री के आदेश का पालन करें. हमने मकान मालिकों से किराए के लिए किरायेदारों को मजबूर न करने को कहा था और ये भी कहा था कि अगर किरायेदारों को कोई साधन नहीं मिलते हैं तो सरकार इस पर गौर करेगी.'
इस पर हाई कोर्ट ने पूछा, 'तो क्या आपका इरादा भुगतान करने का नहीं है? यहां तक कि 5 फीसदी भी नहीं?' तो जवाब देते हुए उन्होंने कहा, 'केवल तभी जब मांग हो.' उन्होंने दावा किया कि कोई भी व्यक्ति उनके पास राहत मांगने नहीं आया. वहीं, याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकील गौरव जैन ने अदालत के फैसले का विरोध किया और कहा कि उनके क्लाइंट के पास किराए का भुगतान करने का कोई साधन नहीं है. 22 जुलाई को जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह की बेंच ने आदेश दिया था कि मुख्यमंत्री का वादा लागू करने योग्य था. उन्होंने दिल्ली सरकार को अरविंद केजरीवाल की घोषणा पर फैसला करने के लिए 6 हफ्ते का वक्त दिया था. उन्होंने कहा था कि महामारी के दौरान अरविंद केजरीवाल का प्रेस कॉन्फ्रेंस किया गया वादा नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.