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हाईकोर्ट के जज ने भाषण देकर खड़ा किया विवाद, जस्टिस के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए राज्यसभा में नोटिस
jantaserishta.com
13 Dec 2024 10:51 AM GMT
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नई दिल्ली: विभिन्न विपक्षी दलों के सदस्यों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शेखर कुमार यादव के हाल में दिए गए कथित 'विवादास्पद बयान' के लिए उनके खिलाफ महाभियोग चलाने के वास्ते शुक्रवार को राज्यसभा में नोटिस दिया। हाल ही में एक कार्यक्रम में जस्टिस शेखर यादव ने कहा था कि यह देश बहुसंख्यकों के हिसाब से चलेगा। सूत्रों ने यह जानकारी देते हुए बताया कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यादव के खिलाफ महाभियोग के लिए 55 विपक्षी सांसदों ने राज्यसभा में दिए गए नोटिस पर हस्ताक्षर किए हैं। इनमें कपिल सिब्बल, विवेक तन्खा और दिग्विजय सिंह, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के जॉन ब्रिटास, राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के मनोज कुमार झा और तृणमूल कांग्रेस के साकेत गोखले शामिल हैं।
सूत्रों ने बताया कि सांसदों ने आज उच्च सदन की कार्यवाही शुरू होने से कुछ मिनट पहले राज्यसभा के महासचिव से मुलाकात की और महाभियोग का नोटिस सौंपा। नोटिस पर हस्ताक्षर करने वाले अन्य प्रमुख सांसद पी चिदंबरम, रणदीप सुरजेवाला, प्रमोद तिवारी, जयराम रमेश, मुकुल वासनिक, नसीर हुसैन, राघव चड्ढा, फौजिया खान, संजय सिंह, ए ए रही, वी शिवदासान और रेणुका चौधरी हैं।
न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ महाभियोग की कार्यवाही शुरू करने की मांग करते हुए न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 और संविधान के अनुच्छेद 218 के तहत प्रस्ताव के लिए नोटिस पेश किया गया। नोटिस में कहा गया है कि विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की ओर से आयोजित एक कार्यक्रम में न्यायमूर्ति यादव द्वारा दिए गए भाषण या व्याख्यान से प्रथम दृष्टया पता चलता है कि उन्होंने भारत के संविधान का उल्लंघन करते हुए, नफरत फैलाने वाला भाषण दिया और सांप्रदायिक विद्वेष को भड़काया।
इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि न्यायाधीश यादव ने प्रथम दृष्टया यह इंगित किया कि उन्होंने अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया और उनके खिलाफ पूर्वाग्रह और पक्षपात जाहिर किया। इसमें कहा गया है कि न्यायमूर्ति यादव ने न्यायिक जीवन में मूल्यों की पुनर्व्याख्या, 1997 का उल्लंघन करते हुए सार्वजनिक चर्चा में भाग लिया तथा समान नागरिक संहिता से संबंधित राजनीतिक मामलों पर अपने विचार व्यक्त किए। नोटिस में कहा गया है कि न्यायाधीश की सार्वजनिक टिप्पणी भड़काऊ और पूर्वाग्रह से भरी थी और सीधे तौर पर अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाती थी।
इसमें यह भी कहा गया है कि न्यायमूर्ति यादव ने अपने व्याख्यान में जोर देकर कहा था कि देश बहुसंख्यकों की इच्छा के अनुसार काम करेगा। सांसदों ने महाभियोग के लिए अपने नोटिस में कहा, ''न्यायमूर्ति यादव का कृत्य भारत के संविधान के अनुच्छेद 51ए(ई) के तहत नीति निर्देशक सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, जो सद्भाव को बढ़ावा देने और व्यक्तियों की गरिमा के लिए अपमानजनक प्रथाओं का त्याग करने की बात करते हैं।'' उन्होंने कहा, ''ये बयान, जिसकी खबर व्यापक रूप से दी गयी है, विभिन्न धार्मिक और सांप्रदायिक समूहों के बीच दुश्मनी और विभाजन को बढ़ावा देते हैं, और भारत के संविधान के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार का उल्लंघन करते हैं।''
नोटिस में कहा गया है, ''हम माननीय सभापति से अनुरोध करते हैं कि वह इस प्रस्ताव को स्वीकार करें और इसे न्यायाधीश (जांच) अधिनियम, 1968 के अनुसार भारत के माननीय राष्ट्रपति को भेजें और नफरत फैलाने वाले भाषण, सांप्रदायिक वैमनस्य और न्यायिक नैतिकता के उल्लंघन के आरोपों की जांच के लिए एक जांच समिति का गठन करें।'' विपक्षी सांसदों ने यह भी मांग की कि यदि आरोप साबित हो जाएं तो सभापति न्यायमूर्ति यादव को पद से हटाने के लिए उचित कार्यवाही शुरू करें।
विश्व हिंदू परिषद के आठ दिसंबर को आयोजित एक समारोह में न्यायमूर्ति यादव ने कथित तौर पर कहा था कि समान नागरिक संहिता का मुख्य उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, लैंगिक समानता और धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा देना है। एक दिन बाद, न्यायाधीश के बयान संबंधी वीडियो सोशल मीडिया पर आए, जिसके बाद विपक्षी नेताओं सहित कई हलकों से कड़ी प्रतिक्रियाएं सामने आईं। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को न्यायमूर्ति यादव के कथित विवादास्पद बयानों पर समाचार रिपोर्टों का संज्ञान लिया और इस मुद्दे पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय से विवरण मांगा।
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