हाईकोर्ट ने निचली अदालत पर लगाया 1 लाख का जुर्माना, मातृत्व अवकाश का मामला

मद्रास। मद्रास हाई कोर्ट ने हाल ही में अपने एक फैसले में कहा है कि कोई भी नियोक्ता किसी भी महिला को मातृत्व अवकाश देने से इनकार नहीं कर सकता और इस लाभ के लिए महिला कर्मचारी से तब तक विवाह से जुड़ा सबूत नहीं मांग सकता, तब तक कि उसका विवाह उचित संदेह के घेरे में न हो। हाई कोर्ट ने अपने अधीनस्थ एक निचली अदालत यानी जिला मुंसिफ सह जूडिशियल मजिस्ट्रेट की अदालत की इस बात के लिए आलोचना की कि जूडिशियल मजिस्ट्रेट के कार्यालय की एक सहायक को विवाह के शक के आधार पर मातृत्व अवकाश देने से रोक दिया गया था।
जस्टिस आर सुब्रमण्यन और जस्टिस जी अरुल मुरुगन की पीठ ने हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि निचली अदालत के व्यवहार के कारण पीड़ित महिला कर्मचारी को मानसिक और अन्य परेशानी हुई है, इसलिए उसे 100000 रुपये बतौर हर्जाना का भुगतान किया जाए। हाई कोर्ट ने जिला मजिस्ट्रेट की हरकत को पूरी तरह से अनुचित और अमानवीय करार दिया और कहा कि महिला का मातृ्त्व अवकाश आवेदन को खारिज करने के लिए जानबूझकर ऐसे कारण तलाशे गए।
बार एंड बेंच की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हाई कोर्ट ने अपने फैसले में लिखा, "विद्वान जिला मुंसिफ सह न्यायिक मजिस्ट्रेट की कार्रवाई अमानवीय है। वैसे दिनों में जब माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिव इन रिलेशनशिप को भी मान्यता दी जी चुकी है, तब विद्वान जिला मुंसिफ सह न्यायिक मजिस्ट्रेट, कोडावसल ने इस मामले में पुरातनपंथी दृष्टिकोण अपनाया और याचिकाकर्ता के मातृत्व अवकाश के आवेदन को जानबूझकर अस्वीकार करने के कारणों का पता लगाया। हमारी राय में यह पूरी तरह से अनुचित है।"