हाईकोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को किया रद्द, महिला की याचिका पर सुनाया अहम फैसला
जस्टिस भारती डांगरे की सिंगल बेंच महिला द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मां ने अपनी नौ साल की बेटी के साथ पोलैंड के क्राको में जाकर रहने की अनुमति मांगी थी. पुणे में एक निजी फर्म में काम करने वाली महिला को उसकी कंपनी ने पोलैंड में एक प्रोजेक्ट ऑफर किया था. महिला अब पोलैंड जा सकती है.
पति ने याचिका का विरोध करते हुए दावा किया था कि अगर बच्चे को उससे दूर ले जाया गया तो वह उसे फिर से नहीं देख पाएगा. पति ने आरोप लगाया कि महिला का पोलैंड में बसने का एकमात्र मकसद पिता-पुत्री के बंधन को तोड़ना था. वकीलों ने अपने पड़ोसी देशों, यूक्रेन और रूस के कारण पोलैंड में चल रही स्थिति का भी उल्लेख किया. लेकिन कोर्ट ने कहा कि एक महिला के करियर की संभावनाओं को भी नहीं नकारा जा सकता है. दोनों पक्षों की दलीलों को सुनने के बाद जस्टिस डांगरे ने कहा कि आज तक बेटी की कस्टडी उस मां के पास है, जिसने अकेले ही बच्चे की परवरिश की है और लड़की की उम्र को देखते हुए, यह जरूरी है कि उसे अपनी मां के साथ जाना चाहिए.
कोर्ट ने महिला के करियर की संभावनाओं और पिता और बेटी के बीच के बंधन के बीच संतुलन बनाने का फैसला किया. कोर्ट ने कहा, मुझे नहीं लगता कि कोर्ट को मां को नौकरी करने देने से रोकना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि अनिवार्य रूप से, माता और पिता दोनों के हितों के बीच संतुलन बनाना होगा और बच्चे के भविष्य को भी ध्यान में रखना होगा.