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झारखंड में 'इंडिया' की पहली जीत से सियासी स्कोर बोर्ड पर और बढ़ गई हेमंत सोरेन की चमक
jantaserishta.com
10 Sep 2023 5:30 AM GMT
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रांची: झारखंड में एनडीए बनाम इंडिया की पहली लड़ाई में इंडिया ने फतह हासिल की है और इसके साथ ही राज्य के सियासी स्कोर बोर्ड पर राज्य के सीएम हेमंत सोरेन के नाम की चमक और बढ़ गई है। राज्य की डुमरी विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में इंडिया की ओर से उतरी झारखंड मुक्ति मोर्चा की बेबी देवी की जीत के साथ उन्हें हौसले की एक नई संजीवनी मिली है।
विपक्ष के हमलों, कोर्ट में चल रहे मुकदमों, कई मुद्दों पर केंद्र सरकार के साथ टकराव और ईडी की कार्रवाई की वजह से बार-बार मुश्किलों में घिरते रहे सोरेन अब नए उत्साह से लबरेज हैं। हालांकि उन्हें इस बात की आशंका है कि जिस तरह उनके इर्द-गिर्द ईडी और सीबीआई की घेराबंदी बढ़ रही है, उसमें उनके जेल जाने की नौबत आ सकती है, लेकिन इसके पहले वह सियासी मोर्चे पर खुद का इकबाल इतना बुलंद कर लेना चाहते हैं कि विरोधी दलों को इसका कोई फायदा न मिले।
जिस समय डुमरी विधानसभा उपचुनाव का नतीजा सामने आया, उस समय सोरेन चाईबासा के गुवा में एक जनसभा को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, “जब से हमारी सरकार बनी है, हमारे खिलाफ साजिशें रची जा रही हैं। संवैधानिक संस्थाओं का दुरुपयोग कर मुझे जेल भेजने की कोशिश की जा रही है। लेकिन जब तक वे मुझे जेल भेजेंगे, तब तक झारखंड को मजबूत कर दूंगा।”
सोरेन जानते हैं कि जब तक जनता किसी पॉलिटिशियन को सिर-आंखों पर रखती है, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह जेल के अंदर है या बाहर है। यह सियासी सबक दरअसल उन्हें अपने पिता शिबू सोरेन से विरासत में मिला है, जो भ्रष्टाचार से लेकर हत्या जैसे आरोपों को लेकर कई बार जेल गए, लेकिन इससे उनका और उनकी पार्टी झामुमो की सियासी सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा। बल्कि हर जेल यात्रा के बाद शिबू सोरेन का नायकत्व और बढ़ता गया। भाजपा के नेता जब-जब यह उनपर यह कहते हुए हमला करते हैं कि हेमंत सोरेन जेल जाने को तैयार रहें, तब-तब उसके जवाब में वह जनसभाओं में सीना ठोक कर कहते हैं- कोई झारखंडी कभी जेल जाने से डरा है क्या?
सनद रहे कि सोरेन इन दिनों फिर एक बार ईडी के रडार पर हैं। पिछले साल खनन घोटाले में ईडी उनसे लगभग दस घंटे की पूछताछ कर चुकी है। ईडी ने अपनी चार्जशीट में उन्हें अवैध माइनिंग के जरिए मनी लॉन्ड्रिंग करने वाले आरोपियों का संरक्षक बताया है। अब ईडी राज्य के जमीन घोटाले में चल रही कार्रवाई के सिलसिले में उनसे पूछताछ करना चाहती है। ईडी हेमंत सोरेन के अगस्त से लेकर अब तक तीन बार समन भेज चुकी है, लेकिन सोरेन ईडी के समक्ष हाजिर होने के बजाय उसकी कार्रवाई को राजनीतिक पूर्वाग्रह से प्रेरित बताते हुए उसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट चले गए हैं। ईडी ने उन्हें 9 सितंबर को हाजिर होने का समन भेजा था, लेकिन वे इसे नकारकर राष्ट्रपति द्वारा जी-20 सम्मेलन के उपलक्ष्य में दिए गए भोज में सम्मिलित होने चार्टर्ड प्लेन से दिल्ली चले गए।
हेमंत सोरेन के समर्थक उनके लिए एक नारा लगाते हैं- हेमंत है तो हिम्मत है ! यह कहने-मानने में शायद ही किसी को गुरेज हो कि डुमरी विधानसभा उपचुनाव सीट पर इंडिया और एनडीए के बीच हुई सीधी लड़ाई में इंडिया को मिली जीत से “हेमंत की हिम्मत” में और इजाफा हो गया है।
डुमरी की यह सीट हेमंत सोरेन की सरकार में मंत्री रहे जगरनाथ महतो के निधन से खाली हुई थी। हेमंत सोरेन ने उपचुनाव का ऐलान होने के पहले ही बड़ा दांव चलते हुए दिवंगत जगरनाथ महतो की पत्नी बेबी देवी को बगैर विधायक बने अपने मंत्रिमंडल में शामिल कर लिया और उन्हें डुमरी सीट पर पार्टी का प्रत्याशी घोषित कर दिया। जब तक उपचुनाव का ऐलान होता, इसके पहले ही उन्होंने डुमरी सीट पर जबरदस्त फील्डिंग शुरू कर दी। उस इलाके के लिए एकमुश्त कई कल्याणकारी और विकास योजनाओं का न सिर्फ ऐलान किया, बल्कि उनका शिलान्यास-उद्घाटन भी कर दिया। चुनाव के पहले बेबी देवी को मंत्री पद की शपथ दिलाना भी उनकी सियासी रणनीति का ही हिस्सा था। चुनाव अभियान के दौरान भी हेमंत सोरेन ने इलाके में करीब एक दर्जन सभाएं और रोड शो किए।
दूसरी तरफ एनडीए ने उपचुनाव का ऐलान होने के बाद अपने प्रत्याशी का ऐलान किया। इस सीट पर 2019 के विधानसभा चुनाव में आजसू पार्टी की यशोदा देवी दूसरे नंबर पर रही थीं। उस वक्त भाजपा ने भी अपना उम्मीदवार उतारा था और वह तीसरे स्थान पर था। इस बार आजसू पार्टी और भाजपा एनडीए गठबंधन की छतरी के नीचे आई। आजसू की यशोदा देवी एनडीए की प्रत्याशी घोषित हुईं। 2019 में आजसू पार्टी और भाजपा प्रत्याशी दोनों के सम्मिलित वोटों की संख्या करीब 72 हजार थी, जबकि चुनाव जीतने वाले झामुमो के जगरनाथ महतो को करीब 71 हजार वोट मिले थे। एनडीए यह मानकर चल रहा था कि इस बार आजसू-भाजपा की एका का परिणाम यह होगा कि भाजपा के वोट आजसू प्रत्याशी के पक्ष में ट्रांसफर हो जाएंगे और इस आधार पर उनकी जीत सुनिश्चित हो जाएगी।
हेमंत सोरेन ने एनडीए की यह रणनीति नाकाम कर दी। दरअसल, उन्होंने अपनी पार्टी की प्रत्याशी बेबी देवी की जीत सुनिश्चित करने के लिए अल्पसंख्यक यानी मुस्लिम वोटरों को बहुत कायदे के साथ साध लिया। 2019 में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी के प्रत्याशी ने 24 हजार से ज्यादा वोट हासिल किए थे। इस बार भी ओवैसी ने अपना प्रत्याशी उतारा, लेकिन हेमंत सोरेन की सधी हुई रणनीति की बदौलत मुस्लिमों के 90 फीसदी वोट उनके प्रत्याशी के पक्ष में ट्रांसफर हुए। ओवैसी के कैंडिडेट को इस बार मात्र 3472 वोट मिले, जो 2019 की तुलना मिले वोटों की तुलना में करीब 20 हजार कम हैं।
बहरहाल, इस जीत के बाद हेमंत सोरेन के सियासी तेवर और आक्रामक हो गए हैं। सच तो यह है कि 2019 में चुनाव जीतकर मुख्यमंत्री बनने के बाद तमाम झंझावतों के बावजूद वे विरोधियों के ऊपर लगातार स्कोर करते रहे। राज्य में 2019 के बाद छह विधानसभा सीटों दुमका, मधुपुर, मांडर, रामगढ़, बेरमो और डुमरी पर अलग-अलग वजहों से चुनाव की नौबत आई और इनमें से पांच सीटों पर हेमंत सोरेन की अगुवाई वाले सत्तारूढ़ गठबंधन ने जीत हासिल की है।
जाहिर है, 2024 में संभावित चुनावों के पहले सोरेन ने अपने सियासी किले की मजबूत घेराबंदी कर ली है। यह तय है कि लोकसभा हो या विधानसभा, आगामी चुनावों में एनडीए को झारखंड में हेमंत सोरेन की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन से कड़ी चुनौती मिलेगी।
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