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इन दो शहरों के नामकरण पर बॉम्बे हाईकोर्ट में हुई सुनवाई

Nilmani Pal
28 Feb 2023 1:09 AM GMT
इन दो शहरों के नामकरण पर बॉम्बे हाईकोर्ट में हुई सुनवाई
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मुंबई। महाराष्ट्र में औरंगाबाद और उस्मानाबाद शहरों के नाम बदलने के मामले सोमवार को बॉम्बे हाईकोर्ट ने सुनवाई की. इस दौरान केंद्र सरकार की तरफ से सूचित किया गया कि अब दोनों शहरों के नाम बदल दिए गए हैं. इस पर हाई कोर्ट ने कहा है कि वह सभी याचिकाओं पर 27 मार्च को सुनवाई करेगा. वहीं, कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को अपनी पिटीशन में संशोधन करने की अनुमति देने की मांग को ठुकरा दिया है. क्योंकि नए नामों को अब केंद्र सरकार ने मंजूरी दे दी है.

बताते चलें कि 15 फरवरी को केंद्र सरकार ने हाई कोर्ट में जानकारी दी थी कि उसने पहले ही उस्मानाबाद का नाम बदलकर धाराशिव करने की मंजूरी दे दी थी, जबकि औरंगाबाद का नाम बदलकर संभाजी नगर करने की प्रक्रिया अभी भी चल रही है. हालांकि सोमवार को केंद्र ने कहा कि दोनों नामों को मंजूरी दे दी गई है. इस पर कोर्ट ने नाम परिवर्तन के खिलाफ सुनवाई के लिए याचिका को स्वीकार कर लिया है. याचिकाकर्ताओं के एक ग्रुप की ओर से पेश अधिवक्ता प्रदन्या तालेकर ने कहा कि सरकार पहले से ही राजस्व मंडलों, रेलवे स्टेशनों, नगर निगमों आदि के नाम बदलने के लिए और कदम उठाने की प्रक्रिया में है. इस तरह अवैधता को बढ़ावा दिया है. याचिकाकर्ताओं ने यथास्थिति या इस प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की है.

हालांकि, महाराष्ट्र के महाधिवक्ता डॉ बीरेंद्र सराफ ने इसका विरोध किया और बताया कि राज्य ने राजस्व विभाग का नाम बदलने के लिए एक मसौदा अधिसूचना प्रकाशित की है और आपत्तियां प्रस्तुत करने की अंतिम तिथि 27 मार्च, 2023 है. एक्टिंग चीफ जस्टिस एसवी गंगापुरवाला और जस्टिस संदीप मार्ने की बेंच ने मामले को अंतिम सुनवाई के लिए 27 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया. ताकि सरकार द्वारा कोई और निर्णय लेने से पहले याचिकाओं पर अंतिम रूप से निर्णय लिया जा सके.

बता दें कि 16 जुलाई, 2022 को राज्य सरकार ने औरंगाबाद और उस्मानाबाद का नाम क्रमशः छत्रपति संभाजीनगर और धाराशिव करने की मंजूरी दी थी. औरंगाबाद निवासी मोहम्मद मुश्ताक अहमद, अन्नासाहेब खंडारे और राजेश मोरे द्वारा दायर याचिका में औरंगाबाद का नाम बदलने के सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है, जबकि उस्मानाबाद के 17 निवासियों द्वारा धाराशिव के रूप में इसका नाम बदलने के खिलाफ एक अन्य जनहित याचिका दायर की गई है. दोनों याचिकाओं ने सरकार के फैसले को राजनीति से प्रेरित बताया.


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