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पत्नी को मारकर दफनाया, अब सुप्रीम कोर्ट से ये गुहार लगाई

jantaserishta.com
17 Nov 2022 11:30 AM GMT
पत्नी को मारकर दफनाया, अब सुप्रीम कोर्ट से ये गुहार लगाई
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न्यूज़ क्रेडिट: आजतक
राजीव गांधी की हत्या की दोषी नलिनी श्रीहरन की रिहाई के बाद स्व-घोषित बाबा श्रद्धानंद ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि उन्हें भी रिहा किया जाए.
नई दिल्ली: राजीव गांधी की हत्या की दोषी नलिनी श्रीहरन की रिहाई के बाद स्व-घोषित बाबा श्रद्धानंद ने सुप्रीम कोर्ट से गुहार लगाई है कि उन्हें भी रिहा किया जाए. श्रद्धानंद अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. उन्होंने अदालत में याचिका दायर कर कहा है कि जिस तरह राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा किया गया है, मुझे भी जेल से रिहा किया जाए.
श्रद्धानंद ने समानता के अधिकार के उल्लंघन का हवाला देते हुए कहा कि वह बिना किसी पैरोल के लगभग 29 सालों से जेल में बंद हैं. उन पर अपनी पत्नी शकीरा नमाजी की हत्या का आरोप है.
श्रद्धानंद उर्फ मुरली मनोहर मिश्रा ने अपनी पत्नी नमाजी को नशीला पदार्थ देकर उसे जिंदा दफना दिया था. यह घटना 28 अप्रैल 1991 की है. श्रद्धानंद ने बेंगलुरू स्थित अपने बंगले के कंपाउंड में ही पत्नी को जिंदा दफ्ना दिया था.
शकीरा मैसूर के पूर्व दीवान सर मिर्जा इस्मायल की पोती थी, जिसने पूर्व राजनयिक अकबर खलीली को तलाक देने के बाद 1986 में श्रद्धानंद से शादी की थी.
राजीव गांधी हत्या मामले में रिहा किए गए दोषियों की तर्ज पर समानता की मांग करते हुए श्रद्धानंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कहा कि उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई गई और इस दौरान उन्हें एक भी दिन का पैरोल नहीं दिया गया.
यह याचिका उनके वकील वरुण ठाकुर ने की, जिसमें कहा गया कि उनके मुवक्किल श्रद्धानंद की उम्र 80 साल से अधिक है और वह मार्च 1994 से जेल में हैं.
याचिका में कहा गया, असल में याचिकाकर्ता से पुलिस ने पूछताछ की और उनका बयान लिया, जिसके आधार पर निचली अदालत ने उन्हें मृत्युदंड की सजा दी. बाद में हाईकोर्ट ने इस सजा को बरकरार रखा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उनकी सजा को बदलकर उम्रकैद में तब्दील कर दिया. लेकिन संबंधित अथॉरिटी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को गलत तरीके से इंटरप्रेट किया और उनके मुवक्किल को एक भी दिन का पैरोल नहीं दिया.
याचिका में कहा गया कि हाल ही में राजीव गांधी हत्या के मामले में दोषियों को रिहा किया गया है. ये दोषी अपनी सजा के दौरान पैरोल और अन्य सुविधाओं का भी लाभ लेते रहे हैं जबकि उन्हें इससे महरूम रखा गया. इसलिए उनके मुवक्किल को भी रिहा किया जाए.
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