उत्तर प्रदेश के आगरा (Agra) की खेरागढ़ विधानसभा सीट से 74 वर्षीय हसानुराम अंबेडकरी (Hasanuram Ambedakari) एक चर्चित उम्मीदवार है, जो इस बार अपना 94वां चुनाव लड़ें और हार गए. बतौर निर्दलीय प्रत्याशी चुनावी रण में उतरे हसानुराम को महज 447 वोट मिले. जो कि कुल पड़े वोटों का सिर्फ 0.22 फीसदी था. उनकी बुरी तरह से हार हुई और जमानत राशि भी जब्त हो गई |
वह एक खेत मजदूर के रूप में काम करते है और उनके पास मनरेगा जॉब कार्ड भी है. उन्होंने कोई औपचारिक स्कूली शिक्षा ग्रहण नहीं है, लेकिन वह हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी पढ़ और लिख सकते हैं. कांशीराम द्वारा स्थापित अखिल भारतीय पिछड़ा एंव अल्पसंख्यक समुदाय कर्मचारी फेडरेशन (बामसेफ) के एक सदस्य अंबेडकरी ने कुछ दिन पहले कहा था कि उन्होंने डॉ. भीम राव अंबेडकर की विचारधारा पर चलते हुए सभी चुनाव लड़े हैं | वह 1985 से लोकसभा, राज्य विधानसभा,पंचायत चुनाव और अन्य विभिन्न निकायों के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली. भारत के राष्ट्रपति पद के लिए 1988 में उनका नामांकन खारिज कर दिया गया था | उन्होंने तब कहा था, मैं हारने के लिए चुनाव लड़ता हूं. जीतने वाले नेता जनता को भूल जाते हैं. मैं 100 बार चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाना चाहता हूं. मुझे परवाह नहीं है कि मेरे विरोधी कौन हैं, क्योंकि मैं मतदाताओं को अम्बेडकर की विचारधारा के तौर पर एक विकल्प देने के लिए चुनाव लड़ता हूं |