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आजादी के अमृत महोत्सव की कड़ी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय के अद्वितीय ‘हर घर तिरंगा’ अभियान को लेकर समूचे देश में उत्साह है
आजादी के अमृत महोत्सव की कड़ी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केन्द्रीय संस्कृति मंत्रालय के अद्वितीय 'हर घर तिरंगा' अभियान को लेकर समूचे देश में उत्साह है। इस विशेष अभियान का आयोजन आजादी की 75वीं वर्षगांठ का जश्न अनोखे तरीके से मनाने के लिए किया जा रहा है। इस अभियान के तहत 13 से 15 अगस्त के दौरान देश के 20 करोड़ से भी अधिक घरों में तिरंगा फहराने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। तिरंगा हमारे राष्ट्रीय गौरव और पहचान का प्रतीक है। इस महत्वाकांक्षी अभियान का मकसद जन-भागीदारी के जरिए तिरंगे के प्रति सम्मान को एक नई ऊंचाई देना और लोगों में देशभक्ति की भावना को प्रबल करना है। मुझे पूरा यकीन है कि इस अभियान में देश का हर नागरिक अपना उल्लेखनीय योगदान देगा, जिससे पूरे विश्व को हमारी सामूहिक शक्ति और सामर्थ्य का एक नया पैगाम मिलेगा।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने हालिया मन की बात कार्यक्रम के दौरान भी इस अभियान के तहत घर-घर में तिरंगा फहराने का आह्वान किया। इसके बाद देश में तिरंगे झंडे की जबरदस्त मांग देखी जा रही है और इसे लेकर देशभर के बाजारों में भी काफी रौनक है। गौरतलब है कि तिरंगे का प्रदर्शन और उपयोग भारतीय झंडा संहिता – 2002 और राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम – 1971 के तहत आता है। इस अभियान के मद्देनजर सरकार ने नियमों में भी बदलाव कर दिया और संशोधित नियमों के मुताबिक अब कोई भी भारतीय किसी भी समय झंडा फहरा सकता है। चाहे दिन हो या रात। साथ ही अब पॉलीस्टर और मशीन से बने झंडों का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह संशोधन निश्चित रूप से लोगों में राष्ट्रहित की भावना को और अधिक बढ़ावा देने में मील का पत्थर साबित होगा। हालांकि तमाम बुद्धजीवियों का मानना है कि यह तिरंगे का अपमान है और इससे देश के चरित्र को बदलने की कोशिश की जा रही है। लेकिन मेरा ऐसे विद्वानों से सवाल है कि आखिर कैसे?
भारत एक बहुसांस्कृतिक देश है और इसी के आधार पर हमने अपनी राष्ट्रीयता का निर्माण किया है और इसी समझ के साथ हमने राष्ट्रगान और तिरंगा को चुना है। इसके बावजूद कुछ दशक पहले तक हम सिर्फ ऊपरी मन से अपने देश पर गर्व कर पाते थे, आखिर क्यों? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आरंभ से ही उस अंतर्वेदना को मिटाने के लिए आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर पर कई प्रयास किए हैं। इसका नतीजा यह है कि आज भारत की वैश्विक पटल पर एक अलग पहचान है और दुनिया का हर देश भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करना चाहता है। इस परिणाम ने निश्चित रूप से दुनियाभर में फैले भारतीयों को गर्व करने का अवसर प्रदान किया है। हर घर तिरंगा अभियान उसी विरासत को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कड़ी है।
कई बुद्धजीवी कहते हैं कि यह एक बहुसंख्यकवादी सोच का नतीजा है और यह परोक्ष रूप से लाल किले पर भगवा झंडा फहराने की साजिश है। मुझे तो आश्चर्य होता है कि आखिर उन्हें ऐसी जानकारी मिलती कहां से है। मेरा उनसे सीधा सवाल है कि क्या सत्ता पक्ष के किसी नेता ने कभी कहा कि इस अभियान से सिर्फ हिन्दू समुदाय के लोग ही जुड़ सकते हैं? जबकि वास्तविकता यह है कि यह एक स्वैच्छिक अभियान है और इसका उद्देश्य देश के हर व्यक्ति में एकजुटता का भाव विकसित करना है, ताकि हम किसी भी सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक भेदभाव से परे, अमृतकाल के दौरान अपने संकल्पों की सिद्धि कर सकें। अंत ऐसे अंध विरोधियों को समझना होगा कि यह अभियान धार्मिकता का नहीं, बल्कि राष्ट्रवाद का प्रतीक है। इस अभियान के तहत सरकार लोगों पर यह थोप नहीं रही है कि इसमें लोगों को शामिल होना ही होगा। यह आपातकाल के दौरान किसी फरमान जैसा नहीं है, बल्कि लोगों से अपील है। इसलिए विपक्ष को इस प्रकार की अतोशयोक्ति से बचना चाहिए और अभियान में शामिल हो, कम से कम जनभावना का सम्मान करना चाहिए।
Rani Sahu
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